राजद्रोह के मामलों पर FIR दर्ज करने के लिए दिशानिर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
LiveLaw News Network
6 March 2020 1:12 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह के आपराधिक मामलों पर FIR दर्ज करने के लिए दिशानिर्देश तय करने की मांग की गई थी।
जस्टिस ए एम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, "अदालत के समक्ष संबंधित पक्षों को आने दीजिए।"
दरअसल मानवाधिकार कार्यकर्ता ने CAA-NPR-NRC की आलोचना में कर्नाटक के बीदर में शाहीन स्कूल में आयोजित एक नाटक के संबंध में 26 जनवरी को दर्ज देशद्रोह की FIR को रद्द करने के निर्देश के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका में पुलिस की कार्रवाही का विरोध किया गया था जिसमें एक शिक्षक और एक विधवा मां की गिरफ्तारी की गई। याचिका में कहा गया था कि बच्चों से पूछताछ करना इस प्रक्रिया का दुरुपयोग और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता, योगिता भयाना ने अपने वकील उत्सव सिंह बैंस के माध्यम से देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक मैकेनिज्म तैयार करने और आईपीसी की धारा 124 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से पहले शिकायतों की जांच करने के लिए एक समिति गठित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि कर्नाटक पुलिस, कानून के सुलझे हुए सिद्धांत और शीर्ष अदालत के कई फैसलों के बावजूद, शैक्षिक प्रवचन और कलात्मक प्रयास के बीच अंतर करने में विफल रही और प्राथमिकी दर्ज कर शिक्षक और छात्र की विधवा मां को गिरफ्तार करके राजद्रोह का गंभीर आपराधिक आरोप लगा दिया।
उन्होंने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) सहित आईपीसी की धारा 124 ए की वैधता पर विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,
"एक नागरिक को सरकार और उसकी नीतियों में जो भी सही लगता है, वो कहने का अधिकार है, लेकिन उसे हिंसा को उकसाना नहीं चाहिए। "
दरअसल एक निचली अदालत ने 14 फरवरी को शिक्षिका फरीदा बेगम, और चतुर्थ श्रेणी की छात्रा की मां नजबुननिसा को जमानत दे दी थी, जिन्होंने 21 जनवरी को नाटक के मंचन के दौरान अपने संवाद में कथित रूप से मोदी विरोधी संवाद कहा था।