असम के डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों को रिहा करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
8 April 2020 9:15 AM IST
SC Issues Notice On Plea Seeking Release Of Detainees Who Have Spent More Than Two Years In Assam Foreigners' Detention Centres
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और असम सरकार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट से उन लोगों की रिहाई के निर्देश देने की मांग की गई है, जिन्होंने असम में विदेशी डिटेंशन सेंटर में दो साल से अधिक समय बिताया लिया है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में 'विदेशी नागरिक' बताकर असम के छह डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों को रिहा करने की मांग की गई है। अर्जी में कहा गया है कि डिटेंशन सेंटर में रह रहे लोगों को भी COVID-19 से संक्रमण का खतरा हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 की महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने के लिए स्वतः संज्ञान लिया है और अथॉरिटीज़ को विशिष्ट श्रेणियों के कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने पर विचार करने को कहा है।
असम स्थित एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, 'जस्टिस एंड लिबर्टी इनिशीअटिव', ने इसी मामले में हस्तक्षेप किया है और सुपीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के फैसले की तारीफ करते हुए, अर्जी में कहा गया है कि "यह कैदियों और इस देश के लोगों के स्वास्थ्य, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लिया गया बहुत ही जरूरी कदम है।"
ऐसी ही राहत उन लोगों को भी दिए जाने की आवश्यकता है, जिन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल ने विदेशी नागरिक घोषित कर हिरासत में रखा है। 11 मार्च को राज्य सभा में दिए गए गृहराज्य मंत्री के हालिया बयान का हवाला देते हुए अर्जी में कहा गया है कि असम के छह हिरासत केंद्रों में 802 व्यक्तियों को रखा गया है। हिरासत में रखे गए कई लोग बूढ़े और बीमार हैं।
पिछले साल कम से कम 10 लोगों की डिटेंशन सेंटर में ही मौत हो गई है। 2016 से अब तक, हिरासत में रखे गए 29 लोगों ने विभिन्न बीमारियों के कारण दम तोड़ दिया है। अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 10 मई, 2019 को को दिए गए आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें हिरासत में रखे गए उन सभी लोगों को रिहा करने की अनुमति दी गई थी, जिन्हें 3 साल से ज्यादा हिरासत में रखा जा चुका था।
रिहाई को बांडों के निष्पादन के अधीन रखा गया था। अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 23 मार्च 2020 के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें ऐसे कैदियों के लिए दिशा-निर्देश पारित किए गए थे, जिन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है। अर्जी में कहा गया है कि ईमेल के माध्यम से 25 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक प्रतिनिधित्व पेश किया जा चुका है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मई, 2019 के फैसले के अनुपालन के तहत, निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करने की स्थिति में हिरासत में रखे गए लोगों को रिहा करने की मांग की गई है। अर्जी में यह रेखांकित किया गया है कि फॉरेनर्स डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों को किसी आपराधिक कृत्य के कारण कैद में नहीं रखा गया है, बल्कि यह नागरिक कारावास के समान है।
वह भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं, जिसके केवल नागरिक प्रभाव हैं। अर्जी मे कहा गया है, "एक मनुष्य होने के नाते उन्हें जीने का बुनियादी अधिकार है, न कि COVID-19 से मरने का...राज्य के सभी अंगों अनुच्छेद 14 और 21 के तहत किसी भी व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य हैं।" मई, 2019 के आदेश में निर्धारित शर्तों के अनुसार तत्काल रिहाई का आदेश दिया जा सकता है। अर्जी में कहा गया है, "डिटेंशन कैंप में वायरस तेजी से पनप सकते हैं।
डिटेंशन कैंपों में सफाई की व्यवस्था में तत्काल सुधार संभव नहीं है। कारगार हवादार नहीं है। कैदियों को छोटी-छोटी कोठरियों में सोना पड़ता है, वहां शौचालयों की संख्या भी कम है। ऐसे हालात में संक्रामक बीमारियां आसानी से फैल सकती हैं। ऐसे माहौल में सोशल डिस्टेंसिंग भी संभव नहीं है। ये कैंप टाइम बम की तरह हैं, जो कभी भी फट सकते हैं। कैंप में क्वारेंटाइन सुविधाओं के अभाव के कारण प्रकोप की आशंका ज्यादा है।"