अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 88 वर्षीय प्रोफेसर को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

3 Sep 2019 7:00 AM GMT

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  • अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 88 वर्षीय प्रोफेसर को नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अयोध्या-बाबरी विवाद मामले की सुनवाई करते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका पर 88 वर्षीय प्रोफेसर एन. शनमुगम को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

    2 सप्ताह में देना होगा जवाब

    मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नज़ीर की संविधान पीठ ने मंगलवार को ये अवमानना नोटिस जारी करते हुए 2 सप्ताह में उनसे जवाब मांगा है।

    दरअसल वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सोमवार को CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया था और CJI ने यह कहा था कि मामले की सुनवाई मंगलवार को करेंगे।

    अयोध्या-बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करने को लेकर मिली थी धमकी

    यह याचिका वरिष्ठ वकील धवन ने पिछले शुक्रवार को दायर की थी जिसमें यह आरोप लगाया गयाथा कि उन्हें अयोध्या-बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करने के लिए धमकी दी गई थी।

    धवन को मिले पत्र में क्या लिखा है

    धवन ने याचिका में यह कहा है कि उन्हें 14 अगस्त को चेन्नई के एक प्रोफेसर एन. शनमुगम का पत्र मिला जिसमें उन्हें मुस्लिम पक्षकारों के लिए कोर्ट में पेश होने के लिए धमकी दी गई थी। 88 वर्षीय प्रोफेसर द्वारा कथित रूप से लिखे गए पत्र में पूछा गया था कि धवन कैसे "अयोध्या में उनके तथाकथित अधिकार" के लिए मुसलमानों की ओर से पेश होकर "विश्वासघात" कर सकते हैं। पत्र में वरिष्ठ वकील को शाप दिया गया और कहा गया कि वह "अपनी करनी के लिए कीमत चुकाएंगे।"

    "करना पड़ रहा है धमकी भरे व्यवहार का सामना"

    उन्होंने कहा कि संजय कलई बजरंगी द्वारा भी व्हाट्सएप में धमकी भरे संदेश भेजे गए थे। "यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता को घर पर और अदालत परिसर में कई व्यक्तियों द्वारा धमकी भरे व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है," उन्होंने आगेे कहा।

    "मामला 'आपराधिक अवमानना' का है"

    याचिका में यह कहा गया है कि "डराने वाले पत्र" के जरिए किसी वकील को उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए धमकी देना, न्याय प्रशासन के कामकाज में हस्तक्षेप करने के समान है और इसलिए ये 'आपराधिक अवमानना' का मामला है।

    AG एवं SG से आपराधिक अवमानना ​​के लिए अनिवार्य मंजूरी नहीं लेने का कारण

    आपराधिक अवमानना ​​के लिए अटॉर्नी जनरल की अनिवार्य मंजूरी नहीं लेने के कारण के रूप में धवन ने AG की ओर से हितों के संभावित संघर्ष का हवाला दिया, क्योंकि वह मामले के पहले दौर में उत्तर प्रदेश राज्य के लिए पेश हुए थे।

    सॉलिसिटर जनरल के संबंध में धवन ने कहा कि SG ने वर्तमान मामले की पूर्व सुनवाई में यूपी सरकार के लिए पक्ष लिया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मामले में अब तक 16 दिन की सुनवाई पूरी कर ली है।

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