गर्दन से लटका कर मौत की सजा के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की
LiveLaw News Network
2 March 2020 12:58 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 88 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी द्वारा उस रिट याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मौत की सजा देने के लिए फांसी पर लटकाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
सोमवार को मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने कहा कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुका है और मौत की सजा को बरकरार रख चुका है।
दरअसल निर्भया कांड में चार दोषियों को फांसी की सजा देने की संभावना के बीच सुप्रीम कोर्ट में एस परमेश्वरम नमपोथरी नामक स्वतंत्रता सेनानी द्वारा दायर याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) को चुनौती दी गई थी।
इस धारा में कहा गया है कि जब किसी भी व्यक्ति को मौत की सजा दी जाती है, तो उसे तब तक गर्दन से लटकाए रखा जाए जब तक वह मर नहीं जाता।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) कहती है कि " जब किसी व्यक्ति को मृत्यु का दण्डादेश दिया जाता है तो वह इस प्रकार दिया जाएगा कि उसे गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए।"
केरल के निवासी याचिकाकर्ता के अनुसार, यह प्रावधान भारत के संविधान की मूल संरचना और विशेषताओं के विरोध में है। उन्होंने याचिका में कहा था कि "क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 354 (5) के तहत अनुपालन संभव है, जबकि एक दोषी को सजा से पहले किसी विशेष अवधि के लिए कारावास की सजा से गुजरना पड़ता है और दोषी मानते हुए उसे फांसी देते हुए तब तक गर्दन से लटकाया जाता है, जब तक कि वह मर न जाए। इसके बाद भी उसका शरीर लटकता रहता है जिसके परिणामस्वरूप शरीर का अनादर होता है और इस प्रकार यह सज़ा द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 में धारा 354 (5) के दायरे बाहर हो जाती है। "
याचिका में आगे कहा गया था, " क्या दोषी को फांसी देने वाला व्यक्ति सरकारी कर्तव्य कर रहा है या किसी व्यक्ति की हत्या कर रहा है? क्या राज्य किसी व्यक्ति को कर्तव्य निर्वहन में किसी अन्य व्यक्ति को मृत्यु देने का अधिकार दे सकता है? क्या राज्य के पास किसी को ऐसा अधिकार देने की शक्ति है?" यदि हां तो वह विशेष प्रावधान क्या है जो किसी व्यक्ति को मृत्यु को प्रशासित करने का अधिकार देता है, विशेष रूप से जब "जीवन का अधिकार" संविधान में ऊपर है और हर "मैं" "हम" का एक हिस्सा है और राज्य के लिए किसी भी परिस्थिति में किसी व्यक्ति को मारना निषिद्ध है ? "
एडवोकेट विल्स मैथ्यू के माध्यम से दायर याचिका में मृत्युदंड के खिलाफ दलीलें भी थीं। यह तर्क दिया गया था कि मृत्यु दंड में निवारक प्रभाव का अभाव है और यह कि जब वह जीवन नहीं दे सकता है तो राज्य के पास मानव जीवन छीनने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। "ऐसे समय में जब यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो गया है कि किसी व्यक्ति का डीएनए प्रोफ़ाइल एक संत या अपराधी बनने के लिए बहुत मायने रखता है, क्या किसी व्यक्ति को उसके नियंत्रण से बाहर कारणों से मारा जा सकता है", याचिकाकर्ता ने याचिका में पूछा था।
याचिका इस प्रकार धारा 354 (5) को समाप्त करने का अनुरोध कर कर रही थी, क्योंकि संविधान में यह अति आवश्यक है। हालांकि जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य AIR 1973, SC 947 मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीश पीठ द्वारा मृत्युदंड की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया था।