मेडिकल काउंसिल रेगुलेशन का उल्लंघन करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मेडिकल कॉलेज पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

25 Feb 2021 3:50 AM GMT

  • मेडिकल काउंसिल रेगुलेशन का उल्लंघन करने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मेडिकल कॉलेज पर  पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया

    सुप्रीम कोर्ट ने (बुधवार) सरस्वती मेडिकल कॉलेज को महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा (Director General Medical Education) द्वारा आवंटित नहीं की गई मेडिकल सीटों पर छात्रों को एडमिशन देकर मेडिकल काउंसिल रेगुलेशन का जानबूझकर उल्लंघन करने पर पांच करोड़ रुपये जुर्माने लगाया। कालेज को यह जुर्माना सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री में जमा करने का निर्देश दिया गया।

    आगे कोर्ट ने कहा कि कॉलेज ने स्वंय ही 132 छात्रों को एडमिशन दिया और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा छात्रों को डिस्चार्ज करने के निर्देश के बावजूद कॉलेज ने एडमिशन जारी रखा। कॉलेज ने निर्देशों का पालन नहीं किया, इसलिए कोर्ट कॉलेज को माफ नहीं कर सकता।

    कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमिशन) को एक ट्रस्ट का गठन करने का निर्देश दिया, जिसमें यूपी राज्य के महालेखाकार (Accountant General), एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् (Educationalist) और ट्रस्ट के सदस्य के रूप में राज्य का एक प्रतिनिधि शामिल होगा, जो जमा किए गए पांच करोड़ रूपए को प्रबंधित करेगा। उत्तर प्रदेश राज्य में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के इच्छुक जरूरतमंद छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए है। बुधवार से 12 सप्ताह की अवधि के भीतर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा की गई कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल की जानी है।

    न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की खंडपीठ ने सरस्वती एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका में यह निर्देश जारी किया है। याचिका में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा सरस्वती मेडिकल कॉलेज को एमबीबीएस के प्रथम वर्ष में 2017-2018 शैक्षणिक वर्ष के पाठ्यक्रम में एडमिशन के लिए 150 छात्रों में से 132 को डिस्चार्ज करने के निर्देश की नोटिस को चुनौती दी गई थी।

    कोर्ट ने सरस्वती मेडिकल कॉलेज में शैक्षणिक वर्ष 2017-2018 के लिए एमबीबीएस प्रथम वर्ष में 71 छात्रों द्वारा 2019 में दायर की गई एक अन्य याचिका पर भी विचार किया और उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल को अपने अध्ययन और निर्देश जारी रखने की अनुमति दी, ताकि प्रथम वर्ष के एमबीबीएस कोर्स के परिणाम घोषित किए जा सकें।

    न्यायालय ने कहा कि कॉलेज को खुद से 132 छात्रों को एडमिशन देने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा से अनुरोध किए जाना चाहिए और इसलिए अधिक से अधिक उम्मीदवारों को भेजने के लिए महानिदेशक को दोषी नहीं ठहराया जा सके।

    सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज द्वारा प्रस्तुत इस दलील को खारिज कर दिया कि महानिदेशक द्वारा जारी नोटिस पर आवेदन करने वाले 735 छात्रों की सूची में से प्रवेश देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। कॉलेज को 5 सितंबर, 2017 को शाम 7:30 बजे नोटिस जारी नहीं करना चाहिए था। इसके साथ ही चार घंटे में 132 छात्रों को प्रवेश दिया गया था।

    शीर्ष अदालत ने देखा है कि जिन छात्रों ने प्रवेश सुरक्षित किया था, उन्हें भी निर्दोष नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे पूरी तरह से जानते थे कि उनके नामों की सिफारिश महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा द्वारा नहीं की गई थी।

    पीठ ने कहा कि,

    "मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जारी किए गए एक निर्देश के बाद भी कॉलेज ने छात्रों को डिस्चार्ज नहीं किया, और छात्रों ने अपना प्रथम वर्ष एमबीबीएस पाठ्यक्रम जारी रखा और विश्वविद्यालय द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद पहले वर्ष एमबीबीएस पाठ्यक्रम की परीक्षा लिखने में कामयाब रहे।"

    यह देखते हुए कि कॉलेज में इन 132 छात्रों का प्रवेश नियमों के विपरीत है, कोर्ट ने माना कि चूंकि छात्रों ने एमबीबीएस द्वितीय वर्ष पूरा कर लिया है, इसलिए इस स्तर पर उनके प्रवेश रद्द करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसलिए अदालत ने कॉलेज में शामिल होने वाले छात्रों को यह जानने के लिए निर्देशित किया है कि उनके प्रवेश विनियमों के विपरीत थे, अपने एमबीबीएस पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद दो साल की अवधि के लिए सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को 132 छात्रों द्वारा प्रदान की जाने वाली सामुदायिक सेवा का विवरण तय करने और तौर-तरीकों पर कार्य करने के लिए कहा गया है। न्यायालय ने विश्वविद्यालय को कॉलेज द्वारा दिए गए एडमिशन के 126 छात्रों के लिए दूसरे वर्ष की एमबीबीएस परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया है और जिन्होंने जल्द से जल्द अपना दूसरा वर्ष पूरा किया है, उनके रिजल्ट घोषित किए जाएं।

    न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ये निर्देश केवल छात्रों को इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में तीन अकादमिक वर्षों को खोने से बचाने के लिए पारित किया गया है और इसे एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा।

    तथ्य

    सरस्वती एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा स्थापित सरस्वती मेडिकल कॉलेज ने शैक्षणिक वर्ष 2017-2018 के लिए 150 छात्रों के प्रवेश की अनुमति के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया। हालांकि, निरीक्षण किए जाने के बाद, 10 अगस्त, 2017 के एक आदेश द्वारा अनुमति का नवीकरण नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के माध्यम से 1 सितंबर, 2017 को उत्तरदाताओं को निर्देश दिया, जिसमें यूनियन ऑफ इंडिया और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया सहित कॉलेज को अनुमति दी गई थी कि वे वर्ष 2017-2018 के लिए काउंसलिंग प्रक्रिया में भाग लें और 5 सितंबर, 2017 तक कॉलेज के संबंध में प्रवेश पूरा करने की कट-ऑफ तारीख को बढ़ा दिया। न्यायालय ने उत्तरदाताओं को यह भी निर्देश दिया कि कॉलेज केंद्रीय परामर्श के माध्यम से मेरिट के आधार पर छात्रों को प्रवेश लेने की व्यवस्था करे। कॉलेज ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के महानिदेशक ने कॉलेज से अनुरोध किया था कि वह NEET 2017 की मेरिट सूची से छात्रों की एक सूची प्रदान करें ताकि कॉलेज को समय सीमा से पहले प्रवेश मिल सके।

    चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक ने सभी पात्र छात्रों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरस्वती मेडिकल कॉलेज को काउंसलिंग में भाग लेने की अनुमति देने के आदेश के बारे में बताया, जिसमें उन्हें कॉलेज में प्रथम वर्ष के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए खुद को पंजीकृत करने के लिए कहा। इसके बाद कॉलेज में 150 सीटों पर प्रवेश के लिए समय सारिणी के भीतर 735 छात्रों ने आवेदन किया।

    छात्रों से आवेदन प्राप्त करने के बाद, महानिदेशक ने 735 छात्रों के बीच उनके मेरिट के आधार पर 150 छात्रों की एक सूची भेज दी, लेकिन उन 150 छात्रों में से केवल 9 ने रिपोर्ट की और अंतिम तिथि तक अपनी प्रवेश औपचारिकता पूरी कर ली। कॉलेज ने तब महानिदेशक को पत्र लिखकर 735 छात्रों की सूची से अधिक नाम मांगे और सभी 735 छात्रों को एक तत्काल नोटिस जारी किया कि वे मेरिट के आधार पर कॉलेज में प्रवेश ले सकते हैं।

    कॉलेज ने 5 सितंबर को बिना महानिदेशक के निर्देश के खुद से कुल 132 सीटें भरीं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने तब एक पत्र लिखा और सरस्वती मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को निर्देश दिया कि वे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रेगुलेशन ऑन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन, 1997 का उल्लंघन करने वाले 132 छात्रों को डिस्चार्ज करें।

    तत्पश्चात, महाविद्यालय द्वारा 29 दिसंबर 2017 को अपने पत्र के माध्यम से मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के निर्देश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की गई। इस बीच छात्रों को उत्तर प्रदेश के कानपुर के छत्रपति शाह जी महाराज विश्वविद्यालय द्वारा प्रथम वर्ष के एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए परीक्षा देने की अनुमति दी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 22 जुलाई, 2019 को प्रथम वर्ष के एमबीबीएस पाठ्यक्रम के रिजल्ट को अनंतिम रूप से घोषित करने का निर्देश दिया, लेकिन रिट याचिका के परिणाम के अधीन यह निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि छात्र रिजल्ट की घोषणा पर किसी भी समानता का दावा नहीं कर सकते। इसके बाद छात्रों ने 2021 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उन्हें दूसरे वर्ष की एमबीबीएस परीक्षाओं में बैठने के लिए अनुमति देने के लिए निर्देश देने की मांग की।

    पक्षकारों के तर्क

    वर्तमान मामले में कॉलेज ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि जिन 132 छात्रों ने दाखिला लिया था, वे छात्र मेरिट के आधार पर प्रवेश पाए थे जिन्होंने असाधारण परिस्थितियों में कॉलेज का रुख किया था। महानिदेशक ने प्रथम वर्ष MBBS 2017-2018 में 4 सितंबर तक प्रवेश के लिए पर्याप्त संख्या में छात्रों को आवंटित नहीं करने में सुस्ती दिखाई थी और 5 सितंबर उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार प्रवेश की अंतिम तिथि थी। आवंटित छात्रों में से केवल कुछ छात्रों ने एडमिशन लिया। इसलिए कॉलेज को 735 उम्मीदवारों की सूची से प्रवेश करने के लिए कोई विकल्प नहीं था।

    दूसरी ओर छात्रों ने प्रथम वर्ष के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के मामले में किसी भी अवैधता या अनियमितता के बारे में अज्ञानता का अनुरोध किया, और अदालत से अनुरोध किया कि वे पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए उन्हें अनुमति दें क्योंकि वे सभी नीट की उत्तीर्ण करके प्रवेश लिए हैं। छात्रों के अनुसार, उन्हें विनियमों के किसी भी उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उन्होंने जो प्रवेश की नोटिस कॉलेज द्वारा जारी की गई थी, उसी के आधार प्रवेश पर कॉलेज द्वारा आयोजित चयन प्रक्रिया में भाग लिया था।

    मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि स्नातक चिकित्सा शिक्षा(Graduate medical Education), 1997 में मेडिकल काउंसिल रेगुलेशन के विनियमन 5 ए के संदर्भ में, एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए सभी प्रवेश नीट की मेरिट सूची के आधार पर और महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा द्वारा छात्रों की रैंकिंग के आधार पर भेजी गई सूची के आधार पर दिए जाने चाहिए। कॉलेज महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा द्वारा आवंटित छात्रों को एडमिशन दे सकता है। इसलिए, जिन छात्रों को विनियमों के विपरीत एडमिशन दिया गया था, वे किसी भी इक्विटी का दावा करने के हकदार नहीं होंगे और जिस कॉलेज ने विनियम का उल्लंघन किया है, वह उपयुक्त रूप से दंडित किया जाए।

    पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केरल के कन्नूर मेडिकल कॉलेज को 15,72,89,020 रुपये जमा करने का निर्देश दिया था, जिसमें केरल में व्यावसायिक कॉलेजों के लिए प्रवेश पर्यवेक्षक समिति (सुपरवाइजरी कमेटी) के साथ-साथ अभिभावकों / छात्रों का पूरा विवरण, जिनको यह रूपए एक महीने की अवधि में वापस की जानी है।

    जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने इसे पर्यवेक्षी समिति (सुपरवाइजरी कमेटी) के साथ संबद्धता का दावा करने के लिए पूर्व शर्त के रूप में 25 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया था।

    केस: सरस्वती एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [Writ Petition (C) No.40 of 2018]

    Citation: LL 2021 SC 112

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