अवयस्क के रूप में नौकरी ज्वाइन करने वाले व्यक्ति के रिटायर होने के समय पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया विभाजित फ़ैसला
LiveLaw News Network
1 Jun 2020 10:02 PM IST
सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ किसी व्यक्ति के अवयस्क के रूप में नौकरी ज्वाइन करने वाले व्यक्ति के रिटायर होने की उम्र को लेकर एक मामले में विभाजित फ़ैसला दिया है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ इस मामले (गोपाल प्रसाद बनाम बिहार विद्यालय परीक्षा समिति एवं अन्य) में एक मत नहीं थी और इसलिए अब इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया गया है, ताकि इसे बड़ी पीठ को सौंपा जा सके।
इस मामले में अपीलकर्ता को कैलीग्राफ़िस्ट-सह सहायक के रूप में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति में 20 मई 1970 को नियुक्त दी गई और उस समय उसकी उम्र 15 साल थी। हालांकि इस पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम उम्र का उल्लेख नहीं था पर पेंशन वाली नौकरियों में प्रवेश की उम्र 16 साल थी। इसलिए अगर किसी कर्मचारी को 16 वर्ष की उम्र से पहले नियुक्ति दी गई है तो इसका मतलब हुआ कि उसे पेंशन नहीं दी जा सकती।
1998 में सरकार ने निचली श्रेणी की नौकरियों में प्रवेश की उम्र 18 निर्धारित कर दी और यह कहा गया कि यह नियम आगे होने वाली नियुक्तियों पर लागू होगा।
फिर, बिहार सेवा संहिता का नियम 73 कहता है कि कोई व्यक्ति 58 साल जिस तिथि को पूरा कर लेता है उस दिन वह रिटायर हो जाएगा।
जनवरी 2004 में बीएसईबी ने तय किया कि सेवा में प्रवेश की उम्र को उनके लिए भी 18 वर्ष मानेगा जो इससे पहले सेवा में भर्ती हुए, इसलिए जो कर्मचारी 18 साल से होने से पहले सेवा में भर्ती हुए उनको भी यह माना जाएगा कि उन्होंने 18 साल के होने पर नौकरी में प्रवेश लिया और 60 साल के होने पर वे रिटायर हो जाएंगे, अगर वे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं, अगर तृतीय श्रेणी के हैं तो 58 साल में (बाद में इसे भी 60 साल कर दिया गया)।
न्यायमूर्ति बनर्जी ने अपने फ़ैसले में कहा कि रिटायर होने की उम्र में कोई फेरबदल बिहार सेवा संहिता के नियम 73 के तहत क़ानून के अनुरूप होना चाहिए। बीएसईबी कोई प्रस्ताव पास कर ऐसा नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा,
"…प्रतिवादी का अपीलकर्ता को 60 साल का होने से पहले ही उसके वास्तविक उम्र जो कि उसके सेवा रिकॉर्ड में दर्ज है, उसके हिसाब से रिटायर कर देना क़ानून सम्मत नहीं है।"
इसके अनुरूप, न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि इस अपील पर सुनवाई होनी चाहिए और पटना हाईकोर्ट की एकल पीठ के फ़ैसले को निरस्त कर देना चाहिए।
लेकिन न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी का इस मामले में भिन्न मत रहा। न्यायमूर्ति रस्तोगी का कहना था कि सिर्फ़ वयस्क व्यक्ति ही वाजिब नौकरी में प्रवेश ले सकता है। इस बारे में उन्होंने वयस्कता अधिनियम 1875 का हवाला देते हुए वयस्कता की उम्र को परिभाषित किया है।
"…सरकारी नौकरी में किसी व्यक्ति की सेवा 42 साल से ज़्यादा नहीं हो सकती…अगर कोई बात इसके अनुरूप नहीं है …तो कोई भी सर्कुलर या प्रस्ताव क़ानूनी रूप से वैध नहीं हो सकता है।"
इसलिए अपीलकर्ता वयस्कता की उम्र से पहले सेवा में प्रवेश नहीं कर सकता अगर सेवा में प्रवेश की न्यूनतम उम्र निर्धारित नहीं की गई है। अगर अपीलकर्ता की दलील को मान लिया जाए 'तो हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जब कोई दुधमुंहा बच्चा या अवयस्क भी खुद को नौकरी में प्रवेश के योग्य बता सकता है जो कि क़ानून की नज़र में असंगत है।"
मतों में इस अंतर की वजह से न्यायमूर्ति बनर्जी ने निर्देश दिया है कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाए, ताकि इसे किसी बड़ी पीठ को सौंपा जा सके। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने इस याचिका को ख़ारिज करने का निर्देश दिया है।
प्रतिवादी की पैरवी वक़ील गोपाल सिंह ने की। अपीलकर्ता की लिखित दलील वक़ील को ड्राफ़्ट और फ़ाइलिंग क्रमशः आनंद शंकर झा और अर्जुन गर्ग ने किया।
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