ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड शीर्ष न्यायालय की रजिस्ट्री को क्यों नहीं भेजे गए; सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार से पूछा
LiveLaw News Network
3 March 2022 8:26 AM IST
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक आपराधिक अपील की सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (HP High Court) के रजिस्ट्रार से यह बताने के लिए कहा कि ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड शीर्ष न्यायालय की रजिस्ट्री को क्यों नहीं भेजे गए हैं।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निर्देश जारी किए कि मामले को रिकॉर्ड के इंतजार में दो मौकों पर पहले ही स्थगित किया जा चुका है।
बेंच ने 15 दिसंबर, 2021 और 11 जनवरी, 2022 को हाईकोर्ट/ट्रायल कोर्ट को उचित संचार भेजकर ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के लिए तलब किया था।
यह टिप्पणी करते हुए कि इससे न केवल याचिकाकर्ता को सजा सुनाई गई है, बल्कि न्यायिक समय भी बर्बाद होता है, पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को एक रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा जाता है जिसमें इस न्यायालय के आदेश के अनुसार उठाए गए कदमों और उन कारणों का उल्लेख किया जाए कि रिकॉर्ड अभी तक इस न्यायालय की रजिस्ट्री को क्यों नहीं भेजा गया है।"
रजिस्ट्रार को 20 मार्च, 2022 तक रजिस्ट्री के साथ रिकॉर्ड साझा करने के लिए कहते हुए पीठ ने ऐसा करने में विफल रहने पर ट्रायल के साथ-साथ उच्च न्यायालय के संबंधित अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग की।
पीठ ने अपने में आदेश कहा,
"रिकॉर्ड इस न्यायालय की रजिस्ट्री में 20.03.2022 तक प्राप्त किया जाना चाहिए। यदि रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं किया जाता है, तो ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय के संबंधित अधिकारी अगले अवसर पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ेगा।"
पूरा मामला
8 फरवरी, 2015 को वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पारित आदेशों के अनुसार, लगभग 2:00 बजे, आरोपी को 14 पैकेट प्रतिबंधित पदार्थ के एक बैग के साथ पकड़ा गया था। बैग में चरस पाया गया था।
एक प्राथमिकी दर्ज की गई और आरोपी पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया।
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए कारावास की सजा सुनाई और जुर्माना भी लगाया।
इससे नाराज आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा,
"ऑक्यूलर संस्करण के साथ-साथ दस्तावेजी साक्ष्य स्पष्ट रूप से कथित अपराध में दोषी की मिलीभगत को स्थापित करते हैं। अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय है और उनके बयान विश्वसनीय हैं। उनके संस्करण को अविश्वसनीय बनाने के लिए कोई बड़ा विरोधाभास नहीं है।"
आगे कहा था,
"हमारे सुविचारित विचार में, अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे, अभियुक्त के सचेत कब्जे से प्रतिबंधित पदार्थ की बरामदगी को साबित करने के बोझ का निर्वहन करने में सक्षम है। यह नहीं कहा जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही की सही और पूरी तरह से सराहना करने में गलती की।"
केस का शीर्षक: नरेश बहादुर शाही बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य| Special Leave to Appeal (Crl.)No(s) 707/2019
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