सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर जुवेनाइल जस्टिस कमेटी को कश्मीर में बच्चों की अवैध हिरासत को लेकर फिर से रिपोर्ट देने के निर्देश दिए

LiveLaw News Network

5 Nov 2019 10:49 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर जुवेनाइल जस्टिस कमेटी को कश्मीर में बच्चों की अवैध हिरासत को लेकर फिर से रिपोर्ट देने के निर्देश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर जुवेनाइल जस्टिस कमेटी को निर्देश दिया कि वह कश्मीर में नाबालिगों को हिरासत में रखने के आरोपों पर नए सिरे से रिपोर्ट पेश करे। इस कमेटी में हाईकोर्ट के चार जज शामिल हैं। कमेटी को 3 दिसंबर तक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।

    न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी की दलीलों के बाद सहमति व्यक्त की कि कमेटी ने बिना किसी स्वतंत्र जांच किए केवल जम्मू-कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट को आगे बढ़ाया था। कमेटी ने यह भी नहीं देखा कि जम्मू एंड कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत किशोरों की हिरासत दंड प्रक्रिया संहिता के तहत वर्जित है। पीठ ने बाल अधिकार कार्यकर्ताओं एनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा द्वारा दायर याचिका में यह आदेश दिया।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जिन्होंने शुरू में सुनवाई स्थगित करने की मांग की थी, ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि याचिकाकर्ता चार न्यायाधीशों द्वारा दायर रिपोर्ट को चुनौती नहीं दे सकते। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गलत तरीके से प्रस्तुत किया है कि जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट काम नहीं कर रहा है।

    इस पर पलटवार करते हुए, वरिष्ठ वकील अहमदी ने प्रस्तुत किया कि नाबालिगों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला शामिल है और इसलिए यह मामला भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाया जा सकता है।

    शुरुआत में पीठ ने भी सुनवाई टालने लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। न्यायमूर्ति रमना ने कहा, "तालाबंदी के 3 महीने हो गए हैं। ऐसे महत्वपूर्ण मामलों को और टाला नहीं जा सकता है।"

    जम्मू-कश्मीर किशोर न्याय समिति ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी

    दरअसल जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि राज्य में कोई भी बच्चा अवैध हिरासत में नहीं है, जम्मू-कश्मीर किशोर न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी।

    पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की विशेष स्थिति को समाप्त करने के मद्देनजर क्षेत्र में कर्फ्यू के उपाय किए जाने के बाद 9 और 11 वर्ष की आयु के बच्चों सहित 144 किशोरों को हिरासत में लिया गया था। उनमें से कुछ को उसी दिन रिहा किया गया था और बाकी को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2013 के प्रावधानों के तहत 'कानून के साथ संघर्ष में किशोर' के रूप में आगे हिरासत में भेजा गया।

    चार सदस्यीय किशोर न्याय समिति को दी गई अपनी रिपोर्ट में डीजीपी ने जोर दिया, " राज्य मशीनरी कानून के शासन को लगातार बनाए हुए है और कानून के साथ संघर्ष में एक भी किशोर को अवैध रूप से हिरासत में नहीं लिया गया है।"

    डीजीपी ने कहा कि ये किशोर हिरासत में संबंधित जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के आदेशों के आधार पर ऑब्जर्वेशन होम्स में रखे गए हैं। डीजीपी द्वारा आगे कहा गया कि राज्य में बाल कल्याण समितियां प्रभावी रूप से काम कर रही हैं।

    दरअसल 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बाल अधिकार विशेषज्ञ एनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा द्वारा दायर जनहित याचिका में कश्मीर में बच्चों के अवैध हिरासत के आरोपों पर रिपोर्ट देने के लिए समिति को निर्देश दिया था।

    उसके बाद J&K HC के न्यायाधीश जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे की अध्यक्षता वाली समिति ने 23 सितंबर को बैठक की और किशोरों के संबंध में दायर जमानत अर्जियों और हैबियस कॉरपस याचिकाओं के संबंध में उच्च न्यायालय सहित निचली

    अदालतों से रिपोर्ट मांगने का प्रस्ताव किया। समिति ने याचिका में लगाए गए आरोपों के बारे में जम्मू-कश्मीर के डीजीपी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के संभागीय आयुक्तों से भी रिपोर्ट मांगी थी।

    इन रिपोर्टों के बारे में डीजीपी ने कहा:

    "याचिका में लगाए गए विशिष्ट आरोपों की क्षेत्र से प्राप्त जानकारी से पुष्टि नहीं की गई है। व्यक्तिगत मामलों में जहां यह आरोप लगाया गया है कि किशोरों को पुलिस द्वारा कानून के उल्लंघन में हिरासत में लिया गया है और उन्हें दर्ज भी नहीं किया गया है, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं पाया गया।"

    डीजीपी द्वारा कहा गया कि ये कहानी पुलिस को बदनाम करने के इरादे से बनाई गई और इसमें सनसनीखेज तत्व हो सकते हैं। पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश मीडिया रिपोर्टों में जांच के लिए पर्याप्त विवरणों की कमी थी। मीडिया रिपोर्टों में तथ्य 'पतली हवा की कल्पना है, " समिति ने डीजीपी के हवाले से कहा है।

    समिति ने पुलिस के हवाले से कहा,

    "अक्सर ऐसा होता है कि नाबालिग / किशोर जब पथराव करते हैं तो उन्हें मौके पर ही पकड़ लिया जाता है और घर भेज दिया जाता है। इनमें से कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है।"

    जनहित याचिका में पुलिस द्वारा मीडिया रिपोर्ट को "पूरी तरह से बेबुनियाद, अपमानजनक " बताते हुए स्पष्ट रूप से नकारा गया है और कहा गया है कि इनका कोई स्पष्ट मूल्य नहीं है।

    समिति ने यह भी कहा कि उसने मिशन निदेशक, जम्मू और कश्मीर चाइल्ड प्रोटेक्शन सोसाइटी (JKCPS) से राज्य के दो ऑब्जर्वेशन होम में स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी- जिनमें एक हरवान, श्रीनगर और दूसरा आर एस पुरा, जम्मू में है।

    JKCPS के निदेशक के अनुसार, हरवन में 6 अगस्त से 23 सितंबर तक कानून के साथ संघर्ष में 36 किशोर लाए गए थे। उनमें से 21 को जमानत दे दी गई थी और शेष 15 के संबंध में जांच चल रही है जबकि आर एस पुरा में कानून के साथ संघर्ष में 10 किशोर लाए गए और उनमें से 6 को जमानत दे दी गई थी। निदेशक ने उल्लेख किया है कि शेष 4 किशोरों के संबंध में जांच लंबित है।

    वहीं जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ( सुप्रीम कोर्ट के भेजे जाने के लिए ) को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने डीजीपी और JKCPS मिशन निदेशक द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्टों का स्पष्ट रूप से ना तो समर्थन किया है और ना ही इस पर विवाद बताया है।

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