नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत, 18 दिसंबर को करेगा सुनवाई

LiveLaw News Network

16 Dec 2019 6:04 AM GMT

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत, 18 दिसंबर को करेगा सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 18 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के समक्ष मामले का उल्लेख किया है।

    सुप्रीम कोर्ट में कम से कम एक दर्जन याचिकाएं दायर की गई हैं, जो नए कानून को चुनौती देती हैं, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए नागरिकता प्राप्त करने की शर्तों में ढील दी गई है।

    अधिनियम के अनुसार, हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत आ गए हैं, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

    इस कानून के खिलाफ पहली याचिका भारतीय संघ मुस्लिम लीग द्वारा दायर की गई थी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश और टीएन प्रतापन, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी नए कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

    नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही सुप्रीम कोर्ट में करीब 12 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है। इस मामले में TMC सासंद महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने भी याचिका दाखिल की है। जयराम रमेश ने याचिका में कहा है कि ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है। भेदभाव के रूप में यह मुस्लिम प्रवासियों को बाहर निकालता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है।

    उन्होंने याचिका में कहा कि कानून संविधान की मूल संरचना और मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करने का इरादा है। ये संविधान में निहित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध आप्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता देने का इरादा रखता है। याचिका में कहा गया कि प्रत्येक नागरिक समानता के संरक्षण का हकदार है। यदि कोई विधेयक किसी विशेष श्रेणी के लोगों को निकालता है तो उसे राज्य द्वारा वाजिब ठहराया जाना चाहिए।

    नागरिकता केवल धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर हो सकती है। प्रश्न है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता योग्यता की कसौटी कैसे हो सकती है। ये कानून समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। वहीं एक वकील एहतेशाम हाशमी ने भी याचिका दाखिल की है। इसके अलावा पीस पार्टी, जन अधिकार मंच, रिहाई मंच और सिटीजनस अगेंस्ट हेट NGO ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

    पूर्व IAS अधिकारी सोम सुंदर बरुआ, अमिताभ पांडे और IFS देव मुखर्जी बर्मन के साथ- साथ ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने भी संशोधन क़ानून की वैधता को चुनौती दी है। इससे पहले इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुका है।

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