मौत की सजा के दोषियों के लिए" शत्रुघ्न चौहान' फैसले में संशोधन पर विचार करने को तैयार सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
31 Jan 2020 3:07 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने 2014 के शत्रुघ्न चौहान फैसले पर संशोधन मांगने वाली केंद्र की अर्जी पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की है जिसमें घोषणा की गई थी कि यहां तक कि मौत की सजा के दोषियों के भी कुछ योग्य अधिकार हैं।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "फैसला दोषी पर केंद्रित किया गया था ... पीड़ितों, उनके परिवार और समाज के दृष्टिकोण से दिशानिर्देशों पर विचार करना महत्वपूर्ण है",
"यह वैसे भी पीड़ित को ध्यान में रखते हुए कार्य करने का कानून है। उसके लिए दिशानिर्देश क्यों आवश्यक हैं?" मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने पूछा लेकिन फिर भी याचिका पर विचार करने के लिए सहमति जताई और नोटिस जारी किए।
दरअसल एक अहम कदम के तौर पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर शत्रुघ्न चौहान मामले में 2014 के फैसले में स्पष्टीकरण और संशोधन की मांग की है, जिसमें घोषणा की गई थी कि मौत की सजा पाने वालों के लिए भी कुछ अधिकार हैं।
2012 के दिल्ली गैंगरेप-मर्डर केस में चार दोषियों की मौत के वारंट के लंबित निष्पादन के संदर्भ में केंद्र का यह कदम आया है।
आवेदन में केंद्र का कहना है कि यह निर्णय "आरोपी-केंद्रित" है और "पीड़ितों, उनके परिवार और समाज के दृष्टिकोण से दिशानिर्देशों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।"
उस मामले में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा के दोषियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए विभिन्न दिशानिर्देशों को निर्धारित किया था और यह घोषणा की थी कि दया याचिका के निपटान में लंबी देरी मृत्युदंड को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील करने का आधार है।
केंद्र ने कहा है कि ये दिशानिर्देश "पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों के अपूरणीय मानसिक आघात, पीड़ा, उथल-पुथल और, राष्ट्र की सामूहिक अंतरात्मा और विद्रोही प्रभाव को ध्यान में नहीं रखते जो कि मृत्युदंड का इरादा है।"
आवेदन में कहा गया है कि जिन स्थितियों में एक ही मामले में कई दोषियों को मौत की सजा का सामना करना पड़ रहा है, अगर उन्हें अलग-अलग समय पर स्वतंत्र रूप से अलग-अलग कानूनी उपायों का लाभ उठाने के लिए चुना जाता है, तो फांसी की सजा को लंबा खींचा जा सकता है।किसी भी एक दोषी के मामले में कार्रवाई के लंबित रहने पर ये सभी दोषियों की मौत की सजा को रोक सकता है।
इस पहलू को इंगित करते हुए केंद्र ने कोर्ट से क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका दायर करने के लिए एक समय रेखा तय करने का आग्रह किया है।
आवेदन में कहा गया है कि सह-दोषी की कार्यवाही के लंबित रहने के कारण निष्पादन को रोकने से उस दोषी पर अमानवीय प्रभाव
हो सकता है, जिसके सभी कानूनी उपचार समाप्त हो गए हैं।
आवेदन के अनुसार:
"एक बार सह-दोषी की दया याचिका खारिज हो जाने के बाद, वह अपने भाग्य के बारे में जानता है। हालांकि, उसे तब तक इंतजार करना होगा, जब तक कि अन्य सह-दोषी के संबंध में कार्यवाही लंबित न हो।
यह प्रस्तुत किया गया है कि जहां ऐसे उदाहरण हैं, मौत की सज़ा इसलिए नहीं दी जाती है क्योंकि सह-दोषी या तो डिफ़ॉल्ट रूप से या सोचे समझे तरीके के आधार पर एक के बाद एक पुनर्विचार या क्यूरेटिव / दया याचिका दायर करते हैं, यहां तक कि एक बेलगाम अवस्था में, अन्य सह-दोषियों की सज़ा के निष्पादन में देरी के कारण दया याचिका को पहले ही खारिज कर दिया जाता है।
यह प्रस्तुत किया गया है कि देश में सक्षम न्यायालयों और राज्य की जेलों को या याचिका को खारिज करने के सात दिनों के भीतर मौत का वारंट जारी करने और उसके सह-दोषियों के संबंध में लंबित / प्रत्याशित कार्यवाही के बावजूद सात दिनों के भीतर मौत की सजा को अंजाम देने के लिए इस अमानवीय प्रभाव को हटाया जा सकता है। "
आवेदन में दया याचिका की अस्वीकृति के बाद 14 दिनों की नोटिस अवधि को घटाकर 7 दिन करने का भी प्रयास किया गया है।
निम्नलिखित संशोधन मांगे गए हैं:
• यह घोषणा करें कि न्यायालय द्वारा निर्धारित समय के भीतर ही मौत की सजा पाने वाले दोषी पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं।
• स्पष्ट करें कि कोर्ट द्वारा डेथ वारंट जारी करने के 7 दिनों के भीतर दया याचिका दायर की जानी है।
• दोषी के खिलाफ मौत की सजा को दया याचिका की अस्वीकृति के 7 दिनों के भीतर निष्पादित किया जाना चाहिए, चाहे सह-दोषियों की कानूनी कार्यवाही लंबित हो
शत्रुघ्न चौहान के फैसले के खिलाफ केंद्र की पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिकाओं को क्रमशः 2014 और 2017 में खारिज कर दिया गया था।