एससी एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड्स का इस्तेमाल पोस्टमैन की तरह किया जा रहा है: सुप्रीम कोर्ट ने AoRs के कदाचार से निपटने के लिए SCBA, SCAORA और BCI से विचार मांगे

Sharafat

7 July 2023 1:37 PM GMT

  • एससी एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड्स का इस्तेमाल पोस्टमैन की तरह किया जा रहा है: सुप्रीम कोर्ट ने AoRs के कदाचार से निपटने के लिए SCBA, SCAORA और BCI से विचार मांगे

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने दो वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही के दौरान शुक्रवार को टिप्पणी की कि शीर्ष अदालत में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड का इस्तेमाल पोस्टमैन की तरह किया जा रहा है।

    न्यायाधीश का आशय यह था कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड केवल अन्य वकीलों द्वारा तैयार की गई याचिकाएं दायर कर रहे हैं और दलीलों के संबंध में वे अपना दिमाग नहीं लगाते।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ कर्नाटक हाईकोर्ट की पीठ के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका में किए गए अपमानजनक बयानों पर एक वकील और एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के खिलाफ शुरू की गई स्वत: संज्ञान अवमानना ​​​​याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    आज सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए), सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से इसी तरह के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड द्वारा कदाचार के मामले के समाधान के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करने का अनुरोध किया। पीठ ने मामले की सुनवाई जुलाई के अंत तक स्थगित कर दी।

    पृष्ठभूमि

    प्रैक्टिसिंग एडवोकेट मोहन चंद्र पी ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें कर्नाटक सरकार द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के चयन को चुनौती दी गई थी।

    इस याचिका को हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की गई थी। खंडपीठ ने न केवल रिट अपील को खारिज कर दिया, बल्कि यह भी देखा कि वकील ने अपनी याचिका में जो आरोप लगाए थे, उन्हें साबित करने के लिए अदालत के समक्ष कोई सामग्री नहीं रखी गई थी।

    "रिट याचिका और रिट अपील दायर करके अदालत का सार्वजनिक और न्यायिक समय बर्बाद करने" के लिए, मोहन चंद्र को पांच लाख रुपये का जुर्माना का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    विशेष अनुमति के माध्यम से एक याचिका में वकील ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 'बाहरी कारणों' से उनकी अपील खारिज कर दी थी और बदला लेने के लिए जुर्माना लगाया। उन्होंने आगे लिखा:

    रिट याचिका और रिट अपील के साथ संलग्न दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि [वकील] ने सब कुछ खुलासा किया है और किसी भी महत्वपूर्ण तथ्य को नहीं छिपाया है, जैसा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ ने देखा है।

    केवल प्रतिवादियों के प्रति पक्षपात दिखाने और याचिकाकर्ता को परेशान करने और केवल प्रचार पाने के लिए, खंडपीठ ने एक गुप्त उद्देश्य के लिए जुर्माना लगाया है।"

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने पिछले साल नवंबर में कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ के खिलाफ वकील द्वारा लगाए गए पक्षपात और उत्पीड़न के आरोपों पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी।

    पीठ ने कहा, “उपरोक्त टिप्पणियां न केवल कर्नाटक हाईकोर्ट के लिए अपमानजनक हैं, बल्कि अत्यधिक अवमाननापूर्ण प्रकृति की हैं।” पीठ ने मोहन चंद्र के साथ-साथ एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड विपिन कुमार जय को भी अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया।

    इससे पहले अप्रैल में जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ को बताया गया था कि मोहन चंद्र पर नोटिस की तामील पूरी नहीं की जा सकी है, जिसके जवाब में उसने बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त के माध्यम से उन्हें व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्षों से भी जवाब मांगा।

    पीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "चूंकि इसमें शामिल मुद्दा इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही और वकालत दाखिल करने से संबंधित है, इसलिए यह उचित होगा कि हम कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के प्रेसिडेंट को सुनें।"


    मामले का विवरण

    रि: मोहन चंद्र पी एवं अन्य स्वत: संज्ञान अवमानना ​​याचिका (आपराधिक) नंबर 2/2022 ;मोहन चंद्र पी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य से जुड़े हुए मामले विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 19043/2022

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