1984 सिख विरोधी दंगा:  सज्जन कुमार को फिलहाल राहत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत याचिका जुलाई तक टाली 

LiveLaw News Network

13 May 2020 7:10 AM GMT

  • 1984 सिख विरोधी दंगा:  सज्जन कुमार को फिलहाल राहत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत याचिका  जुलाई तक टाली 

    1984 में हुए सिख विरोधी दंगे में आजीवन कारावास के सजायाफ्ता कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को फिलहाल मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस याचिका पर जुलाई में सुनवाई करेंगे।

    मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ह्रषिकेश राय की पीठ ने बुधवार को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया।

    मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा,

    " फिलहाल, हम उनकी जमानत अर्जी पर फैसला नहीं करना चाहते हैं। एम्स की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को किसी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है। "

    हालांकि इस दौरान सज्जन कुमार की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि हालांकि उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अब उन्हें एक तरह से मौत की सजा दी गई है अगर वह कोरोना संकट के कारण AIIMS में पेश नहीं हुए और उनकी मृत्यु हो गई तो ये फिर अपने आप ही मौत की सजा हो जाएगी। इसलिए उनको अतंरिम जमानत दी जानी चाहिए।

    वहीं सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि यह नरसंहार का मामला था और सज्जन भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे।

    दरअसल जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पांच मार्च की सुबह 10.30 बजे एम्स के मेडिकल बोर्ड के सामने पेश करने को कहा था।

    मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा था कि बोर्ड सज्जन कुमार का परीक्षण कर ये बताएगा कि क्या उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता है और यदि है तो कितने दिनों तक। पीठ ने इसके लिए एक सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे।

    सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि एम्स के मेडिकल बोर्ड ने जांच की है और पाया है कि कुमार सामान्य हैं बस वो हाइपरटेंशन के शिकार हैं।

    पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के निदेशक को डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड बनाकर सज्जन कुमार का मेडिकल परीक्षण करने के निर्देश दिए थे। वहीं इस दौरान सज्जन कुमार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने स्वास्थ्य आधार पर जमानत देने की गुहार लगाई थी। उन्होंने पीठ को बताया था कि सज्जन कुमार का वजन 8 किलो कम हो गया है।

    वहीं पीड़ितों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने जमानत का विरोध किया था और कहा कि पीठ ने पहले ही मामले की सुनवाई 2020 में गर्मियों की छुट्टियों में सूचीबद्ध की है।

    दरअसल कुमार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई थी। इससे पहले 5 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील और सजा के निलंबन की याचिका को 2020 की गर्मियों की छुट्टियों तक टाल दिया था।

    वहीं CBI ने इस जमानत का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में जांच एजेंसी ने कहा है कि सज्जन कुमार शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उनके जेल से बाहर आने पर मामलों के गवाह प्रभावित हो सकते हैं।

    CBI ने कहा है कि सज्जन कुमार की जमानत अर्जी में कोई योग्यता नहीं है और उसे खारिज किया जाना चाहिए।

    गौरतलब है कि 14 जनवरी 2018 को सज्जन कुमार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसमें उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। पीठ ने सज्जन कुमार की जमानत देने की अर्जी पर भी सीबीआई को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा था।

    31 दिसंबर 2018 को सज्जन कुमार ने दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में सरेंडर कर दिया था। इसके बाद उन्हें मंडोली जेल भेजा दिया गया। वहीं इस दौरान सज्जन कुमार के वकीलों ने मांग की थी कि उन्हें तिहाड़ जेल भेजा जाए क्योंकि मामला दिल्ली कैंट थाने का है लेकिन नियमों के तहत सज्जन कुमार को अलग वैन में मंडोली जेल भेजा गया। इससे पहले 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगे में सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी और 31 दिसम्बर 2018 तक आत्मसमर्पण करने को कहा था।

    पीठ ने निचली अदालत के फ़ैसले को पलटते हुए कहा,

    "पीड़ितों को यह आश्वासन देना जरूरी है कि चुनौतियों के बावजूद, सच जीत की होगी।"

    गौरतलब है कि सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ 1984 के सिख विरोधी दंगों में पालम के राजनगर में एक ही परिवार के केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, रघुवेंद्र सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को जान से मारने का दोषी पाया गया है।

    पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को यह दंगा फैला था।आरोपी के ख़िलाफ़ मामला न्यायमूर्ति जीटी नानावटी आयोग के सुझाव के आधार पर 2005 में दायर हुआ था।निचली अदालत ने 2013 में पाँच लोगों को दोषी माना था जिसमें बलवान खोखर, महेंद्र यादव, किशन खोखर, गिरधारी लाल और कैप्टन भागमल शामिल था जबकि सज्जन कुमार को बरी कर दिया था।

    लेकिन सीबीआई ने सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ यह कहते हुए अपील की थी कि भीड़ को उकसाने वाला सज्जन कुमार ही था।

    हाईकोर्ट ने सज्जन के अलावा तीन अन्य दोषियों- कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और कांग्रेस के पार्षद बलवान खोखर की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था। बाकी दो दोषियों - पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा तीन साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई।

    Next Story