सबरीमला संदर्भ : SG ने सुप्रीम कोर्ट से खुद मुद्दों पर विचार करने को कहा, क्योंकि पक्षकारों के वकील सर्वसम्मति पर नहीं पहुंच पाए
LiveLaw News Network
28 Jan 2020 12:20 PM IST

सॉलिसिटर जनरल (SG ) तुषार मेहता ने सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ से कहा कि सबरीमला पुनर्विचार मामले में संदर्भित मौलिक अधिकारों को लेकर 9 जजों की पीठ द्वारा मुद्दे तय किए जाने पर सर्वसम्मति पर नहीं पहुंच पाए हैं और वो इस पर विचार नहीं कर सकते।
SG ने पीठ से मुद्दों को फिर से तैयार करने पर विचार करने का आग्रह किया और सुझावों से युक्त एक मसौदा सौंपा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अनुरोध पर विचार किया जाएगा। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि मामले के लिए 10 दिन की सुनवाई अवधि निर्धारित की जाएगी।
गौरतलब है कि 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि वह आवश्यक धार्मिक प्रथाओं पर मुद्दों को फिर से तैयार करने, आस्था और मौलिक अधिकारों के बीच परस्पर संबंध और धार्मिक प्रथाओं पर न्यायिक समीक्षा की सीमा पर विचार करेगी, जिन्हें 14 नवंबर, 2019 को 5 जजों की बेंच द्वारा सबरीमला पुनर्विचार आदेश में संदर्भित किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेकेट्री से इस उद्देश्य के लिए 17 जनवरी को मामले में शामिल सभी वकीलों की एक बैठक बुलाने को कहा था ताकि सवालों और वकीलों के बीच समय का विभाजन किया जा सके।
पीठ में मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति आर बानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर , न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल हैं।
पीठ ने मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी ( फायर टैंपल) में पारसी महिलाओं के प्रवेश (जिन्होंने बाहरी समुदाय से विवाह किया है) से संबंधित लंबित रिट याचिकाओं को और दाउदी बोहराओं के बीच महिलाओं के खतना की परंपरा की वैधता को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है।
शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया था कि पीठ सबरीमला पुनर्विचार को नहीं सुनेगी बल्कि केवल सबरीमला पुनर्विचार पीठ द्वारा पारित 14 नवंबर 2018 के आदेश में संदर्भित मुद्दों पर विचार करेगी। उन याचिकाओं को तब तक लंबित रखा जाएगा जब तक कि संदर्भित प्रश्नों का निर्धारण नहीं किया जाता।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने प्रस्तुत किया था कि सबरीमला के फैसले को गलत करार दिए बिना संदर्भ संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि शिरूर मठ मामले में 7 न्यायाधीशों की बेंच के फैसले पर भी संदेह नहीं किया गया है ताकि नौ-न्यायाधीशों वाली बेंच के संदर्भ को सही ठहराया जा सके।
त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ ए एम सिंघवी ने प्रस्तुत किया था कि सभी इरादों के बावजूद मुद्दों को बहुत व्यापक रूप से तैयार किया गया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस बात पर सहमति जताई थी कि सात मुद्दों को 'फाइन-ट्यूनिंग' किया जाना है।
इस तरह की दलीलों के आलोक में मुख्य न्यायाधीश ने मुद्दों को फिर से फ्रेम करने के लिए शामिल वकीलों की एक बैठक बुलाने पर सहमति व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों से यह भी आग्रह किया था कि वे सुगम सुनवाई के लिए आपस में बहस के लिए समय का बंटवारा करें जैसा कि अयोध्या मामले की सुनवाई में किया गया था। कोर्ट ने मुद्दों के निपटारे के लिए तीन सप्ताह का समय दिया था और मामले को तीन फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया।
गौरतलब है कि 28 सितंबर, 2018 को मूल निर्णय देने वाली पीठ के न्यायाधीशों में से कोई भी - न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा इस पीठ में शामिल नहीं हैं।
14 नवंबर 2018 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सबरीमला पुनर्विचार याचिकाओं में आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के कुछ सवालों के संदर्भ में आदेश दिया था। उस पीठ ने 3: 2 बहुमत से कहा था कि कुछ समान प्रश्न हैं जो मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित लंबित मामलों में उत्पन्न होने की संभावना है, पारसी महिलाओं फायर टेंपल का उपयोग करने का अधिकार जिन्होंने
धर्म से बाहर विवाह किया था, की प्रथा की वैधता और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना की प्रथा आदि।