"नियम कानून की धारा के विपरीत" : पशु क्रूरता की रोकथाम के लिए पशु नियमावली 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जानवरों को बेचने का यह मतलब नहीं है कि जानवरों के साथ क्रूरता की गई

LiveLaw News Network

11 Jan 2021 11:38 AM GMT

  • नियम कानून की धारा के विपरीत : पशु क्रूरता की रोकथाम के लिए पशु नियमावली 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जानवरों को बेचने का यह मतलब नहीं है कि जानवरों के साथ क्रूरता की गई

    सीजेआई एस ए बोबड़े की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच ने जानवरों की क्रूरता की रोकथाम (केयर एंड मेंटेनेंस ऑफ केस प्रॉपर्टी एनिमल्स रूल्स, 2017) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जानवरों को बेचने का यह मतलब नहीं है कि जानवरों के साथ क्रूरता की गई है। बिक्री से आजीविका में मदद मिलती है। हम एक ऐसी स्थिति के बारे में बात कर रहे हैं, जहां जानवरों को बाहर दूसरी जगह पर ले जाया जाता है। इसे ही बेचना कह जाता है।

    दरअसल, केयर एंड मेंटेनेंस ऑफ केस प्रॉपर्टी एनिमल्स) रूल्स, 2017 अधिकारियों को मवेशी परिवहन में प्रयुक्त वाहनों को जब्त करने और पशुओं को गौशालाओं या गौ आश्रमों में भेजने की अनुमति देते हैं।

    पीठ ने कहा कि,

    "हमने आपको पिछली बार बताया था कि नियम विरोधाभासी धारा है। जानवर, लोगों के लिए आजीविका का स्रोत हैं। सेक्शन स्पष्ट करता है कि दोषसिद्धि के बाद ही जानवरों को ले जाया जा सकता है। वहीं नियम कहता है कि दोषसिद्धि के पहले भी जानवरों को दूर ले जाने की अनुमति है।"

    सीजेआई ने लागू नियमों के एक प्रावधान पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया है कि अधिकारी जानवरों को बाहर ले जाने की अनुमति देता है, तो यह नियम दोषसिद्धि से पहले ही क्रूरता के अधीन माना जाएगा।

    4 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने चेतावनी देते हुए कहा था कि,

    "केंद्र सरकार को इस कानून को वापस लेना होगा, नहीं तो कोर्ट खुद इस नियम पर रोक लगा देगा।"

    सीजेआई बोबड़े ने एएसजी जयंत सूद से कहा कि,

    "देखने में साफ है कि नियम, मूल क़ानून के विपरीत हैं। पशु जीविका के स्रोत हैं न कि बिल्ली और कुत्ते। आप इसे दूर नहीं कर सकते हैं, और यह अधिनियम की धारा 29 के खिलाफ भी है। आपके नियम विरोधाभासी हैं। आप इसे बदल दीजिए या फिर इसे रोक दीजिए।"

    आज की सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सॅालिसिटर जनरल यानी एसजी से पूछा कि सरकार नियमों के बारे में क्या करने की योजना बना रही है?

    इस बिंदु पर, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि,

    "जब्ती के प्रावधान से पीड़ित पक्ष कस्टडी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।"

    सॅालिसिटर जनरल ने आगे कहा कि,

    "याचिकाकर्ता खुद जब्ती और अधिहरण के बीचे के अंतर को समझ नहीं पा रहा है। क्रूरता के अधीन एक पशु को व्यक्ति द्वारा अनुमति नहीं दी जा सकती। किसी भी जब्ती के मामले में, पक्ष कस्टडी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।"

    एसजी ने यह भी बताया कि इस मामले में विस्तृत रूप से उत्तर दिया गया है।

    सीजेआई, अब इस मामले में सरकार द्वारा दायर जवाबी हलफनामे पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है। उन्होंने नियमों का विरोध करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी और अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के माध्यम से स्थानांतरित किए गए हस्तक्षेप के आवेदन को भी अनुमति दी है।

    वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि लागू नियम सजा से पहले भी जब्ती की अनुमति देते हैं, और उनकी प्रस्तुतियों में ये ही संकेत दिया जाएगा।

    पिछले हफ्ते, सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने चेतावनी दी थी कि केंद्र सरकार को इस नियम को वापस लेना होगा, नहीं तो कोर्ट खुद इस नियम पर रेक लगा देगी।

    बफ़ेलो ट्रेडर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि,

    "पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (देखभाल और मामले संपत्ति जानवरों की देखभाल) नियम 2017 और पशुओं की क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजार का विनियमन) नियम 2017, 23 मई 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किए गए थे। ये कानून प्रकृति रूप से असंवैधानिक हैं।"

    आगे कहा कि,

    "अधिनियम में ही विरोधाभास है। इसके चलते जानवरों की लगातार लूटपाट होती है। यह नियमों का उल्लंघन है। कुछ समूह कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। समाज के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए ट्रिगर के रूप में काम कर रहे हैं। इन लोगों को सही तरीके से तुरंत नहीं रोका गया, तो ये लोग देश के सामाजिक तत्वों का विनाश कर देंगे।"

    साल 2017 में केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि वह इन नियमों को वापस लेने पर विचार कर रही है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह भारत संघ का भी तर्क है कि नियमों के कथित रूप से अस्वीकार्य और अस्वीकार्य प्रावधानों को दर्शाने वाली बड़ी संख्या में अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं, और इस याचिका के अलावा भी विभिन्न याचिकाओं विभिन्न हाईकोर्ट में दायर किए गए हैं। इससे यह इंगित होता है कि अभ्यावेदन और रिट याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे भारत सरकार द्वारा नए सिरे से विचार किए जाने के विषय हैं। दाखिल की गईं याचिकाएं वर्तमान में पर्यावरण और वन मंत्रालय पर सवाल उठा रहे हैं। इस मामले को देखते हुए सरकार को इस नियम यानी जब्ती के नियम को वापस ले लेना चाहिए और बाद में उचित संशोधन करके इसे वापस सबके सामने प्रस्तुत करना चाहिए और हमें फिर से अधिसूचित किया जाना चाहिए। हम भारत सरकार की ओर से इस अदालत में किए गए उपरोक्त बयान को रिकॉर्ड करते हैं।"

    इस तरह, पीठ ने नियमों को चुनौती देने वाले दलीलों के समूह का निपटारा किया था। इसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट द्वारा पारित स्टे ऑर्डर पूरे देश में लागू हैं।

    Next Story