उन लोगों के खिलाफ राहत का दावा नहीं किया जा सकता जो सीपीसी आदेश XXXVII के तहत दायर संक्षिप्त मुकदमे से संबंधित दस्तावेज के बारे में नहीं जानते : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 Nov 2019 5:01 AM GMT

  • उन लोगों के खिलाफ राहत का दावा नहीं किया जा सकता जो सीपीसी आदेश XXXVII के तहत दायर संक्षिप्त मुकदमे से संबंधित दस्तावेज के बारे में नहीं जानते : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ राहत का दावा नहीं किया जा सकता है जो समझौते के बारे में हुए करार के बारे में नहीं जानते। ये ऐसे करार हैं जिनके आधार पर सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत हुए संक्षिप्त कार्यवाही शुरू की गई और इस तरह के व्यक्तियों को इस कार्यवाही में पक्षकार नहीं बनाया जा सका।

    इस संबंध में न्यायमूर्ति राजीव एन्दलाव ने कहा,

    "सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत किसी मुकदमे पर तभी गौर किया जा सकता है, जब आदेश XXXVII की सीमा के तहत कोई दावा किया जाता है।"

    वादियों ने ऐसे लोगों के खिलाफ राहत की मांग की जिन्हें उन दस्तावेजों के बारे में पता नहीं था, जिसके आधार पर आदेश XXXVII के तहत मामला दायर किया गया था। इसके बावजूद की जब मामले पर विचार किया गया तो संयुक्त रजिस्ट्रार ने इन बातों को नहीं देखा। इस मामले को सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत नहीं माना जाएगा।"

    यह संक्षिप्त मामला सत्य प्रकाश एवं ब्रदर्स (प्रा.) लि. ने एक समझौते के करार के आधार पर दायर किया था जिस पर कुतब रियल्कन प्राइवेट लिमिटेड की ओर से कथित तौर पर पीयूष गोयल ने हस्ताक्षर किए थे।

    कुतब रियल्कन प्राइवेट लिमिटेड और पीयूष गोएल के अलावा हालांकि वादी ने अभिषेक सराफ, हनुमान सिंह और रवि कुमार को भी इसमें बचाव पक्ष में शामिल किया था जो सभी कुतब रियल्कन प्राइवेट लिमिटेड में निदेशक हैं।

    यह कहते हुए कि उपरोक्त प्रतिवादियों का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है और संक्षिप्त कार्यवाही पर तभी गौर किया जा सकता है जब सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत दावा किया जाता है।

    न्यायमूर्ति राजीव एन्दलाव ने कहा,

    "मैंने वादी के वरिष्ठ वकीलों की राय ली है कि कैसे सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत उन लोगों के खिलाफ मामले दायर किये गए हैं जो इस मामले से संबंधित दस्तावेजों जैसे रसीद/समझौते का करार और चेक के बारे में नहीं जानते। कंपनी के निदेशक के रूप में प्रतिवादी नंबर 3 से 5 ने अगर किसी चेक पर हस्ताक्षर भी किए हैं तो भी उस चेक की राशि के भुगतान के लिए वे निजी रूप से जिम्मेदार नहीं होंगे।"

    यह कहते हुए की अब कार्यवाही की इस स्थिति में इन तीन निदेशकों का नाम हटाने का भी कोई मतलब नहीं है, अदालत ने कहा,

    "सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत मामला अदालत में स्वीकार्य है कि नहीं इसका निर्णय शुरू में ही होना चाहिए था तथ्य यह है कि सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत नियम 2b के प्रावधान के अनुसार वादी को यह स्पष्ट रूप से बताना है कि सीपीसी के आदेश XXXVII की परिधि के अलावा और किसी भी तरह के राहत का दावा नहीं किया गया है।

    यह तथ्य की इस तरह की घोषणा करने की जरूरत है, इस बात को स्पष्ट करता है की वादी सीपीसी के आदेश XXXVII की परिधि के अलावा और किसी भी तरह का दावा नहीं कर सकता और जैसे ही वह इस तरह का दावा करता है, वादियों को कार्यवाही के पहले ही दिन सीपीसी के आदेश XXXVII के तहत होने वाली इस कार्यवाही से निकाल दिया जाना चाहिए था, लेकिन यह तथ्य कि संयुक्त रजिस्ट्रार ने इस मामले को स्वीकार कर लिया, अब इस अदालत को इस गलती को ठीक करने में बाधा नहीं बन सकता।"

    सीपीसी के आदेश XXXVII के नियम 2(1)(b) में कहा गया है कि संक्षिप्त सुनवाई इस शिकायत पर आधारित होगी, जिसमें यह कहा गया है कि "शिकायत में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है जो इस नियम के दायरे में नहीं आता।"

    इस तरह, संक्षिप्त कार्यवाही शुरू किये जाने के आवेदन को अदालत ने खारिज कर दिया और अदालत ने निर्देश दिया कि अगर कोई मुद्दा है तो उसके निर्धारण के लिए मामले को सूचीबद्ध किया जाए।


    Next Story