सही पाये जाने पर 'संबद्ध' गवाहों की गवाही भी दोषसिद्धि का आधार हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

11 Oct 2020 4:45 AM GMT

  • सही पाये जाने पर संबद्ध गवाहों की गवाही भी दोषसिद्धि का आधार हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'सम्बद्ध' गवाहों की गवाही यदि सही पायी जाती है तो यह दोषसिद्धि का आधार हो सकती है।

    न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि यदि गवाह दूसरे प्रकार से विश्वास करने योग्य हैं तो अतीत की दुश्मनी भी अपने आप में किसी भी गवाही को दरकिनार नहीं करेगी।

    कोर्ट ने हत्या के एक मामले में पांच अभियुक्तों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 148, 302 एवं धारा 149 के तहत दोषी ठहराये जाने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील खारिज कर दी। कारुलाल, अमरा, कचरु, सूरत राम और भगीरथ को माधवजी नामक व्यक्ति की हत्या का अभियुक्त बनाया गया था।

    बेंच ने अभियुक्तों द्वारा उठाये गये मुद्दों का निपटारा करते हुए 'दलीप सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब सरकार एआईआर 1953 एससी 364', 'खुर्शीद अहमद बनाम जम्मू एवं कश्मीर सरकार (2018) 7 एससीसी 429' और 'उत्तर प्रदेश सरकार बनाम सम्मान दास (1972) 3 एससीसी 201' में दिये गये फैसलों का हवाला देते हुए 'सम्बद्ध गवाह' के साक्षीय महत्व को लेकर पूर्व के निर्णयों एवं कानून पर संक्षेप में विचार किया। कोर्ट ने कहा कि मृतक से सम्बद्ध होने का यह कतई अर्थ नहीं होता कि वे निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाएंगे। कोर्ट ने कहा कि एक असम्बद्ध गवाह ने इस मामले में सम्बद्ध गवाहों की गवाही का समर्थन किया था।

    बेंच ने कहा :

    "उपरोक्त दृष्टांत पूरी तरह स्पष्ट करते हैं कि यदि सम्बद्ध गवाह की गवाही सही पायी जाती है तो यह दोषसिद्धि का आधार हो सकता है तथा हमारे पास यह विश्वास करने का प्रत्येक कारण है कि अभियोजन पक्ष के गवाह - पीडब्ल्यू 3 और पीडब्ल्यू 12- मौके पर ही मौजूद थे तथा उन्होंने आरोपियों की पहचान की थी, जिनके हाथ में विभिन्न प्रकार के घातक हथियार थे।"

    अभियुक्तों और गवाहों के बीच पुरानी दुश्मनी के विवादित मुद्दे का निपटारा करने के लिए बेंच ने 'सुशील एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 1995 एसयूपीपी 1 एससीसी 363' का हवाला देते हुए कहा :

    "यदि गवाह दूसरे प्रकार से भरोसे के लायक है तो पुरानी दुश्मनी अपने आप किसी गवाह की गवाही को दरकिनार नहीं करेगी। दरअसल खराब 'खून' का इतिहास अपराध का स्पष्ट उद्देश्य प्रदान करता है। इसलिए हमारा मानना है कि मौजूदा मामले में यह पहलू बचाव पक्ष को सहयोग नहीं करता है।"

    इस मामले में एक और पहलू विवादित था कि कुछ गवाहों ने अभियोजन के केस का समर्थन नहीं किया था तथा उन गवाहों को मुकरा हुआ (होस्टाइल) घोषित कर दिया गया था।

    अपील खारिज करते हुए बेंच ने कहा :

    "लेकिन (इस मामल में) पर्याप्त मेटेरियल साक्ष्य और भरोसेमंद गवाह मौजूद हैं, जो स्पष्ट रूप से अभियुक्त के खिलाफ मामले का समर्थन करते हैं और अभियोजन को केवल इस आधार पर विफल होने की आवश्यकता नहीं है। कुछ गवाह अपने कारणों से अभियोजन पक्ष के अभियोग का समर्थन नहीं भी कर सकते हैं और इस स्थिति में, कोर्ट के लिए यह तय करना जरूरी है कि क्या अन्य उपलब्ध साक्ष्य समग्र तौर पर आरोप साबित करते हैं या नहीं? इस मामले में यह देखा गया कि अभियोजन पक्ष का विवरण अकाट्य और तीन चश्मदीद गवाहों द्वारा समर्थित है, जिन्होंने इस घटना का तार्किक और एकरूप विवरण दिया है। उनकी गवाही की पुष्टि मेडिकल साक्ष्य से भी होती है। ट्रायल जज ने दोनों पक्षों की ओर से पेश साक्ष्यों पर विस्तृत तौर पर चर्चा की और वह एक तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचे, जो विश्वास से ओत-प्रोत है। इसलिए हमारा मानना है कि गवाहों के मुकर जाने से अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

    केस का नाम : कारुलाल बनाम मध्य प्रदेश सरकार

    केस नं. : क्रिमिनल अपील नंबर 316 / 2011

    कोरम : न्यायमूर्ति एन वी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय

    वकील : एडवोकेट एम. टी. महिपाल, डिप्टी एडवोकेट जनरल अंकिता चौधरी

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