जब अपराध क्षेत्राधिकार के बाहर किया गया हो तो ज़ीरो FIR का पंजीकरण अनिवार्य : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Dec 2019 8:27 AM GMT

  • जब अपराध क्षेत्राधिकार के बाहर किया गया हो तो  ज़ीरो FIR का पंजीकरण अनिवार्य : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि वे कानून के अनुसार कार्यवाही न करने वाले उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करें, जिन्होंने 'जीरो एफआईआर' दर्ज करने से इनकार कर दिया था। साथ ही पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि वे शहर के सभी पुलिस स्टेशनों को एक सर्कुलर जारी करें, जिसमें कहा जाए कि जब उन्हें एक संज्ञेय अपराध की शिकायत प्राप्त हो, तब वह 'जीरो एफआईआर' दर्ज करें, भले ही अपराध उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हुआ हो।

    न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने निर्देश पारित करते हुए दिल्ली के पुलिस आयुक्त को यह भी निर्देश दिया है कि सर्कुलर जारी करके यह भी कहा जाए कि यदि किसी कारण से मामले को बंद किया जाना है तो उसे यथोचित आदेश के साथ बंद किया जाए और बिना किसी देरी के इस बारे में शिकायतकर्ता को लिखित में सूचित किया जाए।

    यह है मामला

    बबीता शर्मा, इस मामले में प्रतिवादी नंबर 7 ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 10 अप्रैल 2017 को नजफगढ़ पुलिस स्टेशन में शिकायत की थी और जालसाज़ी करने का आरोप लगाया था। उक्त थाने के एस.एच.ओ ने याचिकाकर्ता से गहन पूछताछ करने के बाद मामले को बंद कर दिया था और पहली शिकायत के निष्कर्ष को बबीता शर्मा ने किसी भी अदालत या किसी उच्च अधिकारी के समक्ष चुनौती नहीं दी।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि बबीता शर्मा (प्रतिवादी नंबर 7) ने बाबा हरिदास नगर और नजफगढ़ पुलिस स्टेशनों के समक्ष समान तथ्यों के साथ आरोप लगाते हुए क्रमशः 04 अप्रैल 2018 और 03 जून 2019 को दूसरी और तीसरी बार शिकायत दर्ज की।

    याचिकाकर्ता को संबंधित जांच अधिकारी (आई.ओ) ने दोनों बार जांच के लिए विधिवत रूप से बुलाया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने अधिकारी को बताया था कि समान तथ्यों पर प्रतिवादी नंबर 7 की तरफ से दायर इसी तरह की शिकायतों को पहले ही बंद किया जा चुका है। जिसके बाद, याचिकाकर्ता को संबंधित जांच अधिकारी द्वारा किसी भी आगे की पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया था।

    जब 26 जुलाई 2019 को बबिता शर्मा (प्रतिवादी नंबर 7) द्वारा चैथी बार उन्हीं तथ्यों के आधार पर आरोप लगाते हुए सटीक शिकायत कापसहेड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, तो उक्त पुलिस स्टेशन के एस.आई ने याचिकाकर्ता को जांच में सहयोग करने के लिए बुलाया था। हालांकि, उसने एसआई को विधिवत रूप से बबीता शर्मा (प्रतिवादी नंबर 7) द्वारा समान तथ्यों के आधार पर दायर इसी तरह की शिकायतों के बारे में समझाया, परंतु अधिकारी ने उसके द्वारा दी गई जानकारी पर कोई ध्यान नहीं दिया।

    बदले में उसे अमानवीय तरीके से धमकाया कि अगर याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 7 द्वारा रिश्वत के रूप में मांगे पैसे नहीं दिए तो उसे गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील कि कापसहेड़ा के एस.आई व अन्य द्वारा याचिकाकर्ता का उत्पीड़न किया गया। जिसके बारे में विधिवत रूप से पुलिस आयुक्त को सूचित किया गया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

    राज्य की ओर से पेश हुए एपीपी ने माना कि शिकायतों की सामग्री के अनुसार, संज्ञेय अपराध बनता था और नजफगढ़ पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए थी।

    अदालत ने कहा,

    "सीआरपीसी की धारा 154 के अनुसार, यदि किसी भी पुलिस स्टेशन को संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित कोई भी सूचना मिलती है तो पुलिस स्टेशन उस मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है। अदालत ने आगे कहा, यदि अपराध उक्त पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, तो 'जीरो एफआईआर' दर्ज करने के बाद, उसे आगे की जांच के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाना चाहिए जहां अपराध किया गया है।"

    अदालत ने कहा,

    ''यह विवाद में नहीं है कि दिसंबर 2012 में हुए जघन्य 'निर्भया कांड' के बाद नए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 में 'जीरो एफआईआर' का प्रावधान न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट में एक सिफारिश के रूप में सामने आया था। प्रावधान में कहा गया है 'जीरो एफआईआर' पीड़ित के द्वारा किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है, भले ही उसके आवास या अपराध की घटना का स्थान कोई भी हो।'' यह भी विवाद में नहीं है कि ''पिछले कई वर्षों से 'जीरो एफआईआर'भारत में प्रचलित है।''

    इस प्रकार, उक्त प्रावधान या तथ्य के बारे में पता होने के बावजूद, किसी भी पुलिस स्टेशन ने प्रतिवादी नंबर 7 की शिकायत पर मामला दर्ज नहीं किया, जबकि संयुक्त रूप से माना गया है कि प्रतिवादी नंबर 7की शिकायत के अनुसार संज्ञेय अपराध किया गया है।

    इस प्रकार, शिकायतकर्ता/प्रतिवादी नंबर 7 को ऊपर बताए गए पुलिस स्टेशनों की निष्क्रियता के कारण दर-दर भटकने या एक थाने से दूसरे थाने पर जाने के लिए मजबूर किया गया था।

    याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि

    "इस प्रकार, मैं दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देता हूं कि वह एनसीटी दिल्ली के सभी पुलिस स्टेशनों और सभी संबंधितों को परिपत्र या स्थायी आदेश जारी करें कि यदि किसी पुलिस स्टेशन में संज्ञेय अपराध की शिकायत प्राप्त होती है, और अपराध अन्य पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार में हुआ है तो उस मामले में, वह पुलिस स्टेशन 'जीरो एफआईआर' दर्ज करें,जिसे इस तरह की शिकायत प्राप्त हुई है और उसके बाद मामले को संबंधित पुलिस स्टेशन को हस्तांतरित कर दिया जाए।

    मैं आगे, इस मामले में दिल्ली के पुलिस आयुक्त को परिपत्र/ स्थायी आदेश जारी करने का निर्देश देता हूं कि कोई शिकायत सीआरएल.एम.सी यानि क्रिमनल शिकायत 5933/2019 के पेज नंबर 13 पर दिए गए 13 कारणों में से किसी भी कारण से बंद किया जाना है, तो उसे यथोचित आदेश के साथ बंद किया जाए और बिना किसी देरी के इस बारे में शिकायतकर्ता को लिखित में सूचित किया जाए।"


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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