कर्मचारियों का मुआवजा: अपंगता की सीमा में इस आधार पर कटौती कि डब्ल्यूएचओ के मानदंड उन्नत देशों के लिए हैं न कि भारत के लिए टिकाऊ नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

21 Nov 2021 11:15 AM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत मुआवजा अवार्ड में कटौती से संबंधित एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (15 नवंबर) को कहा कि विकलांगता की सीमा को इस आधार पर कम करना कि डब्ल्यूएचओ के मानदंड उन्नत देशों के लिए हैं, भारत के संबंध में नहीं हैं, स्पष्ट तौर पर टिकाऊ नहीं है।

    न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के संबंध में यह टिप्पणी की जिसमें कर्मचारी की अपंगता की सीमा को केवल इसलिए कम किया गया था, क्योंकि इसका मूल्यांकन डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के आधार पर किया गया था।

    मूल रूप से मूल्यांकन की गई अपंगता की सीमा 45% थी, जिसे बाद में घटाकर 15% कर दिया गया था।

    यह देखते हुए कि 45% (मूल गणना) की अपंगता का आकलन, डॉक्टर के अनुसार, एएलएमसीओआई और डब्ल्यूएचओ के मैनुअल के माध्यम से किया गया था, बेंच ने कहा कि चिकित्सा अध्ययन उन्नत देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के संबंध में है।

    बेंच ने कहा,

    "इसलिए, अपंगता की सीमा को इस आधार पर कम करना कि डब्ल्यूएचओ के मानदंड उन्नत देशों के लिए हैं और भारत के संबंध में नहीं हैं, स्थायी तौर पर टिकाऊ नहीं है।"

    वर्तमान अपील कर्नाटक हाईकोर्ट के दिनांक 27.03.2018 के उस आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, जिसके तहत आयुक्त द्वारा कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत 5,46,711 रुपये की राशि और छह प्रतिशत की दर से ब्याज के एक अवार्ड को संशोधित करके 1,47,124 रुपये एवं 12% की दर से ब्याज का आदेश दिया गया था।

    हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कम कर दिया था कि आयुक्त द्वारा अपीलकर्ता की अपंगता की सीमा का मूल्यांकन 45 प्रतिशत किया गया था, जबकि यह 15% है।

    चिकित्सा साक्ष्य को अस्वीकार करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा दिया गया एकमात्र तर्क यह है कि डॉक्टर ने विश्व स्वास्थ्य संगठन [डब्ल्यूएचओ] के मानदंडों के अनुसार अपंगता का आकलन किया है और ऐसे मानदंड सामाजिक-आर्थिक कारकों से उत्पन्न होते हैं जो उन्नत देशों में संचालित होते हैं, न कि भारत जैसे देश में।

    यह देखते हुए कि हाईकोर्ट का पूरा तर्क स्पष्ट रूप से अवैधता से ग्रस्त है, बेंच ने 15% के आधार पर अपंगता आकलन के हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया और अपीलकर्ता की 45% अपंगता के आधार पर आयुक्त द्वारा दिये गये 5,46,711 रुपये के अवार्ड को बहाल कर दिया।

    अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता मंजूनाथ मेलेड, संदीप शर्मा और गणेश कुमार के माध्यम से किया गया।

    प्रतिवादी कंपनी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता जे पी एन शाही और रामेश्वर प्रसाद गोयल के माध्यम से किया गया था।

    केस शीर्षक: श्री सलीम बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य, एसएलपी (सीआरएल) 2621/2019

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