बार काउंसिल के पदाधिकारी नहीं होने पर भी हड़ताल के दिन पेश नहीं होने वाले वकीलों को जारी अवमानना नोटिस पर पुनर्विचार करें: सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाईकोर्ट से कहा

Shahadat

11 Oct 2023 6:21 AM GMT

  • बार काउंसिल के पदाधिकारी नहीं होने पर भी हड़ताल के दिन पेश नहीं होने वाले वकीलों को जारी अवमानना नोटिस पर पुनर्विचार करें: सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाईकोर्ट से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई की। इस अपील में लंबित मामलों के निपटान की योजना के खिलाफ राज्य में वकीलों की हड़ताल के मद्देनजर अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मामला उठाया गया है।

    आक्षेपित आदेश में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया,

    "यदि कोई वकील जानबूझकर अदालत में पेश होने से बचता है तो यह माना जाएगा कि इस आदेश की अवज्ञा हुई है और उसे अवमानना ​​के तहत अदालत की अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने सहित गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा।"

    उक्त निर्देश के परिणामस्वरूप, 2500 से अधिक वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की गई। वर्तमान अपील में वरुण ठाकुर नाम के वकीलों में से एक, जिनके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की गई, ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने ठाकुर की शिकायत सुनने और यह देखने के बाद कि मुद्दा अब लगभग सुलझ चुका है, उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। साथ ही कहा कि उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर फिर से विचार कर सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि हड़ताल के दिन पेश नहीं होने वाले सभी वकीलों के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया गया है।

    उन्होंने कहा,

    “मैं जानबूझकर उपस्थित नहीं हुआ हूं। मैं उपस्थित नहीं हुआ, क्योंकि बार काउंसिल ने हड़ताल का आह्वान किया था। मैं और अन्य वकील बार काउंसिल के आह्वान को नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए कार्रवाई बार काउंसिल और उसके सदस्यों के खिलाफ हो। 2500 से अधिक अवमानना याचिकाएं लंबित थीं और इसका वकीलों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है।”

    वकील की बात सुनने के बाद बेंच ने आदेश दिया:

    “वकील का कहना है कि जब बार एसोसिएशन/बार काउंसिल द्वारा हड़ताल का आह्वान किया जाता है तो वकीलों को अदालती कार्यवाही में भाग लेना व्यावहारिक रूप से मुश्किल लगता है और उनके लिए शारीरिक रूप से खतरे में पड़ना संभव नहीं है। इस प्रकार, गंभीर परिणामों वाली अवज्ञा की धारणा (जैसा कि विवादित आदेश में बताया गया है) के परिणामस्वरूप 2500 से अधिक वकीलों को नोटिस जारी किए गए। अब हमें बताया गया कि मामला अब काफी हद तक सुलझ गया है, लेकिन शिकायत यह है कि वे अवमानना नोटिस अभी भी बचे हुए हैं। हमारा मानना है कि यह उचित है कि हाईकोर्ट इस मुद्दे पर फिर से विचार करे... जिससे सभी वकील जो कार्यवाही में भाग लेने में सक्षम नहीं हैं और जो पदाधिकारी नहीं हैं, उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान न होना पड़े।”

    तथ्यात्मक परिदृश्य

    दिनांक 20.03.2023 के पत्र द्वारा मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को इस आशय का पत्र लिखा कि जब तक प्रत्येक तिमाही में 25 चिन्हित मामलों के निपटारे से संबंधित योजना 22.03.2023 तक वापस नहीं ली जाती, वे इस मुद्दे पर गंभीरता से विरोध करेंगे। इसमें आगे कहा गया कि आम सभा ने 18.03.2023 को हुई अपनी बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि यदि हाईकोर्ट 22.03.2023 तक के 25 सबसे पुराने मामलों के निपटारे से संबंधित योजना को वापस नहीं लेता है तो राज्य के सभी वकील मध्य प्रदेश सामूहिक रूप से विरोध प्रदर्शन करेगा और 10 मई से न्यायिक कार्य से विरत रहेगा।

    विवादित आदेश

    आक्षेपित आदेश में न्यायालय ने कहा कि "न्यायालय सुप्रीम कोर्ट (पूर्व कैप्टन हरीश उप्पल के मामले) के आदेशों की घोर अवज्ञा के प्रति मूकदर्शक नहीं रह सकता है।" कानून के शासन को कायम रखना और ऐसे सभी व्यक्तियों से निपटना इस अदालत का गंभीर कर्तव्य है जो कानून का उल्लंघन करते हैं और जिनके मन में कानून के शासन के प्रति कोई सम्मान नहीं है।''

    न्यायालय ने गलती करने वाले वकीलों को आड़े हाथों लिया और कहा कि वकील का कर्तव्य अपने मुवक्किलों के कानूनी अधिकारों के लिए लड़ना और कानून का शासन सुनिश्चित करना है। कानून का शासन कानूनी पेशे के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है। इसलिए कानून का शासन कायम रखना प्रत्येक वकील का कर्तव्य है।

    न्यायालय ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि प्रवीण पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य रिट याचिका नंबर 8078/2018 के मामले में अभियुक्तों, अर्थात् मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल और अन्य द्वारा दिए गए वचन को दिनांकित आदेश में नोट किया गया था। 22.03.2016 को अवमानना याचिका नंबर 296/2016 में इस आशय से पारित किया गया कि अब से एहतियात बरती जाएगी और यदि किसी भी तरह के विरोध का सहारा लेने की आवश्यकता होती है तो बार काउंसिल पूर्व कैप्टन के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को सख्ती से सुनिश्चित करेगी। साथ ही हरीश उप्पल बनाम भारत संघ और अन्य (2003) में रिपोर्ट की गई 2 एससीसी 45 कार्रवाई की जाएगी।

    पूर्व कैप्टन हरीश उप्पल के मामला में यह आयोजित किया गया:

    “निष्कर्ष रूप में यह माना जाता है कि वकीलों को हड़ताल पर जाने या बहिष्कार का आह्वान करने का कोई अधिकार नहीं है, सांकेतिक हड़ताल पर भी नहीं। विरोध, यदि कोई आवश्यक है, केवल प्रेस वक्तव्य देकर, टीवी इंटरव्यू देकर, अदालत परिसर के बाहर बैनर और/या तख्तियां लेकर, काली या सफेद या किसी भी रंग की बांह की पट्टी पहनकर, अदालत परिसर के बाहर और दूर शांतिपूर्ण विरोध मार्च करके, धरना देकर या क्रमिक अनशन आदि द्वारा किया जा सकता है। यह माना जाता है कि अपने मुवक्किलों की ओर से वकालत करने वाले वकील हड़ताल या बहिष्कार के आह्वान के अनुसरण में अदालतों में उपस्थित होने से इनकार नहीं कर सकते। सभी वकीलों को साहसपूर्वक हड़ताल या बहिष्कार के किसी भी आह्वान का पालन करने से इनकार कर देना चाहिए।”

    हाईकोर्ट ने इस तरह के कृत्य की निंदा की और कहा,

    “माननीय चीफ जस्टिस की अनुमति पहले ही प्राप्त कर ली जानी चाहिए थी। प्रतिवादी नंबर 1 ऐसा करने में विफल रहा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया।”

    आदेश के अंत में निर्देश पारित करने से पहले न्यायालय ने कहा कि संपूर्ण न्यायिक प्रणाली केवल वादकारियों के लाभ के लिए है। सिस्टम में हर कोई वादियों की शिकायतों से निपटने के लिए तैयार है। यदि प्रतिवादी नंबर 1 के आह्वान के कारण वकील स्वयं काम से विरत रहते हैं तो यह वास्तव में मध्य प्रदेश राज्य के लिए बहुत दुखद दिन है।

    हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर पीठ में वकीलों की हड़ताल की निंदा की; और बार एसोसिएशन को नोटिस जारी किया।

    केस टाइटल: वरुण ठाकुर बनाम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, डायरी नंबर 32303 - 2023

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