तुगलकाबाद रविदास मंदिर : ट्रस्ट का गठन ना करने पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल

LiveLaw News Network

20 Feb 2020 8:23 AM GMT

  • तुगलकाबाद रविदास मंदिर : ट्रस्ट का गठन ना करने पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल

    दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित रविदास मंदिर के निर्माण को लेकर पूर्व लोकसभा सांसद अशोक तंवर ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना ​​याचिका दायर की है। अपनी अवमानना ​​याचिका में तंवर ने कहा है कि उनकी रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2019 में गुरु रविदास मंदिर के पुनर्निर्माण और मूर्तियों और समाधि की बहाली का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक समिति गठित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था जो गुरु रविदास मंदिर का निर्माण करेगी लेकिन आज तक ऐसी कोई समिति नहीं बनाई गई है।

    अवमानना ​​याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रस्ट के गठन का सिद्धांत अयोध्या मामले में भी अपनाया गया गया और ये फैसला रविदास मामले में आदेश के बाद दिया गया था।

    याचिका में कहा गया कि सरकार ने पहले से ही अयोध्या मामले में ट्रस्ट का गठन किया है, लेकिन अनुसूचित जाति द्वारा पूजे जाने वाले गुरु रविदास के बारे में कुछ नहीं किया। डीडीए के उपाध्यक्ष और दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के खिलाफ ये अवमानना ​​याचिका दायर की गई है।

    दरअसल 25 नवंबर 2019 को दिल्ली के तुगलकाबाद में रविदास मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पक्के निर्माण का रास्ता साफ करते हुए स्पष्ट किया था कि मंदिर के पुननिर्माण के लिए पक्के निर्माण का ही आदेश जारी किया गया था।

    गौरतलब है 21 अक्तूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए उसी जगह पर मंदिर बनाने के निर्देश दिए थे। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी थी जिसमें 200 वर्ग मीटर की जगह 400 वर्ग मीटर जगह मंदिर के लिए देने की बात कही गई ।

    अपने आदेश में पीठ ने कहा था कि मंदिर के लिए स्थायी निर्माण होगा और केंद्र सरकार निर्माण के लिए 6 हफ्ते में एक समिति का गठन करेगी । पीठ ने स्पष्ट किया था कि मंदिर में और इसके आसपास कोई भी व्यावसायिक गतिविधि या पार्किंग नहीं होगी। पीठ ने सरकार को निर्देश दिए थे कि मंदिर के ढहाए जाने के विरोध में हुए प्रदर्शन में गिरफ्तार लोगों को निजी मुचलके पर छोड़ दिया जाए।

    दरअसल दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित रविदास के मंदिर को डीडीए द्वारा ढहा दिया गया था। डीडीए का दावा रहा है कि मंदिर अवैध तरीके से कब्ज़ा की गई ज़मीन पर बना था। सुप्रीम कोर्ट ने नौ अगस्त 2019 को सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को ये सुनिश्चित कराने का आदेश दिया था कि 13 अगस्त से पहले मंदिर गिरा दिया जाए।

    10 अगस्त को मंदिर गिरा दिया गया। संत रविदास जयंती समिति समारोह के ज़मीन पर दावे को सबसे पहले ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त 2018 को ख़ारिज किया था और 20 नवंबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इस साल आठ अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटने से इंकार करते हुए मंदिर गिराए जाने का आदेश दिया था।

    डीडीए का दावा था कि दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के बाद ज़मीन केंद्र की हो गई है। डीडीए ने हाई कोर्ट को ये भी बताया था कि राजस्व रिकॉर्ड में समिति के मालिकाना हक़ का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। डीडीए ने ये दलील भी दी कि विवादित ज़मीन वन क्षेत्र है इस वजह से वहां किसी तरह के निर्माण को नहीं हो सकता। वहीं समिति का दावा था कि मंदिर पर मालिकाना हक उसका है।

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