भीमा कोरेगांव हिंसा : मुख्य न्यायाधीश के बाद अब और तीन जजों ने भी गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया
LiveLaw News Network
2 Oct 2019 9:45 AM IST
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ में शामिल जजों ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। नवलखा ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के 13 सितंबर के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें FIR रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
इससे पहले सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। मंगलवार को जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी आर गवई की पीठ के सामने ये मामला आया तो पीठ ने कहा कि वो सुनवाई से अलग हो रहे हैं। इसके बाद मामले को फिर से मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा गया है ताकि नई पीठ का गठन हो सके। पीठ ने कहा कि मामले को तीन अक्टूबर को उचित पीठ से सामने सूचीबद्ध किया जाएगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दर्ज FIR रद्द करने से किया था इनकार
इस दौरान नवलखा की ओर से पीठ को बताया गया कि हाई कोर्ट द्वारा नवलखा को गिरफ्तारी से दिया गया तीन सप्ताह का सरंक्षण मंगलवार को खत्म हो रहा है।
दरअसल उच्च न्यायालय ने नवलखा के खिलाफ 1 जनवरी 2018 को पुणे पुलिस द्वारा दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था। गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने अतिरिक्त लोक अभियोजक अरुणा पई द्वारा सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा था कि 65 वर्षीय एक्टिविस्ट के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
पुलिस ने दावा किया कि उनके पास माओवादी साजिश में नवलखा की 'गहरी संलिप्तता' है। अदालत ने कहा, अपराध भीमा-कोरेगांव हिंसा तक सीमित नहीं है इसमें कई पहलू हैं, इसलिए हमें जांच की जरूरत लगती है। हालांकि पीठ ने नवलखा को सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए तीन सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से सरंक्षण दे दिया था।
यह था मामला
दरअसल एल्गार परिषद द्वारा 31 दिसंबर 2017 को पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में कार्यक्रम के एक दिन बाद कथित रूप से हिंसा भड़क गई थी। पुलिस का आरोप है कि मामले में नवलखा और अन्य आरोपियों का माओवादियों से लिंक था और वे सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम कर रहे थे।