ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का संरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कम वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों को अंडर-ग्राउंड करने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

16 March 2021 7:00 AM GMT

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का संरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कम वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों को अंडर-ग्राउंड करने का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने (सोमवार) निर्देश दिया कि गोडावणा ( ग्रेट इंडियन बस्टर्ड; वैज्ञानिक नाम: Ardeotis nigriceps) के संरक्षण के लिए राजस्थान और गुजरात राज्यों में कम वोल्टेज वाली ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत (अंडर ग्राउंडिंग) करने और उच्च वोल्टेज वाली ट्रांसमिशन लाइनों के मामले में बर्ड डायवर्टर लगाने पर विचार किया जाना चाहिए।

    सीजेआई एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम की तीन सदस्य न्यायाधीश पीठ ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और खरमोर (लेसर फ्लोरिकन; वैज्ञानिक नाम: Sypheotides indicus) की गिरावट के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां कीं।

    याचिकाकर्ता भूमिगत ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि खुले ट्रांसमिशन लाइने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए घातक हैं और इसके साथ ही एक लुप्तप्राय पक्षी और इसके संरक्षण के लिए बर्ड डायवर्टर लगाने की मांग की गई है।

    बेंच ने कहा कि उच्च वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों के मामले में, जिन्हें भूमिगत नहीं बनाया जा सकता है, वहां बर्ड डायवर्टर लगाया जाना चाहिए भले ही इसकी लागत अधिक हो और कम वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत बनाया जा सकता है।

    बेंच ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के सबमिशन के आधार पर ये टिप्पणियां कीं कि हाई ट्रांसमिशन लाइन्स को अंडरग्राउंड करना संभव नहीं है और पिटीशन काउंसलर सीनियर एडवोकेट श्याम दिवान ने सबमिशन दिया कि ट्रांसमिशन लाइन्स को अंडरग्राउंड करने की जरूरत है क्योंकि यह लुप्तप्राय पक्षी के लिए घातक है।

    वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कोर्ट से समक्ष प्रस्तुत किया कि इस मामले में तत्काल इस पर विचार किया जाना चाहिए कि ग्रेट भारतीय बस्टर्ड के क्षेत्रों से गुजरने वाली कुछ ओवरहेड लाइनों को भूमिगत बनाया जाए।

    एडवोकेट दीवान ने कहा कि,

    "हमने सुझाव दिया कि उन्हें कुछ क्षेत्रों में ओवरहेड (खुले आसमान) से अंडर-हेड (भूमिगत) लाइनों में परिवर्तित किया जा सकता है और अन्य क्षेत्रों में बर्ड डाइवर्ट स्थापित किया जा सकता है। यहां मुद्दा एक पक्षी के विलुप्त होने का है और यह एक महत्वपूर्ण पक्षी है।"

    एडवोकेट दीवान ने क्षतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम की प्रस्तावना और प्रावधानों से कोर्ट को अवगत कराते हुए कहा कि राज्य द्वारा वन्यजीव संरक्षण के लिए फंड उपलब्ध कराया जाना है। उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि राज्य निधि में उपलब्ध फंड का उपयोग वन्यजीव संबंधी बुनियादी ढांचे के विकास और वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए किया जाता है।

    एडवोकेट दिवान ने आगे भारतीय संविधान के भाग-4 के राज्य नीति के निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 48 ए का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि राज्य पर्यावरण और वन्य जीवन की रक्षा के लिए प्रयास करेगा।

    खंडपीठ ने कहा कि,

    "वन्यजीव सीधे इसका एक हिस्सा है।"

    एडवोकेट दीवान बेंच की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि हमारे अनुसार वन्यजीव संबंधी अवसंरचना विकास के लिए फंड स्पष्ट रूप से उपलब्ध कराने का प्रावधान है और इसलिए फंड तत्काल उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

    एडवोकेट दीवान ने पीठ से कहा कि राजहंस (फ्लोमिंगो) पक्षी के संबंध में, जो लुप्तप्राय प्रजाति है और इसलिए इस योजना को पहले ही लागू किया है और इसके साथ ही ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत पहले ही किया जाना चाहिए था। भारत के वन्यजीव संस्थान जैसे विशेषज्ञ संस्थानों के साथ अधिनियम के तहत योजनाओं को तैयार किया जाना आवश्यक है।

    बेंच ने पूछा

    "क्या आप हमें इसमें शामिल खर्च के बारे में बता सकते हैं?"

    एडवोकेट दीवान ने कहा कि,

    "हलफनामा बिजली मंत्रालय के माध्यम से दायर किया गया है। हलफनामे के अनुसार, ये राजस्थान या गुजरात के ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अधिकार क्षेत्र में इंट्रा स्टेट ट्रांसमिशन लाइनें हैं। राजस्थान के लिए कुल खर्च लगभग 15-15.40 करोड़ रुपये होगा। गुजरात के लिए 31.33 करोड़ रूपये अंडर-ग्राउंडिंग के लिए और डायवर्टर के लिए खर्च 17 करोड़ रूपये खर्च होंगे, इसलिए गुजरात के लिए कुल खर्च 38.33 करोड़ है।"

    एडवोकेट दीवान ने कहा कि, हलफनामे में संकेतित ट्रांसमिशन लाइनों पर तत्काल रूप से काम किया जाना चाहिए और कम से कम समय में प्रभावित किया जाना चाहिए और इन दोनों राज्यों में बर्ड डायवर्टर लगाए जाने चाहिए। पावर लाइनों की पहचान पहले ही की जा चुकी है।

    बेंच ने अवलोकन किया कि,

    " हम ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत बनाने के महत्व को समझते हैं। हमें नहीं लगता कि सभी लाइनों को भूमिगत किया जाना चाहिए। हम उस रास्ते को देखना चाहेंगे जिसका उपयोग जानवर करते हैं और जिन्हें भूमिगतों को बनाना चाहते हैं।"

    बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि बर्ड डायवर्टर की स्थापना के लिए आने वाली लागत भूमिगत ट्रांसमिशन लाइनों में आने वाली लागत से बहुत अधिक हो जाती है। बेंच ने एजी वेणुगोपाल से इस पहलू पर सलाह देने के लिए कहा।

    बेंच ने एजी वेणुगोपाल पूछा कि,

    "यदि बर्ड डायवर्टर की लागत अंडर-ग्राउंडिंग से अधिक है तो उसके लिए क्यों जाएं।"

    एजी वेणुगोपाल ने कहा कि वे इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

    एजी वेणुगोपाल ने कहा कि कम वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों की तुलना में उच्च वोल्टेज वाले ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करना तकनीकी रूप से संभव नहीं हो सकता है।

    पीठ ने यह भी पूछा कि,

    "यह कैसे निर्धारित किया जा सकता है कि कौन-सी लाइन कम वोल्टेज वाली है और कौन-सी उच्च वोल्टेज वाली।"

    बेंच ने पूछा कि,

    "क्या हमारे पास उच्च या निम्न वोल्टेज लाइनों के अनुपात के आंकड़े हैं?"

    बेंच ने अवलोकन किया कि,

    "चूंकि आपने कहा कि उच्च वोल्टेज लाइनों को भूमिगत नहीं बनाया जा सकता है इसलिए जिसे भूमिगत नहीं बनाया जा सकता है, फिर वहां आप बर्ड डायवर्टर का उपयोग कर सकते हैं भले ही लागत अधिक हो।"

    बेंच ने आगे कहा कि,

    "हम कह सकते हैं कि कम वोल्टेज वाली लाइनों को भूमिगत बनाया जाएगा और उच्च वोल्टेज वाले लाइनों के वहां बर्ड डायवर्टर का उपयोग किया जाएगा। वर्तमान सलाह के रूप में, हम स्पष्ट रूप से इस मामले को सुनेंगे।"

    एडवोकेट दीवान ने कहा कि मौजूदा ट्रांसमिशन लाइनों को भी भूमिगत किया जाना चाहिए जब तक कि वे कम ट्रांसमिशन वाले हैं।

    एडवोकेट दीवान ने कहा कि,

    "हमें कम से कम उन ट्रांसमिशन लाइनों को निपटा देना चाहिए जिसे हर कोई प्रजातियों के लिए घातक मानता है।"

    बेंच ने सीमा जैसे अन्य मुद्दों को छोड़कर सबसे पहले ट्रांसमिशन लाइनों के मुद्दे पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की।

    ऑल इंडिया सोलर फेडरेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि वे पक्षी के साथ कोई शत्रुता नहीं रखते हैं और एक लाख करोड़ के निवेश के साथ इस क्षेत्र में 50,000 नौकरियां पहले से ही हैं। इसलिए एक काउंटर बैलेंस परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि,

    "हमें पक्षी से कोई दुश्मनी नहीं है। इस क्षेत्र में 50,000 नौकरियां पहले से ही मौजूद हैं। राज्यों द्वारा हलफनामे दिए गए हैं जिन्होंने अच्छे काम की ओर इशारा किया है। हमें प्रायोगिक आंकडे की आवश्यकता है।"

    सीजेआई बोबड़े ने कहा कि,

    "हम ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए लड़ रहे लड़ाई हार सकते हैं अगर हम जो कदम उठा सकते हैं, उसे हम नहीं उठाएंगे।"

    सिंघवी ने कहा कि हम केवल यह कह रहे हैं कि काउंटर बैलेंसिंग परिप्रेक्ष्य लिया जाना चाहिए।

    बेंच ने कहा कि कोई भी पीढ़ी के रूप के बारे में कुछ नहीं कह रहा है और केवल ट्रांसमिशन के साथ काम कर रहा है।

    एजवोकेट सिंघवी के सबमिशन के जवाब में सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि सिंघवी सोलार पावर जनरेटर की ओर से पेश हुए हैं और इसलिए स्थिति का उन पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

    एडवोकेट दीवान ने टिप्पणी की कि,

    "पावर का ट्रांसमिशन लाइनों द्वारा किया जाना है और अगर इसका भूमिगत या ओवरहेड के रूप में किया जाता है तो इससे उनको क्या फर्क पड़ता है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी के लिए बिजली लाइने एक खतरे के रूप में है, जो उड़ान के रास्ते में बाधा डालने का काम करती हैं और इन्हीं बिजली लाइनों से संपर्क होने पर पक्षी की जान भी चली जाती है। यह सर्वविदित है कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी आकार एक बड़ा पक्षी है और इसे लिए उड़ान के समय आसानी से मुड़ना मुश्किल है। इसका सिर्फ एक ही समाधान हो सकता है, सबसे पहले पक्षियों के उड़ान मार्ग निर्धारित किया जाना चाहिए है और ओवरहेड लाइनों को भूमिगत कर दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने पहले से गठित विशेषज्ञ समिति में 3 और व्यक्तियों को शामिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने 2019 में दोनों पक्षियों के खतरनाक विलुप्त होने पर ध्यान दिया और इन प्रजातियों की सुरक्षा के लिए तत्काल एक आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना तैयार करने और इसे लागू करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया। यह निर्देश सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एमके रंजीतसिंह और अन्य वन्यजीव कार्यकर्ताओं द्वारा याचिका दायर की गई। इस याचिका में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और खरमोर (लेसर फ्लोरिकन) जिनकी आबादी तेजी से घट रही है, उनके संरक्षण की मांग की गई थी।

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