'प्रमुख समाचार चैनल सुशांत सिंह राजपूत की मौत को सनसनीखेज बना रहे हैं' :'मीडिया ट्रायल' को रोकने की मांग करते हुए बाॅम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

LiveLaw News Network

27 Aug 2020 2:08 PM GMT

  • प्रमुख समाचार चैनल सुशांत सिंह राजपूत की मौत को सनसनीखेज बना रहे हैं :मीडिया ट्रायल को रोकने की मांग करते हुए बाॅम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

    बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि अभिनेता सुशांत सिंह की मौत के मामले में मीडिया द्वारा प्रसारित खबरों को अस्थाई रूप से स्थगित कर दिया जाए या रोक दिया जाए क्योंकि ''मीडिया ट्रायल'' या ''समानांतर जांच'' सीधे तौर पर या अप्रत्यक्ष रूप से अभिनेता की मौत के मामले में सीबीआई द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित करेगी।

    यह याचिका फिल्म निर्माता नीलेश नवलखा, एक क्षेत्रीय समाचार पत्र के संपादक महिबूब डी शेख और सेवानिवृत्त सिविल सेवक सुभाष चंदर चाबा ने दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि संवेदनशील मामलों में केबल टेलीविजन नेटवर्क(रेगुलेशन) एक्ट 1995 व रूल्स 1994 के अनुसार बनाए गए प्रोग्राम कोड का पालन करवाने के लिए आईबी मंत्रालय और भारतीय प्रेस परिषद द्वारा कड़ाई से निगरानी की जानी चाहिए। वहीं इन कोड के अलावा आचार संहिता व प्रसारण मानक और समाचार प्रसारण मानक विनियम का उल्लंघन करते हुए ''मीडिया ट्रायल'' करने वाले मीडिया चैनलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जाए।

    अधिवक्ता पंकज खंडारी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि मीडिया द्वारा सुशांत सिंह राजपूत की मौत को सनसनीखेज बनाना न केवल सीबीआई द्वारा की जा रही जांच पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, बल्कि यह एक संविधान पीठ द्वारा स्थापित ''स्थगन के सिद्धांत'' के भी खिलाफ है।

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट काॅरपोरेशन लिमिटेड बनाम सेबी, (2012) के मामले में यह सिद्धांत-उन मामलों में प्रकाशन या प्रचार स्थगित करने के लिए बनाया था,जिनमें न्याय के उचित प्रशासन के लिए या मुकदमे की निष्पक्षता के लिए पूर्वाग्रह का वास्तविक और पर्याप्त जोखिम होता है।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''किसी भी तरह से यह याचिका प्रेस /मीडिया की स्वतंत्रता को बाधित या रोकना नहीं चाहती है, लेकिन न्याय प्रशासन के लिए केवल यह चाहती है कि प्रतिवादियों को ''लक्ष्मणरेखा'' का पालन करने का निर्देश दिया जाए। ताकि कोई ऐसी मीडिया ट्रायल न हो पाए जो सीबीआई द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित कर सकें।''

    यह भी प्रस्तुत किया गया है कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में की जा रही मीडिया ट्रायल न्याय के उचित प्रशासन के लिए पूर्वाग्रह का वास्तविक और पर्याप्त जोखिम पैदा कर रही है। वहीं आपराधिक न्याय प्रणाली या मुकदमे की निष्पक्षता और इस तरह के तटस्थ उपकरण (बैलेंस एक्ट) कोई अनुचित प्रतिबंध नहीं है बल्कि यह उचित संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत आते हैं।

    यह भी कहा गया है कि जिस दिन से अभिनेता की मौत हुई है,उसी दिन से आज तक प्रमुख मीडिया चैनल शाब्दिक रूप से ''मीडिया ट्रायल'' ''समानांतर कार्यवाही'' कर रहे हैं। इसका संचालन और प्रसारण वह कई तरीके से कर रहे हैं,जिसमें डिबेट करवाना, राय प्रस्तुत करना, प्रमुख गवाहों को सबके सामने लाना, गवाहों से बार-बार बात करना और मामले की जांच कर रहे सीबीआई के अधिकारियों का पता लगाना व उनका पीछा करना आदि शामिल है।

    यह भी इंगित किया गया है कि

    ''मुख्य समाचार चैनलों ने इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाने के प्रयास में सीडीआर रिकॉर्ड को भी दिखा दिया है। जो कि सबूतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जिसके परिणामस्वरूप कथित आरोपी को कई धमकी भरे कॉल और संदेश भी भेजे गए हैं।''

    यह भी दलील दी गई है कि

    7 अगस्त 2020 को एफआईआर में बनाए गए आरोपी को ईडी ने कथित रूप से बुलाया था। उसी दिन सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कुछ समाचार चैनलों ने एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें अभिनेता के संपर्क विवरण स्पष्ट रूप से दिखाए गए थे।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''इस तरह के प्रमुख चैनलों में से कुछ ने न सिर्फ अभिनेता की मौत को सनसनीखेज बनाया बल्कि महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख मंत्रियों में से एक को इस मामले में फंसाने के लिए गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग भी की है। वहीं बड़े पैमाने पर जनता के मन में अविश्वास पैदा करने के लिए कई मंत्रियों के खिलाफ अपमानजनक, गलत और भद्दी टिप्पणी भी की गई हैं।''

    याचिका में यह भी इंगित किया गया है कि कई मीडिया चैनल मामले की जांच कर रही सीबीआई टीम का पीछा कर रहे हैं और इस तरह वह बड़े पैमाने पर गवाहों को जनता के सामने ला रहे हैं।

    ''कई समाचार चैनलों ने प्राथमिकी में नामजद अभियुक्तों को पहले ही दोषी ठहरा दिया है। वहीं मुंबई पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारियों और राज्य के मंत्रियों के खिलाफ बगैर जांच पूरी हुए ही कटाक्ष करने शुरू कर दिए हैं।''

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि

    विभिन्न प्रमुख समाचार-चैनलों/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा विशेष रूप से आयोजित विभिन्न डिबेट और चर्चाओं में, न्यूज एंकर/ रिपोर्टर सभी गवाहों से जांच और जिरह कर रहे हैं और संभावित सबूतों को जनता के सामने उजागर कर रहे हैं। जबकि इन गवाहों से जांच या पूछताछ करने करने का हक सिर्फ जांच एजेंसी या मुकदमे की सुनवाई के दौरान सक्षम न्यायालय को है।

    ''प्री-ट्रायल जांच चरण के दौरान की जा रही मीडिया ट्रायल में मुख्य गवाहों और सबूतों के विवरण देना और उनको सबके सामने उजागर करना स्पष्ट रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की अवधारणा को कम करता है। मीडिया की स्वतंत्रता,विशेष रूप से टीवी न्यूज मीडिया को इस हद तक जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वो एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाएं , जहां सूचनाओं को पुन प्रस्तुत करके लोगों के मन में 'तथ्य /समाचार' के व्यापक प्रभाव को रोकना और बदलना शुरू कर देते हैं और मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पर प्रतिबंध लगा देते हैं।''

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत को सनसनीखेज बनाने में मीडिया की कार्रवाई न केवल सीबीआई द्वारा चल रही जांच पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, बल्कि एक संविधान पीठ द्वारा तय किए गए ''स्थगन के सिद्धांत'' के भी खिलाफ है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत सहारा मामले में तय किया था।

    यह भी कहा गया है कि

    ''इस माननीय न्यायालय से यह छिपा नहीं है कि पहले भी मीडिया ने कई हाई-प्रोफाइल मामलों में इस तरह की ट्रायल की है और उन मामलों में सक्षम अदालत ने आरोपी व्यक्तियों को बरी कर दिया है। इसलिए यह मीडिया द्वारा किए गए हस्तक्षेप और अंवाछित ट्रायल के कारण बहुत ही शर्मिंदा करने वाला है। उदाहरण के लिए के एम नानावती मर्डर केस, आरुषि तलवार मर्डर केस, 2जी घोटाला स्पेक्ट्रम घोटाला आदि मामले हैं।''

    इस याचिका को एडवोकेट राजेश इनामदार, आदित्य भट, शाशवत आनंद और स्मिता पांडे ने तैयार किया है।

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