जेल में भीड़भाड़: वास्तव में सीसीटीवी कैमरे कहां स्थापित किए गए हैं? सिर्फ चार दिनों का सीसीटीवी फुटेज ही क्यों संरक्षित है ? : सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल के अधिकारी और मंत्रालय को एफिडेविट दायर करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

1 April 2021 9:38 AM GMT

  • जेल में भीड़भाड़: वास्तव में सीसीटीवी कैमरे कहां स्थापित किए गए हैं? सिर्फ चार दिनों का सीसीटीवी फुटेज ही क्यों संरक्षित है ? : सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल के अधिकारी और मंत्रालय को एफिडेविट दायर करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल के जेल अधीक्षक को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें बताना है कि और क्या कंट्रोल रूम और जेल की चारों ओर की दीवारों को सीसीटीवी कैमरों से कवर किया गया है या नहीं।

    न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें 15.03.2021 को मौत की सजा पाए तीनों कैदियों (याचिकाकर्ता सहित) को संबंधित सेल / परिक्षेत्र में नशे में पाया गया था। कैदियों की ओर से बल प्रयोग किया गया और फिर अधिकारियों को उन्हें नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा। याचिकाकर्ता के पिता को जानकारी मिली कि याचिकाकर्ता को जेल के अंदर बुरी तरह से पीटा गया जहां वह वर्तमान में बंद है। मुलाकात की अनुमित मिलने पर जब पिता अपने बेटे (आरोपी) से मिलने गए तो देखा कि वह ठीक से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था, इसलिए दो व्यक्तियों की मदद से मिलने के लिए लाया गया।

    बेंच ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश सतीश कुमार को दिल्ली के तिहाड़ जेल में संबंधित सेल / परिक्षेत्र का दौरा करने और एक उचित रिपोर्ट बनाने का निर्देश दिया।

    बेंच ने आदेश में कहा कि,

    "न्यायाधीश अगर उचित समझे तो याचिकाकर्ता और ऐसे अन्य व्यक्तियों का साक्षात्कार कर सकता है। वह परिसर का सीसीटीवी फुटेज देखने के लिए भी स्वतंत्र है।"

    पीठ ने कोई भी सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं होने पर कहा कि विभिन्न अदालतों द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए और विशेष रूप से परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह (2020) मामले में शीर्ष अदालत के फैसले में दिए गए गए निर्देशों के मुताबिक जेल अधिकारी जेल में विभिन्न स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए बाध्य हैं।

    बेंच ने देखा कि,

    "तिहाड़ जेल के अधीक्षक राज कुमार के अनुसार मेडिकल डिस्पेंसरी में सीसीटीवी कैमरा लगाया गया है। हालांकि उनके अनुसार सिर्फ चार दिनों का सीसीटीवी फुटेज ही संरक्षित करके रखा जाता है। इसलिए अब कोई फुटेज उपलब्ध नहीं है।"

    पीठ ने सभी प्रासंगिक तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए जेल अधीक्षक को दिनांक 14.04.2021 को हुई घटना के संबंध में उनके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देने के लिए 05.04.2021 तक एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही इस हलफनामे में यह भी बताना है कि जेल परिसर के अंदर तंबाकू के पाउच या किसी अन्य कंट्राबेंड जैसी सामग्री कैसे आती हैं और जेल अधिकारियों द्वारा किस तरह के निवारक और अन्य उपाय किए गए हैं।

    पीठ मे आदेश में कहा कि,

    "हलफनामे में उस सीसीटीवी कैमरे की भी जांच की जाएगी जिसके लेकर राज कुमार ने कहा है कि सिर्फ चार दिनों का सीसीटीवी फुटेज ही संरक्षित करके रखा जाता है।जेल परिसर में इस तरह के सीसीटीवी कैमरे लगने में कितना समय लगेगा और इसके अलावा कैमरे लगाने के लिए बजटीय आवंटन भी किया जाए।"

    बजटीय आवंटन के बारे में संबंधित राज्य के गृह मंत्रालय से स्पष्टीकरण मांगा जाए और इसके साथ ही गृह मंत्रालय की ओर से एक हलफनामा भी दाखिल किया जाना चाहिए कि सिर्फ चार दिनों का सीसीटीवी फुटेज ही क्यों संरक्षित है ?

    एडीजे ने अपने दौरे के दौरान पाया कि याचिकाकर्ता-आरोपी राहुल ठीक से चल नहीं पा रहा है। इसलिए जेल अधीक्षक ने आरोपी राहुल की चिकित्सकीय जांच करने और प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा।

    पीठ ने कहा कि,

    "आरोपी राहुल की चिकित्सा जांच से संबंधित कोई दस्तावेज रिकॉर्ड पर नहीं रखे गए हैं। इसके अलावा मेडिकल ऑफिसर के हस्ताक्षर सहित 20.03.2021 की मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि मरीज की एक्स-रे किया जाना था, लेकिन एक्स-रे को भी रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है।"

    पीठ ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता और अन्य को जारी किए गए पनिशमेंट टिकट से पता चलता है कि उन्हें चिकित्सा के लिए ओपीडी जेल ले जाया गया था। हालांकि संबंधित प्रमाण पत्र या संबंधित तिथि की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है।

    पीठ ने कहा कि,

    "पनिशमेंट टिकट के नीचे हाथ से लिखे हिस्से से पता चलता है कि सजा के समय मिली फोन, कैंटीन और मुलाकात की सुविधा संबंधित कैदियों से वापस ले ली गई थी। सजा का ऐसा प्रावधान संबंधित प्रावधानों के अनुसार नहीं था।"

    सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई, एनआईए, एनसीबी आदि के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए अधिक समय मांगने पर केंद्र सरकार की खिंचाई की थी।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2 दिसंबर 2020 को कस्टोडियल यातनाओं की घटनाओं की जांच करने के लिए देश भर के सभी पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए थे।

    इसके साथ ही केंद्र सरकार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), प्रवर्तन निदेशालय (ED), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), राजस्व निदेशालय (DRI), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश दिया गया था ।

    इसमें दिए गए आदेशों के अनुपालन की रिपोर्ट के लिए मामले को 2 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया गया। इससे पहले केंद्र सरकार ने एक पत्र लिखकर स्थगन की मांग की थी।

    न्यायमूर्ति नरीमन ने स्थगन की मांग वाले पत्र पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि, "हमें ऐसा लग रहा है कि आप अपने पैरों को पीछे खींच रहे हैं। आपने किस तरह का पत्र लिखकर भेजा है?"

    सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि स्थगन की मांग आदेश के जटिल अनपेक्षित परिणाम के संबंध में गई है।

    न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि क्या अनपेक्षित परिणाम हो सकता है? हम अनपेक्षित परिणाम को लेकर चिंतित नहीं हैं।

    न्यायाधीश ने आगे कहा कि,

    "यह नागरिकों के अधिकारों की चिंता करता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकता के अधिकारों की चिंता करता है। हम पत्र में दिए गए बहाने को स्वीकार नहीं कर रहे हैं।"

    आदेश की कॉपी यहां पढे़ं:



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