भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम - एफआईआर से पहले के चरण में जांच न केवल अनुमति योग्य है, बल्कि अपेक्षित भी है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

25 March 2021 4:39 AM GMT

  • भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम - एफआईआर से पहले के चरण में जांच न केवल अनुमति योग्य है, बल्कि अपेक्षित भी है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों में एफआईआर पंजीकरण से पूर्व के चरण में पृथक / खुली जांच किया जाना अनुमति योग्य है।

    इस मामले में, हाईकोर्ट ने नागपुर स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा अपीलकर्ता को जारी नोटिस को चुनौती देने वाली अर्जी खारिज कर दी थी। आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोपों की जांच के सिलसिले में पुलिस इंस्पेक्टर ने नोटिस जारी करके अपीलकर्ता को उसके द्वारा अर्जित सम्पत्तियों के संदर्भ में बयान दर्ज कराने का निर्देश दिया था।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने अपील में इस सवाल पर विचार किया था कि क्या इस तरह की जांच एफआईआर से पूर्व के चरण में वैध होगी और किस सीमा तक इस तरह की जांच अनुमति योग्य होगी?

    बेंच ने 'ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) 2 एससीसी 1' के मामले का उल्लेख करते हुए इस प्रकार कहा :

    इस प्रकार, एफआईआर से पूर्व के चरण में जांच को अनुमति योग्य ठहराया जाता है। इसे न केवल अनुमति योग्य ठहराया जाता है, बल्कि यह अपेक्षित भी है, खासकर जहां आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने में भ्रष्टाचार के आरोप होते हैं। जांच / एफआईआर दर्ज कराने के चरण से पूर्व की जांच / प्रारम्भिक जांच में प्राप्त सामग्री के आधार पर यह पाया जाता है कि शिकायत परेशान करने के लिए है / या शिकायत में कोई दम नहीं है तो एफआईआर दर्ज नहीं होगी। हालांकि, यदि प्राप्त सामग्री अपराध किये जाने का प्रथम दृष्टया खुलासा करती है तो एफआईआर दर्ज की जायेगी तथा आपराधिक कार्यवाही शुरू की जायेगी तथा आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की दृष्टि से आगे की जांच की जायेगी। इसलिए इस प्रकार की प्रारंभिक जांच की अनुमति केवल यह पता करने के लिए होगी कि क्या इसमें संज्ञेय अपराध का पता चलता है या नहीं। उसके बाद ही एफआईआर दर्ज की जायेगी। इसलिए इस तरह की प्रारम्भिक जांच कथित अभियुक्त के हित में और उसके पक्ष में है जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज करायी गयी हो।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यहां तक कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के स्तर पर पुलिस अधिकारी को इस बात को लेकर संतुष्ट या आश्वस्त होने की जरूरत नहीं है कि संज्ञेय अपराध किया गया था।

    कोर्ट न कहा,

    "यह पर्याप्त है यदि संज्ञेय अपराध किये जाने का खुलासा होता है, क्योंकि ऐसी जानकारी जांच मशीनरी को सभी आवश्यक साक्ष्य संग्रहित करने और उसके बाद कानून के दायरे में कार्रवाई करने को लेकर गति प्रदान करती है। इसलिए गलत तरीके से आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोपों के मामले में एफआईआर दर्ज होने से पहले के चरण में पृथक / खुली जांच को गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता।"

    संबंधित नोटिस का उल्लेख करते हुए बेंच ने कहा कि नोटिस के जरिये जो जानकारी मांगी गयी है उसका सीधा संबंध आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के आरोपों से है।

    कोर्ट ने कहा :

    ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि यह संबद्ध मामले से जुड़ी जांच नहीं है। इस तरह के बयान को धारा 160 के तहत दर्ज बयान और / या आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुसार जांच के दौरान दर्ज किया गया बयान नहीं कहा जा सकता। यहां तक कि इस बयान को ट्रायल के दौरान अपीलकर्ता के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अपीलकर्ता के बयान और पृथक जांच के दौरान उससे प्राप्त जानकारी केवल इस बात की पुष्टि के लिए और यह पता करने के लिए है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 की धारा 13 (एक) (ई) के तहत अपराध का खुलासा होता है या नहीं? इस तरह के बयान को स्वीकारोक्ति नहीं कही जा सकती और और जब कभी और / अथवा इस प्रकार के बयान को स्वीकारोक्ति के रूप में विचार किया जाता है तो केवल वैसी स्थिति में इस बयान को स्वयं अभियोगात्मक कहा जाता है, जिसे कानून की नजर में अनुमति योग्य नहीं कहा जा सकता।

    बेंच ने अपील खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि संबंधित नोटिस में उल्लेखित बिंदुओं पर अपीलकर्ता का बयान केवल इस बात को संतुष्ट करने के लिए होगा कि क्या संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है या नहीं और इससे अपीलकर्ता आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने के मामले में अपने खिलाफ लगाये गये आरोपों पर स्पष्टीकरण देने में सक्षम हो सकेगा और इसे स्वीकारोक्ति बयान के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जायेगा।

    केस : चरण सिंह बनाम महाराष्ट्र सरकार [ क्रिमिनल अपील 363 / 2021 ]

    कोरम : न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह

    वकील : सीनियर एडवोकेट सुबोध धर्माधिकारी, सीनियर एडवोकेट राजा ठाकरे

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 179

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