जजों की नियुक्ति का मौजूदा मॉडल लगभग आदर्श: कॉलेजियम सिस्टम पर बोले पूर्व सीजेआई यूयू ललित

Avanish Pathak

18 Feb 2023 10:54 AM GMT

  • जजों की नियुक्ति का मौजूदा मॉडल लगभग आदर्श: कॉलेजियम सिस्टम पर बोले पूर्व सीजेआई यूयू ललित

    पूर्व चीफ ज‌स्टिस ऑफ इंडिया उदय उमेश ललित ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए ‌फिलहाल कॉलेजियम प्रणाली की से बेहतर प्रणाली उपलब्ध नहीं है।

    न्यायिक उत्तरदायित्व और सुधार अभियान (सीजेएआर) की ओर से आयोजित एक संगोष्ठी में जस्टिस ललित ने जजो की नियुक्‍ति प्रक्रिया में विभिन्न स्तरों पर शामिल जांच और परामर्श पर विस्तार से चर्चा की, और कहा कि यह "बिल्कुल सही है" "।

    उन्होंने कहा,

    "मेरे मुताबिक, कॉलेजियम प्रणाली से बेहतर कोई प्रणाली हमारे पास नहीं है। अगर हमारे पास कॉलेजियम प्रणाली से गुणात्मक रूप से बेहतर कुछ नहीं है तो स्वाभाविक रूप से हमें यह संभव बनाने की दिशा में काम करना चाहिए कि कॉलेजियम प्रणाली जीवित रहे। मौजूदा मॉडल, जिसके अनुसार हम काम करते हैं वह लगभग एक आदर्श मॉडल है। उम्मीदवार नियुक्ति के योग्य है या नहीं, यह तय करने के लिए जज सबसे अच्छे व्यक्ति हैं।"

    ज‌स्टिस ललित की टिप्पणियां केंद्रीय कानून मंत्री और उपराष्ट्रपति की हाल ही में की आई आलोचनात्मक टिप्पणियों के बाद कॉलेजियम प्रणाली पर हो रही बहस के संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक हो जाती हैं।

    कॉलेजियम के सदस्य के रूप में अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने कम से कम 325 नाम देखे हैं। उन्होंने कहा कि सिफारिशों को चयन प्रक्रिया के माध्यम से फ़िल्टर किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार के स्तर से इनपुट शामिल होते हैं।

    इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में उन जजों से सलाह लेता है, जो उस विशेष हाईकोर्ट से परिचित हैं।

    उन्होंने बताया,

    "इस कठोर प्रक्रिया के बाद नामों को मंजूरी दी जाती है। मामला फिर केंद्र सरकार के पास जाता है। उनके इनपुट को वास्तव में पहले के स्तर पर ध्यान में रखा जाता है, लेकिन उनके पास विस्तार करने के लिए कुछ हो सकता है। उन आपत्तियों को आम तौर पर पुनर्विचार करने के लिए कॉलेजियम में वापस आना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को एकमत होने की आवश्यकता नहीं है। यह बहुमत से हो सकता है। लेकिन पुनरावृत्ति को सर्वसम्मति से होना चाहिए। पुनरावृत्ति यांत्रिक नहीं होती है।"

    उन्होंने एक नियुक्ति का उदाहरण दिया, शुरुआत में जिसकी कॉलेजियम ने सिफारिश नहीं की थी। "सरकार ने कहा कि कृपया पुनर्विचार करें। बाद के कॉलेजियम ने स्वीकार कर लिया और व्यक्ति को न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई।"

    जस्टिस ललित ने कहा कि उम्मीदवारों की योग्यता सुनिश्‍चित करने के लिए न्यायपालिक सबसे बेहतर स्थिति में है, क्योंकि उन्होंने उम्मीदवारों का प्रदर्शन लगातार देखा है। कार्यपालिका इस तरह का आकलन करने की स्थिति में नहीं हो सकती है।

    उन्होंने बताया उम्मीदवार की प्रोफेशनल प्रैक्टिस, किए गए मामलों के प्रकार और रिपोर्ट किए गए निर्णयों की संख्या आदि को ध्यान में रखा जाता है। उन्होंने उल्लेख किया कि एक उम्मीदवार पर विचार करते समय उसके लिखे लगभग 1100 निर्णयों पर विचार किया गया था।

    यह सुनिश्चित करने के लिए पेशेवर व्यक्तियों पर ही विचार किया जाए, इसलिए आय के पैरामीटर को भी ध्यान में रखा जाता है। इसलिए जब फाइल सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में पहुंचती है तो इसमें विभिन्न पदाधिकारियों और उम्मीदवार से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर इनपुट होते हैं।

    ज‌स्टिस ललित ने कहा,

    "आज जिस मॉडल के अनुसार हम काम करते हैं, वह लगभग आदर्श मॉडल है। निश्चित रूप से कमियां हो सकती हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट की 60 या 70 सिफा‌रिशों पर विचार नहीं किया जाता है।"

    संगोष्‍ठी के पहले सत्र में सीनियर एडवोकेट आदित्य सोंधी, सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे, प्रोफेसर फैजान मुस्तफा और प्रोफेसर मोहन गोपाल ने भी अपनी बात रखी। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सत्र के लिए परिचयात्मक उद्बोधन दिया। सत्र की संचालक एडवोकेट चेरिल डिसूजा थीं।

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