प्रशांत भूषण ने जजों की नियुक्तियों में केंद्र की देरी के खिलाफ याचिकाओं को केस सूची से हटाने पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को पत्र लिखकर कारण पूछे

LiveLaw News Network

12 Dec 2023 5:40 AM GMT

  • प्रशांत भूषण ने जजों की नियुक्तियों में केंद्र की देरी के खिलाफ याचिकाओं को केस सूची से हटाने पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को पत्र लिखकर कारण पूछे

    एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर पीठासीन न्यायाधीश की जानकारी या सूचना के बिना और एक विशिष्ट तिथि सूची के लिए न्यायिक आदेश के बावजूद न्यायाधीशों की नियुक्तियों में केंद्र की देरी के खिलाफ याचिकाओं को हटाने के कारणों की मांग की है।

    5 दिसंबर को, मामलों के बैच में याचिकाकर्ताओं (सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) में से एक की ओर से पेश हुए भूषण ने इस मामले को सूची से हटाने के संबंध में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ के सामने मौखिक रूप से उल्लेख किया था। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि हालांकि याचिकाओं को शुरुआत में 5 दिसंबर की सूची में दिखाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया ।

    जस्टिस कौल ने भूषण की टिप्पणी के जवाब में कहा,

    "मुझे यकीन है कि मुख्य न्यायाधीश को इसकी जानकारी है।"

    जस्टिस कौल ने अदालत में कहा था,

    "मैं स्पष्ट करता हूं कि ऐसा नहीं है कि मैंने मामला हटा दिया है या मैं इस मामले को लेने के लिए तैयार नहीं हूं। दोनों।"

    इसके बाद, भूषण ने 8 दिसंबर को रजिस्ट्री (लिस्टिंग) को एक पत्र लिखा, जिसमें विशिष्ट तिथि पोस्टिंग के बावजूद मामले को केस सूची से हटाने का कारण पूछा गया।

    उन्होंने अपने पत्र में कहा,

    "इस महत्वपूर्ण मामले में 2018 से याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाली न्यायिक नियुक्तियों के मामलों में कार्यपालिका की जवाबदेही की मांग करना बेहद असामान्य लग रहा था, खासकर जब पीठासीन वरिष्ठ न्यायाधीश की जानकारी के बिना इसे हटाया गया और ये एक न्यायिक आदेश उल्लंघन था।"

    भूषण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पीठ ने सुनवाई की एक विशिष्ट तारीख दी थी क्योंकि पीठ ने न्यायिक नियुक्तियों को अधिसूचित करने से संबंधित मामलों में केंद्र सरकार द्वारा सख्त अनुपालन के लिए कई आदेश पारित किए थे और समयबद्ध तरीके से इसकी प्रगति की निगरानी कर रही थी।

    पत्र में कहा गया,

    "यह मामला कारण सूची से मामले को हटाने में रजिस्ट्री द्वारा गंभीर अनौचित्य को दर्शाता है, न्यायिक आदेश के बावजूद, जिसमें ये निर्देश दिया गया था कि मामले को एक निश्चित तारीख, यानी 5.12.2023 पर सूचीबद्ध किया जाए।"

    सुप्रीम कोर्ट के नियम, 2013 पर आधारित हैंडबुक ऑन प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर और ऑफिस प्रोसीजर, 2017 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि एक बार केस लिस्ट प्रकाशित होने के बाद इसे बदला नहीं जा सकता है।

    पत्र में तर्क दिया गया है कि नियमों और प्रक्रियाओं के मद्देनज़र, रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) केवल नियमों से भटक सकता हैं, अगर इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश के विशेष आदेश होते। भूषण के पत्र में कहा गया है कि यदि किसी विशिष्ट तिथि पर मामले को सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है, तो मामले को सूचीबद्ध करने के निर्देश स्वयं पीठासीन न्यायाधीश, जस्टिस कौल से प्राप्त किए जाने चाहिए।

    पत्र में कहा गया,

    "इस मामले में, पीठासीन न्यायाधीश इस मामले की गैर-सूचीबद्धता से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे और उन्होंने अदालत में स्पष्ट रूप से ऐसा कहा है, इसलिए उक्त नियमों और प्रक्रियाओं से हटना और भी गंभीर और अजीब है।"

    पिछले कई मौकों पर, पीठ ने कॉलेजियम प्रस्तावों पर बैठे रहने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की थी। केंद्र के "पिक एंड चूज" दृष्टिकोण, जिसके तहत केवल कुछ सिफारिशों को मंज़ूरी दी गई है और कुछ अन्य को लंबित रखा गया है, की भी न्यायालय की कठोर आलोचना हुई।

    जस्टिस कौल, जिन्होंने पहले अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वह नियुक्तियों में प्रगति की निगरानी के लिए मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध करेंगे, 25 दिसंबर से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अदालत 15 दिसंबर को शीतकालीन छुट्टियों के लिए बंद हो जाएगी।

    पिछले हफ्ते, भूषण ने जस्टिस बेला त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष मामलों के एक बैच को 'मनमाने ढंग से' सूचीबद्ध करने के खिलाफ रजिस्ट्री को एक समान पत्र लिखा था। ये मामले त्रिपुरा दंगों पर तथ्यान्वेषी रिपोर्ट के संबंध में पत्रकारों और वकीलों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) लागू करने को चुनौती देते हैं। भूषण ने कहा था कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था, क्योंकि इस मामले की सुनवाई पहले सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही थी।

    पिछले सप्ताह, सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने 'संवेदनशील मामलों' में बेंचों के बदलाव के बारे में सीजेआई चंद्रचूड़ को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि रजिस्ट्री द्वारा लिस्टिंग नियमों की अवहेलना की जा रही है। रोस्टर के मास्टर होने के नाते उन्होंने सीजेआई से लिस्टिंग में हुई त्रुटियों को सुधारने का अनुरोध किया था ।

    पिछले महीने, तमिलनाडु सतर्कता निदेशक के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को पत्र लिखकर लिस्टिंग के नियमों के विपरीत एक मामले को दूसरी पीठ को सौंपने पर आपत्ति जताई थी।

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