अनुच्छेद 142 की शक्ति के तहत पक्षकारों की आपसी सहमति पर विवाह समाप्त किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई स्थगित की
LiveLaw News Network
25 March 2021 11:16 AM IST
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर उठे सवाल से संबंधित मामले की सुनवाई स्थगित की, इस मामले में सवाल यह उठा कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा पक्षकारों को निर्धारित अनिवार्य अवधि तक इंतजार किए बिना सुप्रीम कोर्ट के प्रदत्त शक्तियों द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पक्षकारों की आपसी सहमति पर विवाह को समाप्त किया जा सकता है।
सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस गवई, जस्टिस बोपन्ना, जस्टिस रामसुब्रमण्यम और जस्टिस हृषिकेश रॉय की संविधान पीठ ने आज की सुनवाई के लिए यह मामला उठाया। बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की एमिकस रिपोर्ट को पढ़ने के लिए कुछ समय और लगेगा।
वरिष्ठ वकील जयसिंह ने कहा कि इस मामले को किसी और दिन भी उठाया जा सकता है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में तीन निर्णय को शामिल करने का समय भी मांगा। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति गोयल और न्यायमूर्ति ललित की खंडपीठ का एक फैसला है जो मामले के लिए प्रासंगिक होगा और इस मुद्दे को तय करने में मदद करेगा।
कोर्ट को बताया गया कि वर्तमान मामले में सीनियर एडवोकेट वी. गिरी दुष्यंत दवे, सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह और एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा सहित कुल 4 एमिकस नियुक्त किए गए थे। वर्तमान मामले में दो कानूनी सवाल उठे हैं, जो 6 मई 2015 को सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा बनाए गए हैं और 29 जून 2016 को एक अन्य खंडपीठ द्वारा एक संविधान पीठ को संदर्भित किया गया।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमना की खंडपीठ ने मई 2015 के आदेश में दो महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए, जो आवश्यक हैं;
• वे कौन-से व्यापक पैरामीटर हो सकते हैं जिसके तहत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा पक्षकारों को निर्धारित अनिवार्य अवधि तक इंतजार किए बिना सुप्रीम कोर्ट के प्रदत्त शक्तियों द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पक्षकारों की आपसी सहमति पर विवाह को समाप्त किया जा सकता है।
• क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस तरह के क्षेत्राधिकार का प्रयोग सभी मामलों में नहीं किया जा सकता या क्या इस तरह के क्षेत्राधिकार को हर मामलों के तथ्यों में निर्धारित किया जाना चाहिए।
बेंच ने सीनियर एडवोकेट वी. गिरी, एडवोकेट दुष्यंत दवे, एडवोकेट इंदिरा जयसिंह और एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा को इस मामले में उचित फैसला लेने में कोर्ट की मदद करने के लिए कहा।
कोर्ट के इस महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने का फैसला किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस तरह के अनेक मामले सामने आए हैं, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पति और पत्नी के बीच आपसी सहमित से संबंधित तलाक के मुद्दे का निर्धारण करना चाहिए।
कोर्ट ने स्थानांतरण याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सवालों की झड़ी लगा दी। शिल्पा शैलेश बनाम श्रीनिवासन के मामले में पक्षकारों ने आपसी सहमति से विवाह को समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उचित आदेश देने की मांग की।
कोर्ट ने मई 2015 में अपने आदेश में कहा था कि विवाह को समाप्त करना पति और पत्नी के बीच का मामला है और उन्हें तलाक के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत परिवार अदालत में जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि इस पर विचार के एक लंबी प्रक्रिया हो कि देश के फैमिली कोर्ट के समक्ष समान मुकदमेबाजी की तरह कई मामले भरे पड़े हैं जो एक लंबी प्रक्रिया है।
कोर्ट ने इसलिए इस मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने क्षेत्राधिकार के आधार पर पक्षकारों के बीच विवाह को समाप्त करने और उन्हें अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करने में सक्षम बनाने का निर्णय लिया। कोर्ट ने स्थानांतरण याचिकाओं को तब तक लंबित रखने का फैसला किया, जब तक कि कोर्ट द्वारा तय किए गए सवालों का फैसला नहीं हो जाता।
न्यायमूर्ति शिवा कीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति भानुमति की खंडपीठ ने 29 जून 2016 को तब कानून के सवालों पर विचार के लिए मामले को संविधान पीठ को सौंपने का फैसला किया। इस मामले को एक बड़ी खंडपीठ के हवाले करते हुए कोर्ट ने भी आपसी सहमति के आधार पर तलाक की मांग करने वाले पति या पत्नी द्वारा दायर शेष दो याचिकाओं को सुनने का फैसला किया।
कोर्ट ने कहा कि इस बात पर संदेह पैदा हो गया है कि शीर्ष अदालत को सीधे तौर पर ऐसी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए या नहीं। इसके लिए यह उचित होगा कि न्याय के लिए पक्षकारों को सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी जाए। इसलिए अदालत ने दोनों मामलों में पक्षकारों को निर्देश दिया कि वे अपने तलाक के आवेदन को सक्षम न्यायालय के समक्ष कानून के अनुसार निपटाएं।