लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत देरी को माफ करने की शक्ति सूट पर लागू नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

8 March 2022 6:10 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत देरी को माफ करने की शक्ति मुकदमों पर लागू नहीं होती है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि मिजोरम में 21.01.1972 से लिमिटेशन एक्ट लागू है।

    गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक फैसले को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि यह सीमा किसी विशेष पार्टी को कठोर रूप से प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसे पूरी कठोरता के साथ लागू किया जाना चाहिए, यदि विधि में वर्णित हो।

    इस मामले में, एक सार्वजनिक सड़क के निर्माण के लिए, वादी की भूमि से अधिकारियों द्वारा निकाले गए पत्थरों के मुआवजे की मांग करते हुए एक मनी सूट दायर किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने लिमिटेशन के आधार पर परिवाद खारिज करने संबंधी वाद को दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 के तहत खारिज कर दिया। बाद में, उन्होंने लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 5 के तहत एक आवेदन के साथ एक और अर्जी दायर की, जिसमें उक्त मुकदमा दायर करने में 325 दिनों की देरी को माफ करने की मांग की गई थी। इस आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने अनुमति दी थी। उक्त आदेश को रद्द करते हुए, गौहाटी हाईकोर्ट ने माना कि लिमिटेशन एक्ट मिजोरम में लागू था और धारा 5 वादों पर लागू नहीं होती, बल्कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के तहत आवेदनों को छोड़कर केवल अपीलों और अर्जियों पर लागू होती है।

    हाईकोर्ट के फैसले से सहमत होकर, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस प्रकार देखा:

    "जैसा कि 'पोपट बहिरू गोवर्धने एवं अन्य बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी एवं अन्य (2013) 10 एससीसी 765' मामले में इस कोर्ट द्वारा निर्णय दिया गया था और जिस पर हाईकोर्ट ने भरोसा जताया है, यह तय कानून है कि लिमिटेशन से एक विशेष पार्टी कठोर रूप से प्रभावित हो सकती है, लेकिन इसे अपनी पूरी कठोरता के साथ लागू किया जाना चाहिए, जब क़ानून ऐसा निर्धारित करता है। कोर्ट को न्यायसंगत आधार पर लिमिटेशन अवधि बढ़ाने की कोई शक्ति नहीं है, भले ही वैधानिक प्रावधान कभी-कभी किसी विशेष पार्टी के लिए कठिनाई या असुविधा का कारण हो सकता है, लेकिन न्यायालय के पास इसे पूर्ण रूप से लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।"

    कोर्ट ने 'जे. थानसियामा बनाम मिजोरम सरकार' मामले में दिये गये फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि लिमिटेशन एक्ट 21.01.1972 से मिजोरम में लागू हुआ। बेंच ने कहा :-

    "हाईकोर्ट ने सही माना कि लिमिटेशन एक्ट मिजोरम राज्य में लागू था और सीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 के अवलोकन से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि धारा 5 वादों पर लागू नहीं होती, बल्कि केवल अपीलों और आवेदनों पर लागू होती है, सिवाय सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के तहत आवेदन के।"

    हेडनोट्स

    लिमिटेशन एक्ट, 1963 - धारा 5 वादों पर लागू नहीं होती है, बल्कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के तहत आवेदनों को छोड़कर केवल अपीलों और आवेदनों पर लागू होती है - सीमा किसी विशेष पक्ष को कठोर रूप से प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसे पूरी कठोरता के साथ लागू किया जाना है। जब क़ानून ऐसा निर्धारित करता है। न्यायालय के पास न्यायसंगत आधार पर सीमा की अवधि बढ़ाने की कोई शक्ति नहीं है, भले ही वैधानिक प्रावधान कभी-कभी किसी विशेष पार्टी के लिए कठिनाई या असुविधा का कारण बन सकता है। कोर्ट के पास इसे पूर्ण रूप से लागू करते के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

    लिमिटेशन एक्ट, 1963 - 21.01.1972 से मिजोरम सरकार में लागू लिमिटेशन एक्ट। [जे. थानसियामा बनाम मिजोरम सरकार और अन्य के संदर्भ में]।

    सारांश - गौहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील, जिसमें कहा गया था कि लिमिटेशन एक्ट मिजोरम राज्य में लागू था और धारा 5 वादों पर लागू नहीं होती, बल्कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI के तहत आवेदनों को छोड़कर केवल अपीलों और आवेदनों पर लागू होती है – खारिज किया जाता है – हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह मनी सूट दाखिल करने में 325 दिनों की देरी को माफ नहीं कर सकता था।

    मामले का विवरण

    केस : एफ. लियानसांगा बनाम भारत सरकार| एसएलपी (सिविल) 32875-32876/2018 | 2 मार्च 2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 252

    कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी

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