बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द किया जीएसटी अथॉरिटी का आदेश, कहा-बैंक खातों को अटैच करने की शक्ति सीमित उपयोग के लिए

LiveLaw News Network

23 Jan 2020 8:03 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द किया जीएसटी अथॉरिटी का आदेश, कहा-बैंक खातों को अटैच करने की शक्ति सीमित उपयोग के लिए

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय के एक आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि कहा कि याचिकाकर्ता के बैंक खातों को अस्‍थायी रूप से अटैच करने का आदेश निदेशालय के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है।

    जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ कैश इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कैश इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपने डायरेक्टर दीपक कुमार के जरिए याचिका दायर की थी।

    याचिकाकर्ता के बैंक खाते को अस्‍थायी रूप से अटैच करने का आदेश कंपनी के एक संद‌िग्ध लेनदेन के आधार पर, जीएसटी अधिकारियों ने दिया था।

    अधिकारियों को संदेह था कि कंपनी धोखाधड़ी से इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठा रही है। एक अन्य कंपनी की खोज की गई और याचिकाकर्ता के खाते में बाद में पैसों का ट्रांसफर किया गया था।

    केस की पृष्ठभूमि

    मामले में प्रतिवादी जीएसटी अधिकारियों ने दिल्ली की एक निर्यात फर्म मेसर्स मैप्स ग्लोबल के खिलाफ जांच शुरू की थी। उन्हें संदेह था कि इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए मेसर्स मैप्स ग्लोबल धोखाधड़ी कर रही है। इस इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग निर्यात की गई वस्तुओं के भुगतान के लिए किया गया और बाद में रिफंड मांगा गया।

    अधिकारियों ने मेसर्स मैप्स ग्लोबल के बैंक खाते की जांच की और पाया कि 19 जून, 2019 और 12 जुलाई, 2019 को मेसर्स बालाजी इंटरप्राइज को 28 लाख 50 हजार की राशि हस्तांतरित की गई।

    बालाजी एंटरप्राइजेज ने 17 अक्टूबर, 2019 को याचिकाकर्ता के खाते में 1 करोड़ 36 लाख रुपये की राशि हस्तांतरित की।

    इसके बाद, जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय ने मेसर्स मैप्स ग्लोबल के खिलाफ जांच का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को 22 अक्टूबर, 2019 को समन जारी किया और 5 नवंबर को उपस्थित होने को कहा।

    समन में कहा गया है कि अधिकारियों के पास यह विश्वास करने का कारण है कि याचिकाकर्ता के पास जांच के लिए दस्तावेज और तथ्य हैं।

    याचिकाकर्ता को सीजीएसटी एक्ट की धारा 70 के तहत तलब किया गया था। उसी दिन, महानिदेशालय ने भारतीय स्टेट बैंक को पत्र जारी कर बैंक मैनेजर को याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की जा रही कार्यवाही के बारे में सूचित किया और कहा कि सीजीएसटी अधिनियम के 83 के तहत याचिकाकर्ता के बैंक खात को अस्‍थायी रूप से अटैच किया जाना आवश्यक है।

    बैंक प्रबंधक को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता के उक्त बैंक खाते या किसी अन्य खाते से डेबिट को अनुमति नहीं दी जाए। याचिकाकर्ता ने उसके बाद सीजीएसटी एक्ट की धारा 83 के तहत बैंक खाते अटैच करने के आदेश को चुनौती दी।

    दलीलें

    याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अंजलि झा मनीष पेश हुईं। उन्होंने दलील दी कि प्रतिवादी जीएसटी अधिकारियों की कार्रवाई सीजीएसटी एक्ट की धारा 83 के तहत प्रदत्त शक्ति से परे है। इस सेक्‍शन में तय सभी मापदंडों से संतुष्ट होने के बाद ही बैंक खाता अटैच करने की कार्रवाई की जा सकती है।

    उन्होंने दलील दी कि जिन आकस्मिकताओं के कारण खाते को अस्‍थायी रूप से अटैच करने का आदेश दिया जा सकता है, उन्हें धारा 83 में बताया गया है। एक्ट की धारा 62, 63, 64, 67, 73 और 74 के तहत कार्यवाही की विचाराधीनता उन वो आकस्‍मिकताएं में शामिल है।

    झा ने कहा कि इन धाराओं के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कार्यवाही शुरू या लंबित नहीं की गई है, केवल एक्ट की धारा 70 के तहत एक समन जारी किया गया है। धारा 70 ‌को एक्ट की धारा 83 में संदर्भित नहीं किया गया है।

    प्रतिवादी अधिकारियों की ओर से पेश प्रदीप जेटली ने दलील दी कि बैंक खाते को अस्‍थायी रूप से अटैच करने की शक्ति राजस्व हितों की रक्षा के लिए प्रदान की जाती है। और यह मामला ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए बिलकुल उपयुक्त था।

    जेटली ने मेसर्स मैप्स ग्लोबर के खिलाफ धारा 67 के तहत कार्रवाई की गई है, जिसे एक्ट की धारा 83 के तहत संदर्भित किया जाता है।

    धारा 83 की भाषा इंगित करती है कि किसी भी कार्यवाही की विचाराधीनता के दरम्यान (इस मामले में अधिनियम की धारा 67 के तहत) यदि आगे की जांच के लिए धारा 70 के तहत अन्‍य व्यक्तियों को समन जारी किया जाता है, तो ऐसे व्यक्तियों के बैंक खाते को अस्‍थायी रूप से अटैच किए जाने की इजाजत है।

    फैसला

    एक्‍ट की धारा 83 और आदेश का अध्ययन करने के बाद कोर्ट ने कहा-

    " प्रतिवादियों की मुख्य बचाव यह है कि अधिनियम की धारा 83 में उल्लिखित धारा 62, 63, 64, 67, 73 और 74 भले ही याचिकाकर्ता के मामले के संदर्भ में नहीं हैं, चूंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ अधिनियम की धारा 67 के तहत मेसर्स मैप्स ग्लोबल के खिलाफ शुरू की गई जांच के क्रम में समन जारी किया गया है, समन जारी करने के बाद कार्यवाही याचिकाकर्ता तक बढ़ जाती है।

    अधिनियम की धारा 83 के विश्लेषण से पता चलेगा कि इस तरह की व्याख्या स्वीकार्य नहीं है और विधायिका द्वारा इस पर विचार भी नहीं किया गया है। धारा 83 को रूल 159(1) और फॉर्म जीएसटी डीआरसी-22 के साथ पढ़ते हैं।

    धारा 83 हालांकि 'किसी भी कार्यवाही की विचाराधीनता' वाक्यांश का उपयोग करता है, कार्यवाही अधिनियम की धारा 62, 63, 64, 67, 73 और 74 के लिए संदर्भित है, किसी अन्य के ‌लिए नहीं। कर योग्य व्यक्ति, जिनके खिलाफ उपरोक्त धाराओं के तहत कार्यवाही शुरू की गई है, उनके बैंक खाते को अटैच किया जा सकता है।

    धारा 83 एक कर योग्य व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई को, किसी अन्य कर योग्य व्यक्ति तक स्वतः विस्तार की इजाजत नहीं देती है।"

    पीठ ने आगे कहा-

    "बैंक खातों को अस्‍थायी रूप से अटैच करने की शक्ति बहुत ही कठोर शक्ति है। बैंक खातों के अस्‍थायी रूप से अटैच करने से होने वाले परिणामों को देखते हुए, न्यायालयों ने बार-बार कहा है कि इस शक्ति का नियमित प्रयोग नहीं किया जाए।

    धारा 83 के तहत, सरकारी राजस्व की सुरक्षा के लिए बैंक खातों को अस्थायी रूप से अटैच करने की श‌क्ति अधिकारियों को दी गई है, लेकिन उसे बखूबी परिभाषित भी किया गया है। केवल आकस्मिकता की स्थिति में धारा 83 के तहत प्रदत्त शक्ति का उपयोग किया जा सकता है। इस शक्ति का उपयोग केवल सीमित परिस्थितियों में किया जाना है। यह एक सर्वग्राही शक्ति नहीं है। इसलिए प्रतिवादियों की दलील को स्वीकार करना संभव नहीं है।"

    कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया है और याचिकाकर्ता के बैंक खाते को अटैच करने के आदेश को रद्द कर दिया है।

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