"पुलिस शेयर ट्रांसफर करने से रोक रही है? हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते" : सुप्रीम कोर्ट ने यस बैंक को दिए गए उत्तर प्रदेश पुलिस के नोटिस पर रोक लगाई
LiveLaw News Network
30 Nov 2021 4:50 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीआरपीसी की धारा 102 के तहत यस बैंक को डिश टीवी द्वारा कथित रूप से गिरवी रखे गए शेयरों के संबंध में और शेयर ट्रांसफर करने या एजीएम में अपने मतदान अधिकारों का प्रयोग करने से रोकने के संबंध में नोटिस जारी करने पर उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 25 नवंबर के आदेश के खिलाफ यस बैंक की एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एफआईआर और सीआरपीसी की धारा 102 के तहत जारी नोटिस के खिलाफ बैंक की रिट याचिका खारिज कर दी गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 226 के तहत ऐसे विवादित तथ्यों की जांच नहीं की जा सकती क्योंकि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय हैं और वह एक वैध जांच को रोकने के लिए अपने रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए इच्छुक नहीं है।
पीठ ने मंगलवार को दर्ज किया कि मुख्य मुद्दा जो एसएलपी में प्रचारित किया गया है, जो 25 नवंबर के इलाहाबाद में हाईकोर्ट की न्यायिक खंडपीठ के एक फैसले और आदेश से उत्पन्न होता है, यह है कि नोटिस सीआरपीसी की धारा 102 के तहत जारी किया गया था, वह नोटिस जारी करने वाले अधिकारी प्रतिवादी नंबर दो पी.सी., पुलिस आयुक्तालय, जी.बी. नगर ग्रेटर नोएडा में अपराध शाखा के जांच अधिकारी के अधिकार क्षेत्र से परे है।
पीठ ने आगे दर्ज किया कि याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वर्ष 2016 से 2018 के बीच एस्सेल समूह और उसकी सहयोगी कंपनियों को 5,720 करोड़ रुपये के लोन दिए गए। लगभग 44.53 करोड़ रुपये की पेल्जिंग मई और जुलाई, 2020 के बीच की गई जिसकी सूचना बीएसई, एनएसई और आरबीआई को दी गई। इस प्लेजिंग के लिए सिविल कार्यवाही करने की मांग की गई थी जिसे वापस ले लिया गया है।
तीसरे प्रतिवादी द्वारा 22 जून, 2020 को एक शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिसमें शिकायत की गई थी कि उधारकर्ताओं को ऋण लेने के लिए प्रेरित किया गया है या उन पर दबाव डाला गया है। शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 409, 120 बी, 34 के तहत 12 सितंबर, 2020 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। कंपनी 'डिश टीवी' की एजीएम 30 नवंबर, 2021 को होनी थी जिसे टाल दिया गया।
पीठ ने कहा,
"उपरोक्त पृष्ठभूमि में यह प्रस्तुत किया गया है कि सीआरपीसी की धारा 102 के तहत एक नोटिस जो दूसरे प्रतिवादी द्वारा जारी किया गया है, याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वह 44.53 करोड़ शेयरों को हस्तांतरित न करे या शेयरों के संबंध में 'जांच पूरी होने तक' अधिकारों का प्रयोग न करे। ये के आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं और स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता को गिरवी रखे गए शेयरों के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करने से रोकने के लिए आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हालांकि याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि सीआरपीसी की धारा 451 और धारा 457 के तहत एक वैकल्पिक उपाय है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, तीसरे प्रतिवादी के लिए एक जवाबी हलफनामा दायर करने का अवसर मांगते हुए प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं के पक्ष में न तो एक वास्तविक ऋण लेनदेन है और न ही शेयरों की वैध गिरवी है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा,
"हम गौतमबुद्धनगर में बैठे पुलिस अधिकारियों को इस तरह की कवायद करने की अनुमति नहीं दे सकते कि वे शेयरों को ट्रांसफर करने से रोके या एजीएम में वोटिंग से रोके। पुलिस अधिकारी ने कुछ ऐसा किया है जो कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने भी नहीं किया। ऐसा होने पर किस तरह की स्थिति बनेगी? हम देश में इसकी अनुमति नहीं दे सकते।"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा,
"हम पुलिस को इस तरह की शक्ति नहीं देना चाहते। वे अन्य पब्लिक लिमिटेड कंपनियों में हस्तक्षेप करना शुरू कर देंगे। हम इसकी अनुमति नहीं देंगे। यह सबसे आसान होगा एक पुलिस अधिकारी को पकड़ो और कंपनी से एक शेयरधारक को वोटिंग अधिकारों का प्रयोग करने और शेयरों को स्थानांतरित करने से रोक दो।
आपराधिक प्रक्रिया का उपयोग करके आप परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं, जिसके लिए आपको एक सिविल कार्यवाही का सहारा लेना चाहिए? यह बहुत खतरनाक है। अगर आप पुलिस अधिकारियों को ये काम करने देंगे तो इसका समग्र रूप से परिणाम सोचिए।"
फिर पीठ ने अपने आदेश को आगे बढ़ाया,
"प्रथम दृष्टया, इस स्तर पर हमारा विचार है कि गिरवी रखे गए शेयरों के संबंध में याचिकाकर्ता के हितों की रक्षा करना आवश्यक होगा। प्लेजिंग को स्वीकार किया जाता है, इसलिए हम नोटिस जारी करते हैं।"