ट्विटर पर कंटेंट की जांच और फेक न्यूज़ चेक करने की मैकेनिज़्म बनाने के निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

21 May 2020 2:30 AM GMT

  • ट्विटर पर कंटेंट की जांच और फेक न्यूज़ चेक करने  की मैकेनिज़्म बनाने के निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    "ट्विटर और सोशल मीडिया कंपनियां लाभ कमाने वाली कंपनियां हैं और इनसे अपेक्षा की जाती है कि सोशल मीडिया को सुरक्षित बनाने के लिए उनके पास सुरक्षा के महत्वपूर्ण साधन हैं। लॉजिक और एल्गोरिदम जो ट्विटर उपयोग करता है, उसे भारत सरकार के अधिकारियों या सक्षम प्राधिकारी के समक्ष स्क्रीनिंग के लिए साझा किया जाना चाहिए।"

    भाजपा नेता विनीत गोयनका ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है ताकि केंद्र सरकार को एक मेकेनिज़्म तैयार करने की दिशा में कदम उठने के लिए निर्देश दिए जा सकें जिससे सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर के माध्यम से प्रसारित होने वाली फर्जी खबरों और भड़काऊ संदेशों पर नजर रखी जा सके।

    अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि एक उचित मैकेनिज़्म के अभाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल सेपरेटिस्ट एजेंडा, राजद्रोही सामग्री, समुदायों के बीच नफरत और बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ भड़काऊ और विभाजनकारी बातें फैलाने के लिए किया जा रहा है।

    उसी ने देश के एकता, अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती देते हुए समाज के कुछ वर्गों में दहशत पैदा की है। इस प्रकार, इस तरह की सामग्री की जाँच करने और उन्हें हटाए जाने के लिए भारत संघ, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और कानून और न्याय मंत्रालय को दिशा-निर्देश देने की मांग की जाती है।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि अनुच्छेद 19 और 20 के तहत नागरिक और व्यक्तिगत जीवन के अंतराष्ट्रीय करार के अनुसार सरकार ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए बाध्य है।

    यह दलील जर्मनी सरकार की भी है, जिसने हाल ही में अपने देश में घृणा फैलाने वाले भाषणों या विज्ञापनों के प्रसार को रोकने के लिए उक्त अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत "नेटवर्क इंफोर्समेंट एक्ट, 2017" लागू किया है।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि ट्विटर पर प्रख्यात लोगों और उच्च प्रतिष्ठित लोगों के नाम पर फर्जी खातों के माध्यम से प्रसारित की जा रही खबरें दिल्ली दंगों 2020 सहित भारत के कई दंगों का मूल कारण हैं।

    उन्होंने आगे कहा है कि आईएसआईएस, अलकायदा और भारतीय मुजाहिद्दीन जैसे वैश्विक आतंकी समूह भी ट्विटर और अन्य सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्मों का उपयोग नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए करते हैं।

    यह आरोप लगाया गया है कि ट्विटर "जानबूझकर" उन संदेशों को बढ़ावा देता है जो देश के कानून के खिलाफ हैं और इसलिए यह तर्क दिया जाता है कि कंपनी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले लॉजिक और एल्गोरिदम को भारत सरकार या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा भारत विरोधी स्क्रीनिंग के लिए वीटो किया जाना चाहिए।

    यह प्रस्तुत किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत बोलने की स्वतंत्रता पर एक उचित प्रतिबंध लगाना भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में होगा।

    दलील में कहा गया है कि भारत में सभी सोशल मीडिया हैंडल को सुरक्षित, जवाबदेह और ट्रेस करने योग्य बनाने के लिए उनका केवाईसी किया जाना चाहिए।

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