टीनेज रिलेशनशिप के मामलों में POCSO अपराधों के कंपाउंडिंग की मांग करते सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

23 March 2021 9:15 AM GMT

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर कर यह मुद्दा उठाया गया है कि क्या एक किशोर लड़का, जो 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध बनाता है, उसको पाॅक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस) के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है?

    याचिका में कहा गया है कि,''एक ऐसे किशोर को सजा देना,जिनके बीच आपसी सहमति से अफेयर था जो बाद में किसी कारण से खराब हो गया, अधिनियम के उद्देश्य के रूप में नहीं माना जा सकता है और यह केवल अधिनियम की उद्देश्य को पराजित करेगा। अधिनियम उस पहलू पर मौन है जहां दो व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र के हो सकते हैं और आपसी सहमति से रिश्ते में प्रवेश करते हैं और इसके अभाव में, निश्चित रूप से बदलती सामाजिक आवश्यकताओं के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अधिनियम में कानून के आवेदन को ऐसे संबंध बनाने वाले व्यक्तियों पर लगाने और उनको दंडित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। निश्चित रूप से इस तरह की सहमति की घटनाओं को पाॅक्सो एक्ट के ऐसे कड़े प्रावधानों की प्रकृति के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है।''

    मारुथुपंडी बनाम राज्य मामले में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश के खिलाफ विशेष रूप से यह याचिका दायर की गई है। इस फैसले के तहत माना गया है कि भले ही नाबालिग लड़की को प्यार हो जाता है और अपने साथी के साथ एक सहमति से संबंध विकसित करती है, तो भी उसके साथी के खिलाफ पाॅक्सो एक्ट के प्रावधान लागू होंगे।

    उक्त आदेश में, न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की एकल पीठ ने अभियुक्त की तरफ से दायर उस आवेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था,जिसमें उसने अपराध के कंपाउंडिंग (समझौते योग्य) की मांग की थी। पीठ ने कहा था कि पाॅक्सो एक्ट के तहत किया गया कोई भी अपराध कंपाउंडिंग अपराध नहीं है।

    हाईकोर्ट इस मामले में मारुथुपंडी द्वारा दायर एक अपील पर विचार कर रहा था,जिसमें उसने पाॅक्सो एक्ट की धारा 5 (l) रिड विद धारा 6 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा पारित सजा के आदेश को चुनौती दी थी।

    इन कार्यवाहियों के दौरान, पीड़िता के अतिरिक्त साक्ष्य को रिकाॅर्ड पर लेने के लिए आवेदन दायर किया गया। जिसमें बताया गया कि दोनों पिछले चार वर्षों से साथ रह रहे थे और उनका संबंध सहमति से था। लेकिन अंततः इस आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि कथित अपराध के समय, पीड़ित और आरोपी (याचिकाकर्ता) दोनों की उम्र लगभग 17 वर्ष थी।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि इस मामले में कोई यौन हमला या हिंसा शामिल नहीं थी,बस उनके बीच 'प्रेम प्रसंग खराब' हो गया था।

    याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ लगाए गए अपराध को कंपाउंड करने की अनुमति न देने के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह फैसला 'विजयलक्ष्मी व अन्य बनाम राज्य' के मामले में हाईकोर्ट की एक अन्य समन्वित खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले के विपरीत है।

    उस मामले में (विजयलक्ष्मी) न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने कहा था कि एक नाबालिग लड़की के साथ संबंध बनाने वाले एक किशोर लड़के को एक अपराधी के रूप में दंडित करना कभी भी पाॅक्सो एक्ट का उद्देश्य नहीं था।

    न्यायमूर्ति आनंद ने कहा था,

    "एक किशोर लड़का और लड़की जो अपने हार्मोन और जैविक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे हैं और जिनकी निर्णय लेने की क्षमता अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है, उन्हें अनिवार्य रूप से बड़े पैमाने पर अपने माता-पिता और समाज का समर्थन और मार्गदर्शन मिलना चाहिए। इन घटनाओं को कभी भी वयस्क के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए और इस तरह की समझ वास्तव में सहानुभूति की कमी का कारण बनेगी। एक किशोर लड़के को इस प्रकृति के मामले में जेल भेजने से उसे जीवन भर सताया जाएगा।''

    इसी तरह, हाईकोर्ट की एक अन्य समन्वय पीठ (न्यायमूर्ति वी पार्थिबन )ने सबरी बनाम इंस्पेक्टर आॅफ पुलिस के मामले में चर्चा की थी कि 16 से 18 वर्ष की आयु के व्यक्ति प्रेम संबंधों में शामिल होते हैं और कुछ मामलों में आखिरकार ऐसे संबंध पाॅक्सो एक्ट के तहत अपराध का मामला दर्ज होने पर समाप्त होते हैं।

    न्यायमूर्ति पार्थिबन ने कहा कि,

    ''जब 18 साल से कम उम्र की लड़की एक किशोर लड़के के साथ संबंध बनाती है या जो किशोर की उम्र से थोड़ा बड़ा होता है, तो यह हमेशा एक सवालिया निशान होता है कि इस तरह के रिश्ते को कैसे परिभाषित किया जा सकता है, हालांकि इस तरह के संबंध आपसी नादानी और बाइलाॅजिकल आकर्षण का नतीजा होते हैं। एक लड़के व एक लड़की के बीच बनने वाले इस तरह के रिश्ते को अप्राकृतिक/प्रतिकूल नहीं माना जा सकता है। लेकिन ऐसे मामलों में जहां लड़की की उम्र 18 साल से कम होती है, भले ही वह मानसिक रूप से परिपक्व होने के नाते इस रिश्ते के लिए सहमति देने में सक्षम थी, दुर्भाग्य से, अगर ऐसे संबंध प्लेटोनिक सीमाओं से आगे बढ़ जाते हैं तो पाॅक्सो एक्ट के प्रावधान आकर्षित होते हैं। ऐसे में पाॅक्सो अधिनियम के प्रावधानों द्वारा अनुमोदित कानून का हाथ, यौन उत्पीड़न के तथाकथित अपराधी के लिए 7/10 साल के कठोर कारावास की सजा तय करता है।''

    न्यायाधीश ने सुझाव दिया था कि 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से संबंधित यौन उत्पीड़न के मामलों को 16 वर्ष से ज्यादा के किशोरों के मामलों से अलग करने के लिए अधिनियम में ही अधिक उदार प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं।

    इस पृष्ठभूमि में, तत्काल याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि उसके खिलाफ लगाए गए अपराधों को कंपाउंड करने से इनकार करने का आदेश दो कोर्डिनेट बेंच के फैसलों के खिलाफ है।

    याचिकाकर्ताओं ने एस कासी बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी हवाला दिया है, जिसमें माना गया है कि एक समन्वय पीठ को किसी अन्य समन्वय पीठ के निर्णय का पालन करना चाहिए और अस्पष्टता के मामले में, इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को संदर्भित करना चाहिए।

    शीर्ष अदालत ने कहा था, ''एक समन्वित खंडपीठ इसके विपरीत विचार नहीं दे सकती है और अगर उन्हें कोई संदेह है, एक समन्वय पीठ केवल एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने के लिए मामले को संदर्भित कर सकती है। न्यायिक अनुशासन ऐसा करता है।''

    याचिकाकर्ता ने कहा है कि कानून के एक ही बिंदु पर दो समन्वय पीठों के फैसले के विपरीत विचार देने से पहले, एकल न्यायाधीश को स्थिरता और न्यायिक अनुशासन के तय सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए था।

    याचिका अधिवक्ता राहुल श्याम भंडारी के माध्यम दायर की गई है।

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