मकान मालिकों द्वारा छात्र / श्रमिक वर्ग के किरायेदारों से किराया मांगने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

19 April 2020 1:32 PM GMT

  • मकान मालिकों द्वारा छात्र / श्रमिक वर्ग के किरायेदारों से किराया मांगने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    लॉकडाउन के बीच मकान मालिकों द्वारा छात्र / श्रमिक वर्ग के किरायेदारों से किराए की लगातार मांग पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है।

    दिल्ली के वकील पवन प्रकाश पाठक और कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली के अंतिम वर्ष के एक छात्र अभिजीत द्वारा जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र की उस एडवाइजरी को लागू करने की अनुमति मांगी गई है जिसमें मकान मालिकों को लॉकडाउन अवधि के दौरान किराए का भुगतान करने में विफल सभी मजदूरों और छात्रों को अपने मकान खाली ना कराने के लिए कहा गया है।

    याचिकाकर्ताओं ने बताया कि एडवाइज़री के बावजूद, कई उदाहरण हैंं जिनमें कि मकान मालिक उपरोक्त वर्ग के नागरिकों को परिसर खाली करने के लिए मजबूर कर रहे हैं या उनके परिसर से बाहर फेंकने की धमकी दी जा रही है।

    याचिका में कहा गया कि,

    "दिल्ली, मुंबई, कोटा , चेन्नई जैसे भारत के विभिन्न राज्य छात्रों के लिए केंद्र हैं और इन शहरों में छात्र और मजदूर बड़े पैमाने पर रहते हैं। हालांकि उनकी तुलनात्मक रूप से आय कम है और तीन मई, 2020 तक लॉक-डाउन का विस्तार कर दिया गया है। इसीलिए ये वर्ग किराये के आवास का भुगतान करने के मुद्दे का सामना कर रहा है क्योंकि इस अवधि के दौरान आय का स्रोत शून्य है और इन परिवारों में बचत कम से कम है और भोजन के लिए वे स्थानीय सरकार द्वारा विस्तारित सेवाओं, उचित मूल्य की दुकानो और अन्य NGO की मदद पर निर्भर हैं।"

    याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा कि कई छात्र शहर भर में निजी PG में रहते हैं और भोजन के लिए वे PG मालिकों द्वारा दिए गए भोजन पर निर्भर रहते हैं, और इसके लिए वे प्रति माह एक निश्चित राशि का भुगतान करते हैं जो किराए में शामिल है। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान PG मालिक आने-जाने पर प्रतिबंध के कारण भोजन प्रदान नहीं कर रहे हैं, लेकिन फिर भी PG मालिक उसी किराए की मांग कर रहे हैं, जो वे छात्रों को भोजन प्रदान करते समय आमतौर पर लेते हैं।

    इस संदर्भ में याचिका में जोड़ा गया कि

    "अधिकांश माता-पिता स्व-रोजगार से जुड़े हैं और क्योंकि इस महामारी ने उनकी आय में भी सेंध लगा दी है, वे जो भी न्यूनतम बचत जमा करते हैं, उन्हें खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस लॉक डाउन के अंत होने और सामान्य होने पर उच्च अनिश्चितता बनी हुई है और ऐसे में मकान मालिकों द्वारा किराए की किसी भी मांग से स्थिति न केवल और खराब होगी बल्कि छात्रों को अनुचित उत्पीड़न और शर्मिंदगी भी उठानी पड़ेगी। "

    इन परिस्थितियों में, याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि छात्र और श्रमिक वर्ग निरंतर भय और अवसाद में जी रहा है। याचिका में टिप्पणी की गई है कि

    "लॉकडाउन के कारण वो वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं, ऐसी स्थिति में केवल एक विकल्प बचा है, या तो वो जमा पूँजी में से किराया दे सकते हैं या इस अवधि में परिवार के लिए आवश्यक राशन / भोजन खरीद सकते हैं।"

    इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत छात्रों और मजदूरों के जीने के मौलिक अधिकार के कार्यान्वयन पर जोर देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने छात्रों और मजदूरों से किराए की मांग को रोकने के लिए सरकारी एडवाइजरी के सख्त प्रवर्तन की मांग की है और आगे कहा है कि COVID 19 के बीच किरायेदारों को निकालने की शिकायतों पर त्वरित प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए।

    आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पिछले महीने उक्त एडवाइज़री जारी की गई थी।


    याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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