'10 साल के अनुभव वाले वकील को बाहर रखा गया': सुप्रीम कोर्ट में एनसीडीआरसी और एनसीएलटी सदस्यों की नियुक्ति के विज्ञापन को चुनौती देते हुए याचिका दायर

LiveLaw News Network

25 March 2022 12:53 PM GMT

  • 10 साल के अनुभव वाले वकील को बाहर रखा गया: सुप्रीम कोर्ट में एनसीडीआरसी और एनसीएलटी सदस्यों की नियुक्ति के विज्ञापन को चुनौती देते हुए याचिका दायर

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी), नई दिल्ली में "तीन सदस्यों" की नियुक्ति के लिए उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी 28 अक्टूबर, 2021 के विज्ञापन को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई।

    याचिका में एनसीएलटी में तीन न्यायिक सदस्यों और दो तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति के लिए कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा जारी 13 अक्टूबर, 2021 के विज्ञापन को भी चुनौती दी गई।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के समक्ष मामले को सूचीबद्ध किया गया।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को जब इस मामले की सुनवाई की गई तो पीठ के समक्ष लाया गया तो कहा कि याचिका को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करना होगा, जिसमें से कोई भी (जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत) सदस्य नहीं हैं।

    तदनुसार पीठ ने आदेश में कहा,

    "कार्यवाही को उस बेंच के समक्ष रखा जाएगा जिसका हम में से कोई भी सदस्य नहीं है। रजिस्ट्री सीजेआई के निर्देश मांगेगी और दो सप्ताह के भीतर निर्दिष्ट बेंच के समक्ष याचिका रखेगी।"

    अधीनस्थ अदालत में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका में ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 ("एक्ट") और ट्रिब्यूनल {सेवा की शर्तें} नियम 2021 की धारा (एस) 3(1), 3(7), 5 के दायरे को भी चुनौती दी गई।

    याचिका में यह तर्क दिया गया कि यदि नियमों को इस रूप में संचालित करने की अनुमति दी जाती है तो भारत में दस साल प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को सदस्यों के पद के लिए आवेदन करने से गंभीरता से रोका जाएगा, जब तक कि उनके पास संबंधित क्षेत्र में 25 साल का अनुभव न हो।

    याचिका में यह भी कहा गया कि 10 साल के अनुभव वाले अधिवक्ताओं को आठ ट्रिब्यूनल में सदस्य के रूप में नियुक्त करने से बाहर करने का एक विशिष्ट प्रयास है, क्योंकि रेलवे दावा न्यायाधिकरण के नियम 6 (ई) , नियम 7 (सी) (ii) ) प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण में नियम 10 (बी) दूरसंचार विवाद अपीलीय न्यायाधिकरण में, नियम 11 (सी) राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में, नियम 12 (बी) (iii) राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में, नियम 13 (सी) बिजली में अपीलीय न्यायाधिकरण, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में नियम 14 (सी) (iii), नियम 15 (सी) (i) और (ii) राष्ट्रीय हरित अधिकरण के नियमों के अनुसार इनमें सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए 25 साल के अनुभव की आवश्यकता है।

    याचिका में कहा गया,

    "हाईकोर्ट में 10 साल से अधिक प्रैक्टिस अनुभव वाले लेकिन 25 साल से कम प्रैक्टिस अनुभव के अधिवक्ताओं को स्पष्ट रूप से ट्रिब्यूनल में सदस्यों की नियुक्ति से बाहर रखा गया है, जबकि उन्हें अनुच्छेद 217 (2) के अनुसार हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के योग्य माना जाता है। उक्त श्रेणी के वकीलों को सीपी अधिनियम 1986 की धारा 20 के पूर्व प्रावधान में भी योग्यता प्राप्त है। याचिकाकर्ता को लगता है कि उक्त खंड (सी) प्रकृति में मनमाना है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द करने की आवश्यकता है। उक्त खंड का उद्देश्य केवल सरकारी कर्मचारियों को ट्रिब्यूनल में लाना है जिससे 10 साल से अधिक समय से प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता भी इन नियुक्ति में भाग ले सकें।"

    मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया {एमबीए 2020} और मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया {एमबीए केस 2021} में निर्णय (निर्णयों) का जिक्र किया, जिसमें भारत संघ को नियम बनाने के लिए निर्देश जारी किए गए थे, जिससे ट्रिब्यूनल में सदस्य बनने के 10 वर्षों के अनुभव वाले योग्य अधिवक्ताओं को नियुक्त किया जा सके।

    पिछले साल बॉम्बे हाईकोर्ट ने उपभोक्ता संरक्षण नियमों के प्रावधानों की उस सीमा को रद्द कर दिया, जिसमें 10-20 साल प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को उपभोक्ता आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति से बाहर कर दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र को छोड़कर (हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर) उपभोक्ता आयोग के रिक्त पदों को भरने के लिए राज्यों को निर्देश जारी किए हैं।

    याचिका अधिवक्ता डॉ तुषार मंडलेकर द्वारा तैयार की गई है और एओआर आस्था शर्मा द्वारा दायर की गई है।

    केस शीर्षक: महिंद्रा भास्कर लिमयी बनाम भारत संघ| डब्ल्यूपी (सिविल) 2021 का 1340

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