अमरनाथ यात्रा रद्द करने और भक्तों के लिए धार्मिक अनुष्ठानों का सीधा प्रसारण करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

10 July 2020 6:22 AM GMT

  • अमरनाथ यात्रा रद्द करने और भक्तों के लिए धार्मिक  अनुष्ठानों का सीधा प्रसारण करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि COVID19 महामारी के मद्देनजर वर्ष 2020 के लिए आयोजित वार्षिक श्री अमरनाथ यात्रा पर आम जनता के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए और इसके लिए न्यायलय द्वारा निर्देश जारी किए जाएं।

    श्री अमरनाथ बर्फानी लंगर संगठन (एसएबीएलओ) की ओर से अधिवक्ता अमित पई ने यह याचिका दायर की है। यह संगठन यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं/तीर्थयात्रियों को मुफ्त में सेवा देता है। संगठन तीर्थयात्रियों को को भोजन, आश्रय ,चिकित्सा सुविधाएं आदि प्रदान करता है। जो हर साल श्री अमरनाथ यात्रा के सुचारू संचालन को आसान बनाती हैं।

    एसएबीएलओ ने दलील दी कि देश में मौजूदा स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बने खतरे के मद्देनजर इस यात्रा को श्रद्धालुओं/ तीर्थयात्रियों के लिए रद्द करना अनिवार्य है। संगठन ने यह भी कहा है कि एनडीएमए 2005 के तहत परिभाषित देश में मौजूद आपदा की स्थिति इस वर्ष की यात्रा को जनता के लिए प्रतिबंधित करना उचित मानती है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 को लागू करने लिए भी यह जरूरी है।

    याचिकाकर्ता-संगठन ने कहा है कि-

    ''इस वर्ष महामारी के प्रकोप के कारण, यह दलील दी जाती है कि सारी पूजा केवल आवश्यक व्यक्तियों/ ट्रस्टियों आदि तक ही सीमित कर दी जानी चाहिए। इस यात्रा को भक्तों और तीर्थयात्रियों के लिए नहीं खोलना चाहिए ... वर्तमान याचिकाकर्ता महामारी के प्रकोप में केवल भक्तों/ तीर्थयात्रियों की भागीदारी पर एक प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है।''

    याचिका में कहा गया है कि यात्रा की तारीखों की घोषणा अभी नहीं की गई है और इसके बावजूद कुछ भंडारा संगठनों को 28 जून से पहले कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने और 3 जुलाई से सेवाएं (सेवा) शुरू करने की अनुमति दे दी गई है। जिसके बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

    हालांकि 22 अप्रैल को इस यात्रा को श्राइन बोर्ड द्वारा रद्द कर दिया गया था परंतु उक्त यात्रा को रद्द करने के कुछ घंटों के भीतर ही इस घोषणा को वापस ले लिया गया था। संगठन ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि यह वर्तमान परिस्थितियों में घातक हो सकता है,चूंकि इस समय ''भारत में COVID19 के मामलों की संख्या लगभग 5.5 लाख है'' और ''तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा रद्द करने की घोषण को वापिस लेने के लिए भी कोई औचित्य नहीं बताया गया है।''

    इसके अलावा यह भी दलील दी गई है कि वर्तमान में देश में लागू होने वाले सोशल डिस्टेंसिग के मानदंडों और मानकों को ध्यान में रखते हुए आगे भी प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। वहीं यात्रा को भी बंद करने की आवश्यकता है क्योंकि परिवहन और आवास सुविधाओं की अनुपस्थिति तीर्थयात्रियों को भारी कठिनाई में डाल देगी।

    अनुच्छेद 25 के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के प्रति ''सार्वजनिक स्वास्थ्य'' के अपवाद को आमंत्रित या लागू करते हुए मांग करते हुए कहा गया है कि इस ''अभूतपूर्व'' स्थिति में केवल उन आवश्यक व्यक्तियों तक ही पूजा या सेरेमनी को सीमित कर दिया जाए,जो इसको सपंन्न करने के लिए आवश्यक हैं।

    याचिका में कहा गया है कि-

    ''वर्तमान मामला अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 21 व 14 के तहत मिलें मौलिक अधिकारों को एक साथ पढ़ने के बाद एक टकराव को सामने लाता है। यह भी प्रस्तुत किया जाता है कि माननीय न्यायालय बार-बार इस बात को मान चुका है कि अनुच्छेद 21 में स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। वर्तमान याचिका इस तथ्य पर आधारित है कि इस समय देश में एक अभूतपूर्व स्थिति है,ऐसे में श्री अमरनाथ यात्रा जारी रखने से या इस यात्रा में लाखों भक्तों और तीर्थयात्रियों की भागीदारी केवल इस महामारी की आग को हवा देने का ही काम करेगी।''

    संगठन का कहना है कि इसी तरह की अन्य तीर्थ यात्रा पहले ही रद्द की जा चुकी हैं। हालांकि देश ''अनलॉक मोड'' में जा रहा है परंतु अधिकारियों के लिए उस दिशा में सावधानीपूर्वक चलना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि COVID19 वायरस के प्रकोप के संबंध में पूर्ववत में जो कुछ हासिल हो चुका है,वह सब खराब न हो जाए।

    इसके अतिरिक्त याचिका में मांग की गई है कि भगवान श्री अमरनाथ श्राइन का लाइव टेलीकास्ट इंटरनेट और टेलीविजन के माध्यम से किया जाता है ताकि ''देश भर के करोड़ों लोगों''को ''लाइव दर्शन'' की सुविधा मिल सके।

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