लॉकडाउन के बाद प्रवासी मज़दूरों के पुनर्वास के लिए किए जाएं उपाय, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

7 April 2020 4:41 AM GMT

  • लॉकडाउन के बाद प्रवासी मज़दूरों के पुनर्वास के लिए किए जाएं उपाय, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

    अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर कर मांग की है कि देशव्यापी लॉकडाउन खत्म होने के बाद प्रवासी मज़दूरों के लिए प्रभावी पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए जाएं।

    श्रीवास्तव ने पहले से ही एक जनहित याचिका दायर कर रखी है। यह आवेदन उसी जनहित याचिका के साथ दायर किया गया है, जिसमें प्रवासियों श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई करने की मांग की गई है।

    इस आवेदन में प्रवासी श्रमिकों के लिए भोजन, पानी, आश्रय और चिकित्सा सहायता जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराने की मांग की गई है। श्रीवास्तव ने दलील दी है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद प्रासंगिक या संबंधित विकास फिर से शुरू होने की संभावना है, इसलिए अदालत से आग्रह किया है कि लाॅकडाउन समाप्त होने के बाद इन श्रमिकों की भलाई के लिए कदम उठाए जाएं।

    इस आवेदन में आवेदक ने कई सुझाव दिए हैं। साथ ही मांग की है कि सरकार को निर्देश दिया जाएं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद सभी प्रवासी श्रमिकों को यह सब प्रदान किए जाएं। जो इस प्रकार हैं-

    -विशेष बस / ट्रेन के माध्यम से उनको उनके गंतव्य तक जाने के लिए मुफ्त परिवहन।

    - एक महीने की न्यूनतम वैधानिक मजदूरी की राशि दी जाए, ताकि नई नौकरी खोजने या पिछले रोजगार को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया को सुचारू किया जा सकें।

    - राशन कार्ड पर जोर दिए बिना एक महीने का मुफ्त राशन दिया जाए।

    इसके अलावा, यह प्रार्थना भी की गई है कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह पीड़ित श्रमिकों के पुर्नवास के लिए एक अग्रिम व समग्र योजना तैयार करें। साथ ही ''प्रवासी मजदूर संकट प्रबंधन बोर्ड को एक सामान्य गेटवे के रूप में''स्थापित करें ताकि इन कल्याणकारी उपायों का निरीक्षण और निगरानी की जा सकें और भविष्य में ऐसे संकट से बचा जा सकें।

    ऐसी स्थिति की पुनरावृत्ति से बचने के लिए, श्रीवास्तव ने 24-घंटे काम करने वाले एक बहुभाषी कॉल सेंटर को स्थापित करने के लिए भी मांग की है। जो भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर प्रवासी श्रमिकों को सटीक जानकारी देने और प्रभावी शिकायत निवारण प्रदान करने वाले केंद्र बिंदु के रूप में कार्य कर सकें।

    पिछले हफ्ते जब मूल याचिका पर विचार किया गया था, तो सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि 31 मार्च को सुबह 11 बजे तक सड़कों पर कोई प्रवासी श्रमिक नहीं था। न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन करते हुए, सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के कल्याण और राष्ट्रव्यापी तालाबंदी से उत्पन्न पलायन को रोकने के लिए किए गए उपायों के बारे में अपनी स्थिति रिपोर्ट भी प्रस्तुत की थी।

    यह कहा गया था कि सभी पीड़ित श्रमिकों को आश्रय या अन्य सरकारी सुविधाओं के लिए ले जाया गया है, जहाँ उन्हें आवश्यक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

    ममले की सुनवाई के दौरान, श्रीवास्तव ने मौखिक रूप से दलील दी थी कि ''प्रवासी मजदूरों के वर्तमान पलायन के प्रमुख कारणों में कुछ फर्जी समाचार या अफवाहों द्वारा बनाई गई दहशत भी थी। जिसमें कहा गया था कि लॉक डाउन को तीन महीनों तक के लिए बढ़ाया जाएगा।''

    वर्तमान आवेदन के माध्यम से, वह इस तर्क को भी रिकॉर्ड पर रखना चाहता है। विशेष रूप से इस तथ्य के प्रकाश में कि सरकार ने अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा था। साथ ही कहा था कि ''जनसंख्या के दिमाग में दहशत पैदा करने में सक्षम ऐसे नकली समाचार इस चुनौती के प्रबंधन में सबसे असहनीय बाधा है।''

    इसी पर ध्यान देते हुए, शीर्ष अदालत ने मीडिया को जिम्मेदारी से रिपोर्ट करने के लिए कहा था। साथ ही इस बात पर सहमति जताई थी कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह इस स्थिति पर सभी प्रासंगिक अपडेट के साथ एक दैनिक बुलेटिन जारी करें।

    वहीं आवेदक ने यह भी मांग की है कि मीडिया को निर्देश दिया जाए कि वह आधिकारिक बयान का उल्लेख करें और उसी को प्रकाशित करें।

    केंद्र ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि वे नोवल कोरोना वायरस के प्रकोप से होने वाली घबराहट को कम करने के लिए काउंसलिंग प्रदान करने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं।

    इस मामले पर सीजेआई एस.ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ विचार करेगी।




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