प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत स्कीम की शर्तों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

2 Feb 2021 5:00 AM GMT

  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत स्कीम की शर्तों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत शुरू की गई सरकारी ईपीएफ योजना की शर्तों को चुनौती देने वाली याचिका को वापस लेने की स्वतंत्रता दे दी है,इस योजना के तहत उन्हीं प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों को लाभ मिलेगा,जिनमें 100 से कम कर्मचारी काम करते हैं और उनमें से 90 प्रतिशत या उससे ज्यादा का वेतन 15000 से कम है।

    जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उक्त सरकारी सर्कुलर कर्मचारियों के एक वर्ग को इस योजना से लाभान्वित होने से रोकता है और प्रकट रूप से अनुचित है। वहीं यह भारतीय संविधान की तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन भी करता है।

    याचिका को एडवोकेट एस रविशंकर ने दायर किया था।

    याचिका के अनुसार, केंद्र सरकार ने COVID19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में गरीबों की मदद करने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत 1.70 लाख रूपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी।

    सरकार ने इस पैकेज के तहत मासिक वेतन का 24 प्रतिशत ईपीएफ खातों में अगले तीन महीनों के लिए भुगतान करने का प्रस्ताव रखा था। यह लाभ उनको दिया जाना था,जिनका प्रतिमाह वेतन 15000 रुपये से कम था और वह ऐसे संस्थान में काम करते हो,जहां कुल 100 कर्मचारी ही हो। वहीं इन संस्थानों में काम करने कर्मचारियों में से 90 प्रतिशत या उससे ज्यादा का वेतन प्रतिमाह 15000 रुपये से कम हो।

    वर्तमान याचिका की विषय वस्तु श्रम मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2020 में सरकार द्वारा प्रस्तावित पैकेज को लागू करने के लिए शुरू की गई योजना है। इस योजना का उद्देश्य उन कर्मचारियों को लाभान्वित करना है जो पहले से ही ईपीएफ योजना के सदस्य हैं और जो प्रतिमाह 15000 रुपये से कम वेतन लेते हैं। वहीं वह ऐसे संस्थान में काम करते हैं,जहां पर 90 प्रतिशत या उससे ज्यादा कर्मचारियों को 15000 रुपये से कम वेतन ही मिलता है।

    याचिका में कहा गया है कि इस योजना ने देश भर के कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग को स्पष्ट रूप से बाहर कर दिया है, जो एक समान वेतन अनुभाग के भीतर आते हैं, जबकि उसी तरह के दूसरे अनुभाग को अनुकूल उपचार प्रदान कर दिया गया है। ऐसा करने से सरकार की योजना उन कर्मचारियों पर विचार करने में विफल रही है जो ऐसे प्रतिष्ठानों में काम कर रहे हैं जहां कुल कर्मचारी 100 से कम हैं, लेकिन 90 प्रतिशत से कम कर्मचारी 15000 रुपये से कम वेतन लेते हैं।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह योजना स्पष्टरूप से मनमानेपन से ग्रस्त है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से समान स्तर पर खड़े कर्मचारियों के एक वर्ग को उसी स्तर पर खड़े कर्मचारियों के दूसरे वर्ग से अलग तरीके का व्यवहार करती है।

    याचिकाकर्ता का मानना है कि उक्त वर्गीकरण से यह भी स्पष्ट नहीं होता है कि उक्त घोषणा द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य के साथ उसका क्या संबंध है।

    वित्त मंत्री द्वारा की गई घोषणा के अनुसार,योजना का योजना का उद्देश्य, नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के ईपीएफ अंशदान का भुगतान करके शुद्ध वेतन में वृद्धि करना था। लेकिन अधिसूचना समान रूप से भेदभाव करती है और मनमाने ढंग से कर्मचारियों के एक चयनित वर्ग के वेतन में वृद्धि करती है। योजना के तहत दिए गए अपवाद के लिए कोई आधार या तर्कशीलता नहीं है और न ही उक्त वर्गीकरण के आधार के बारे में कोई स्पष्टीकरण दिया गया है। न ही यह बताया गया है कि क्यों उन कर्मचारियों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है,जो अयोग्य प्रतिष्ठानों का एक हिस्सा हैं परंतु उक्त वेतन ब्रैकेट में आते हैं।

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