आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका: दिवंगत आईएएस अधिकारी की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया
Brij Nandan
8 May 2023 1:41 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की मॉब लिंचिंग के मामले में बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन को समय से पहले रिहाई देने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।
जस्टिस सूर्यकांत और डस्टिस जेके माहेश्वरी की खंडपीठ ने भी एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदन की अनुमति दी, लेकिन अदालत को सहायता प्रदान करने की सीमा तक।
याचिका जिला मजिस्ट्रेट दिवंगत जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने दायर की है, जिन्हें मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ ने हमला करके मार डाला था। इस अपराध के लिए मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बिहार सरकार द्वारा दी गई सजा में छूट के मद्देनजर 14 साल की कैद की सजा काटने के बाद वह 24 अप्रैल को जेल से बाहर चला गया।
बिहार राज्य की छूट नीति के अनुसार, जो व्यक्ति ड्यूटी पर लोक सेवकों की हत्या के लिए दोषी हैं, वे कम से कम 20 साल की सजा पूरी करने तक समय से पहले रिहाई के पात्र नहीं थे। हालांकि, अप्रैल में छूट नीति में संशोधन कर राज्य सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करते हुए इस रोक को हटा दिया था। उमा कृष्णैया ने बिहार गृह विभाग (जेल) द्वारा 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481(1)(ए) में संशोधन करते हुए जारी परिपत्र को चुनौती दी है, जिसके अनुसार "ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या" के लिए दोषी भी भी छूट के पात्र हैं। उन्होंने आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को भी चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि जेल में कैदी के आचरण, पिछले आपराधिक पूर्ववृत्त जैसे प्रासंगिक कारकों को नजरअंदाज कर दिया गया है। यह आगे तर्क दिया गया है कि मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्य की छूट नीति में संशोधन सार्वजनिक नीति के विपरीत है और लोक सेवकों का मनोबल गिराने जैसा होगा। ये भी कहा गया कि अपराध के समय प्रचलित नीति को लागू किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और एडवोकेट तान्या श्री ने किया।
[केस टाइटल: तेलुगु उमादेवी कृष्णैया बनाम बिहार राज्य और अन्य। WP(CRL) सं. 204/2023]