अल्पसंख्यक समुदायों को जनसंख्या में उनके हिस्से के अनुपात में छात्रवृत्ति देने के केरल सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Avanish Pathak

3 Sep 2022 1:12 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अल्पसंख्यक समुदाय को छात्रवृत्ति देने के केरल सरकार के फैसले के खिलाफ दायर एक रिट याचिका को इस प्रकार के मुद्दे पर एक अन्य लंबित याचिका के साथ टैग कर दिया। मौजूदा याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय को छात्रवृत्ति जनसंख्या में उनके हिस्से के अनुपात में दिए जाने का केरल सरकार का फैसला भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(1) और 15(4) का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ता ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज़ फेडरेशन की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद के अनुरोध पर जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने टैगिंग का आदेश पारित किया।

    उल्लेखनीय है कि 2006 में भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने 'अल्पसंख्यकों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति' योजना की घोषणा की थी। कहा गया था कि आवंटन 2001 की जनगणना के अनुसार अल्पसंख्यकों की जनसंख्या पर आधारित था, जिसे 2011 की जनगणना के बाद अपडेट किया जाना था।

    केरल में 2008 में सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए पलोली समिति का गठन किया गया। 16 अगस्त 2008 के एक सरकारी आदेश के जरिए मुस्लिम महिलाओं के लिए शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में योग्यता-सह-साधन (merit-cum-means) छात्रवृत्ति आवंटित की गई।

    2011 में छात्रवृत्ति का लाभ लैटिन कैथोलिक और परिवर्तित ईसाई लड़कियों को दिया गया था। मुस्लिम और लैटिन और धर्मांतरित ईसाइयों के बीच आरक्षण 80:20 के अनुपात में था। 2015 में सरकार ने चार्टर्ड अकाउंटेंट, कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंसी (ICWA) और कंपनी सेक्रेटरीशिप (CS) कोर्स करने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की।

    इसके बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए 'प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति' की एक योजना की घोषणा की, जिसमें आवंटन अल्पसंख्यकों की आबादी के आधार पर किया जाना था।

    मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच आरक्षण 80:20 के अनुपात में था। अंततः 2008, 2011 और 2015 के सरकारी आदेशों को केरल ‌हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई और उन्हें रद्द कर दिया गया।

    अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने 16 जुलाई 2021 के आक्षेपित आदेश के जर‌िए घोषित किया कि सभी अल्पसंख्यक छात्रवृत्तियों का लाभ 2011 की जनगणना में जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर प्रदान किया जायेगा।

    28 मई 2021 को केरल हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने मुसलमानों और ईसाइयों को अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति को 80:20 के अनुपात में वितरित करने की सरकार की योजना को, यह देखते हुए खारिज कर दिया कि राज्य को दोनों अल्पसंख्यक समुदायों के साथ समान व्यवहार करना होगा।

    हाईकोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति को नवीनतम जनगणना के अनुसार नोट‌िफाइड अल्पसंख्यकों के बीच उनकी जनसंख्या अनुपात के अनुसार वितरित किया जाना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केरल राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया था। इस साल अप्रैल में कोर्ट ने इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद की युवा शाखा सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट द्वारा दायर एक और विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया।

    वर्तमान रिट याचिका को इन एसएलपी के साथ टैग किया गया है।

    2011 की जनगणना के अनुसार केरल में 54.73% हिंदू हैं, 26.56% मुसलमान हैं और 18.38% ईसाई हैं और 0.33% अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक हैं। अल्पसंख्यक समुदायों की कुल जनसंख्या 45.27% है। इस 45.27% में से 58.67% मुस्लिम, 40.6% ईसाई और 0.73% अन्य अल्पसंख्यक हैं। याचिका में कहा गया है कि केरल के अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की तुलना में मुस्लिम सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़े हैं।

    याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट का आदेश केवल CA, ICWA और CS पाठ्यक्रमों के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति तक ही सीमित है; अन्य छात्रवृत्तियों तक आदेश के अनुपात का विस्तार अवैध है।

    याचिका में कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के अन्य सभी मानदंडों की अनदेखी करते हुए केवल जनसंख्या के आधार पर छात्रवृत्ति का आवंटन भेदभावपूर्ण है।

    इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए यह तर्क दिया गया है कि सामाजिक-आर्थिक मानदंड केवल जनसंख्या के आधार पर तय नहीं हो सकते हैं। याचिका के अनुसार, सरकार को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि इंद्रा साहनी में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ेपन की डिग्री के तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर अन्य पिछड़े समुदायों को 'पिछड़े' और 'अधिक पिछड़े' के रूप में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी थी।

    याचिका में पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि उप-वर्गीकरण की अनुमति सामाजिक पिछड़ेपन की डिग्री के आधार पर है।

    यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए अफरमेटिव एक्‍शन की नीतियों को अपनाने के लिए स्वतंत्र है, अनुच्छेद 15(4) और 16(4) पर भरोसा रखा गया है।

    याचिका में कहा गया है कि केरल में मुस्लिम समुदाय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा है और इसलिए उन्हें 2008 में छात्रवृत्ति का लाभ दिया गया था। इसका लाभ लैटिन और परिवर्तित ईसाइयों को भी दिया गया था, क्योंकि वे भी पिछड़े हैं।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि छात्रवृत्ति पलोली समिति और सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्रदान की गई है। याचिका में कहा गया है कि इन रिपोर्टों और सिफारिशों की उपेक्षा करके केरल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 15(3) और (4) का उल्लंघन किया है।

    केस स्टेटस: ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज़ फेडरेशन और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य डब्ल्यूपी (सी) नंबर 404/2022]

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