अमरावती नगर परिषद का नाम उर्दू में लिखने के खिलाफ याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
16 Sept 2021 9:39 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (13 सितंबर) को एक याचिका में नोटिस जारी किया। याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मराठी और उर्दू दोनों में नगर परिषद के नाम को लिखने के अमरावती नगर परिषद के फैसले को बरकरार रखा गया था।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी सुब्रमण्यम की खंडपीठ ने नगर परिषद, पाटूर, जिला अकोला के निर्वाचित सदस्य द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) में चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया।
याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें मंडलायुक्त अमरावती के उस आदेश को बरकरार रखा गया है जिसमें परिषद के नवनिर्मित भवन के बोर्ड पर नगर परिषद का नाम मराठी और उसके नीचे उर्दू भाषा में लिखने का निर्देश दिया गया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि उच्च न्यायालय ने नगर परिषद के नाम को मराठी और उर्दू में लिखने के नगर परिषद के फैसले को इस कारण बरकरार रखा है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उर्दू उल्लिखित भाषा है। इसलिए सभी 22 भाषाओं को बोर्ड पर होना चाहिए, जब राज्य की आधिकारिक भाषा केवल मराठी है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता कुणाल चीमा, अधिवक्ता सत्यजीत सिंह रघुवंशी और अधिवक्ता अपूर्व शुक्ला ने पेश हुए।
हाईकोर्ट का आदेश
वर्तमान मामले में नगर परिषद, पाटूर द्वारा दिनांक 14 फरवरी, 2020 का एक प्रस्ताव बहुमत से पारित किया गया था, जिसमें निर्णय लिया गया था कि नगर परिषद के नवनिर्मित भवन में लगाए गए बोर्ड पर नगर परिषद का नाम मराठी में और उसके नीचे उर्दू भाषा में लिखा जाए।
याचिकाकर्ता ने इसे महाराष्ट्र नगर परिषदों, नगर पंचायतों और औद्योगिक टाउनशिप अधिनियम, 1965 की धारा 308 के तहत कलेक्टर के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह कुछ सरकारी प्रस्तावों के तहत है, जिसके तहत यह निर्देश दिया गया है कि सभी संचार और लेखन ऑन बोर्ड अनिवार्य रूप से मराठी भाषा में किए जाएंगे।
कलेक्टर ने तब 15 दिसंबर, 2020 को एक आदेश पारित किया कि संबंधित सरकारी प्रस्तावों और स्पष्टीकरण परिपत्र दिनांक 12/07/2019 के संदर्भ में मराठी भाषा का उपयोग किया जाए।
नगर परिषद के सदस्यों ने तब डिविजनल कमिश्नर के समक्ष एक रिविजन आवेदन दायर किया, जिन्होंने आंशिक रूप से अपील की अनुमति दी और निर्देश दिया कि नगर परिषद के नए भवन में लगे बोर्ड पर नाम पहले राज्य भाषा यानी मराठी में लिखा जाएगा और उसके बाद नीचे उर्दू भाषा में लिखा जाएगा, जो भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल एक भाषा है।
न्यायमूर्ति मैंश पितले की एकल पीठ ने कहा था कि नगर परिषद का प्रस्ताव बहुमत से पारित किया गया है और अभी भी लागू है और इसमें विशेष रूप से कहा गया है कि नगर परिषद के नए भवन में बोर्ड पर नाम सबसे ऊपर मराठी में लिखा जाएगा और उसके नीचे उर्दू भाषा में।
न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि इस तथ्य के बारे में कोई विवाद नहीं हो सकता है कि भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची की प्रविष्टि संख्या 22 के अनुसार उर्दू इन भाषाओं की सूची में शामिल है।
केस का शीर्षक: वर्षाताई बनाम डिविजनल कमिश्नर, अमरावती डिवीजन एंड अन्य