यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड की मांग वाली जनहित याचिका सुनवाय योग्य नहीं, यूसीसी बनाने के लिए संसद को कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता: केंद्रीय कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
Brij Nandan
18 Oct 2022 10:59 AM IST
केंद्रीय कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह संसद को कोई कानून बनाने या अधिनियमित करने का निर्देश नहीं दे सकता है। देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की मांग करने वाली जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
विवाह तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग करते हुए भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका के जवाब में मंत्रालय ने कहा,
"एक विशेष कानून बनाने के लिए विधायिका को परमादेश की एक रिट जारी नहीं की जा सकती है। यह लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के निर्णय के लिए नीति का मामला है और इस संबंध में न्यायालय द्वारा कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। कानून बनाना है या नहीं, इस पर फैसला संसद करेगी।"
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 एक निर्देशक सिद्धांत है जिसमें राज्य को सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
मंत्रालय ने कहा कि अनुच्छेद 44 के पीछे का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के उद्देश्य को मजबूत करना है। यह प्रावधान समुदायों को उन मामलों पर साझा फोरम पर लाकर भारत के एकीकरण को प्रभावित करने के लिए प्रदान किया गया है जो वर्तमान में विविध व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। इस प्रकार, विषय वस्तु के महत्व और संवेदनशीलता को देखते हुए, विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है।
मंत्रालय ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह इस मामले से अवगत है और 21वें विधि आयोग ने कई हितधारकों से अभ्यावेदन आमंत्रित करके इसकी विस्तृत जांच की है।
हालांकि, उक्त आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त होने के बाद से मामला 22वें आयोग के समक्ष रखा जाएगा।
इसमें कहा गया है,
"जब भी इस मामले में विधि आयोग की रिपोर्ट प्राप्त होगी, सरकार मामले में शामिल विभिन्न हितधारकों के परामर्श से इसकी जांच करेगी।"
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष छह जनहित याचिकाएं- अश्विनी उपाध्याय की चार, लुबना कुरैशी की ओऱ से दायर एक याचिका और डोरिस मार्टिन की ओर से दायर एक अन्य याचिका, यूसीसी के अधिनियमन की मांग करती है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यूसीसी को हमेशा धार्मिक तुष्टिकरण के तमाशे के रूप में देखा गया है, और सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट सरकार को समान नागरिक संहिता के लिए संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू करने के लिए नहीं कह सकता है, लेकिन केंद्र को एक मसौदा तैयार करने के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दे सकता है।
यूसीसी की मांग करने वाली इसी तरह की याचिकाएं दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष भी लंबित हैं।
केंद्र ने इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन, संविधान के तहत एक निर्देशक सिद्धांत, सार्वजनिक नीति का मामला है और इस संबंध में न्यायालय द्वारा कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है।
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत सरकार एंड अन्य।