सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर पर सुनवाई टालते हुए कहा, निजी स्वतंत्रता को राष्ट्रीय सुरक्षा से संतुलित करना होगा

LiveLaw News Network

1 Oct 2019 4:19 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर पर सुनवाई टालते हुए कहा, निजी स्वतंत्रता को राष्ट्रीय सुरक्षा से संतुलित करना होगा

    कश्मीर में तालाबंदी के 56 दिन बाद केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि घाटी में सामान्य स्थिति लौट रही है और 5 अगस्त के राष्ट्रपति के जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के आदेश के बाद से पुलिस गोलीबारी के कारण कोई जान नहीं गई है।

    जम्मू-कश्मीर सरकार के आयुक्त / सचिव ने जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन जजों की पीठ के समक्ष दाखिल हलफनामे में कहा, "यह सरकार का श्रेय है कि आज तक एक भी गोली नहीं चलाई गई और पुलिस की गोलीबारी से जानमाल का नुकसान नहीं हुआ है।"

    कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक की याचिका पर हलफनामा

    यह हलफनामा कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की याचिका पर दाखिल किया गया जिस पर पीठ सुनवाई कर रही है। 5 अगस्त के बाद से कश्मीर में मीडिया पर पाबंदी को चुनौती देने वाली भसीन की याचिका के साथ ही सुप्रीम कोर्ट फाउंडेशन ऑफ़ मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा दायर एक सहायक हस्तक्षेप आवेदन पर भी सुनवाई कर रहा था।

    भसीन का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील वृंदा ग्रोवर ने पूछा, "कश्मीर में संचार को किस अधिसूचना के तहत ब्लैकआउट किया गया है ? " इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र द्वारा दायर हलफनामे में तर्क स्पष्ट है और जवाब भसीन और एफएमपी द्वारा दायर याचिकाओं पर लागू होगा।

    सॉलिसिटर जनरल ने दिया जवाब

    वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ब्लैकआउट की चुनौती में मौलिक अधिकारों के बड़े मुद्दों को उठाया गया है। अरोड़ा ने पूछा, "यह 56 दिन हो गए हैं। क्या मौलिक अधिकारों को इस तरह कारपेट के नीचे दबाया जा सकता है?" इसे जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "सामान्य स्थिति बहाल की जा रही है। कश्मीरी लोगों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है और 100% लैंडलाइन काम कर रहे हैं।"

    अदालत द्वारा सॉलिसिटर जनरल को जम्मू-कश्मीर सरकार के हलफनामे को दाखिल करने को कहा गया और मामले को 16 अक्टूबर को सूचीबद्ध किया।

    यह बताते हुए कि घाटी में सामान्य स्थिति धीरे-धीरे बहाल की जा रही है, हलफनामे में कहा गया है कि लोगों के कुछ समूह लगातार सार्वजनिक व्यवस्था और शांति को नष्ट करने के प्रयासों में लगे हुए हैं जिसके मद्देनजर किसी भी तरह के सार्वजनिक समारोहों में प्रतिबंध को लागू करना उचित माना गया ।

    " लगातार हो रही हैं प्रेस वार्ता"

    केंद्र ने आगे कहा कि घाटी में मीडिया रिपोर्टिंग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। जानकारी प्रसारित करने के लिए नियमित रूप से प्रेस वार्ता आयोजित की जा रही है और प्रेस विज्ञप्ति जारी की जा रही हैं। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने अदालत के पहले के आदेशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि सरकार को सभी प्रकार के संचार माध्यम बहाल करने हैं। हेगड़े ने कहा, "इसका मतलब केवल अकेले लैंडलाइन नहीं है, बल्कि इंटरनेट भी है।"

    इसका जवाब जस्टिस बीआर गवई से मिला। "राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संतुलित करना होगा।" सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अदालत से यह भी कहा कि अगर कश्मीर में इंटरनेट और मोबाइल को बहाल कर दिया गया तो भारत "सीमा पार से नकली समाचारों से भर जाएगा।"

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