वसीयत के एक हिस्से का फायदा उठाने वाला व्यक्ति उसके शेष हिस्से को चुनौती नहीं दे सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 April 2020 10:30 AM IST

  • वसीयत के एक हिस्से का फायदा उठाने वाला व्यक्ति उसके शेष हिस्से को चुनौती नहीं दे सकता : सुप्रीम कोर्ट

    “पल में तोला, पल में माशा नहीं हो सकता”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो व्यक्ति वसीयतनामे के एक हिस्से का लाभ लेता है, वह उसी वसीयतनामे के शेष हिस्से को चुनौती नहीं दे सकता।

    इस मामले में यह जानकारी रिकॉर्ड पर लायी गयी थी कि विवादित सम्पत्ति को हिन्दू अविभाजित परिवार की सम्पत्ति बताकर बंटवारा का मुकदमा दायर करने वाले वादी ने पहले भी एक किरायेदार को खाली कराने के लिए मुकदमा दायर किया था, जिसमें उसने दावा किया था कि हरिराम नामक व्यक्ति ने संबंधित प्रॉपर्टी उसके नाम वसीयत की थी। मौजूदा मामले में वादी ने यह कहते हुए वसीयतनामे पर सवाल खड़ा किया है कि विवादित प्रॉपर्टी स्वयं-अर्जित प्रॉपर्टी नहीं थी, बल्कि हिन्दू अविभाजित परिवार की सम्पत्ति थी।

    न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने इन अविवादित तथ्यों पर विचार करते हुए कहा,

    "यह बहुत ही सामान्य कानून है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही समय किसी चीज को स्वीकार करने और खारिज करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह नियम 'चयन के सिद्धांत' की अवधारणा पर आधारित है। वसीयतनामे के मामले में इस सिद्धांत का यह अर्थ होता है कि एक व्यक्ति जो वसीयतनामे के एक हिस्से को आधार बनाकर लाभ लेता है, वही व्यक्ति वसीयतनामे के शेष हिस्से को चुनौती नहीं दे सकता।"

    कोर्ट ने कहा कि खुद को हरिराम के वसीयतनामे का हकदार बताकर किरायेदार को प्रॉपर्टी से निकालने के लिए मुकदमा दायर करने वाला वादी अब अपने दावे से पीछे नहीं हट सकता और यह नहीं कह सकता कि हरिराम द्वारा संबंधित प्रॉपर्टी को निजी सम्पत्ति बताना गलत था।

    बेंच ने आगे कहा,

    "जहां एक पार्टी जानबूझकर किसी करार या सुविधा या आदेश का लाभ स्वीकार करता है, उसे उस करार या सुविधा या आदेश की वैधता एवं उसके बाध्यकारी प्रभाव को ठुकराने की स्वीकृति नहीं दी जा सकती। 'चयन का सिद्धांत' विबंधन (एस्टॉपल) के कानून का एक पहलू है। 'पल में तोला, पल में माशा' तो नहीं हो सकता। कोई व्यक्ति यदि किसी दस्तावेज का लाभ लेता है तो उसे उस दस्तावेज में उल्लेखित सभी चीजों को स्वीकार करना चाहिए।"

    केस नंबर : सिविल अपील नं. 6875/2008

    केस का नाम: भगवत शरण बनाम पुरुषोत्तम

    कोरम : न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

    वकील : सीनियर एडवोकेट सुशील कुमार जैन एवं हरीन पी रावल

    वकील : सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्ण कुमार, विकास सिंह एवं अनुपम लाल दास




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