पीसी एक्ट - एक बार जब यह साबित हो जाए कि लोक सेवक को कानूनी रूप से मिले मेहनताना से अलग कोई लाभ मिला है तो अदालत आरोपी के खिलाफ अनुमान लगा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

Sharafat

23 Sep 2023 12:32 PM GMT

  • पीसी एक्ट - एक बार जब यह साबित हो जाए कि लोक सेवक को कानूनी रूप से मिले मेहनताना से अलग कोई लाभ मिला है तो अदालत आरोपी के खिलाफ अनुमान लगा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार यह साबित हो जाए कि किसी लोक सेवक आरोपी ने निर्धारित कानूनी पारिश्रमिक ( Legal Remuneration) के अलावा कोई भी संतुष्टि (Gratification) स्वीकार की है तो अदालत भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम, 1988 की धारा 20 (धारणा जहां लोक सेवक कोई अनुचित लाभ स्वीकार करता है) के तहत आरोपी के खिलाफ वैधानिक अनुमान लगा सकती है कि अधिनियम की धारा 7 के तहत उन्होंने सार्वजनिक कर्तव्य को अनुचित या बेईमानी से करने के लिए मकसद या इनाम के रूप में संतुष्टि को स्वीकार किया। हालांकि, ऐसी धारणा का खंडन किया जा सकता है।

    जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ अपीलकर्ता के मामले पर विचार कर रही थी, जिसे एक विशेष अदालत ने पीसी अधिनियम की धारा 7 और धारा 13 के तहत दोषी ठहराया था। बाद में हाईकोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला यह था कि 1993 में उन्होंने उप रजिस्ट्रार के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए 1500 रुपये की मांग की और ये रुपए ले लिये।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे यह साबित करने की आवश्यकता थी कि उसने यह जानते हुए कि यह रिश्वत है, स्वेच्छा से पैसे स्वीकार किए थे। यह तर्क दिया गया कि अवैध संतुष्टि की मांग के सबूत के बिना पीसी अधिनियम की धारा 20 के तहत आरोपी के खिलाफ अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

    हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 313 के तहत अपने स्पष्टीकरण में राशि की प्राप्ति स्वीकार की थी। अदालत ने माना कि चूंकि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे सफलतापूर्वक साबित कर दिया था कि आरोपी ने अवैध रूप से राशि स्वीकार ली है, वैधानिक धारणा पीसी अधिनियम की धारा 20 के तहत आरोपी के खिलाफ थी। अदालत ने कहा कि साबित करने का बोझ आरोपी पर आ गया है और वह रिश्वत के आरोप को खारिज करने में विफल रहा है।

    “नीचे दी गई दोनों अदालतों ने निष्कर्षों को दर्ज किया है कि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे आरोपी द्वारा अवैध रूप से दिये गए रुपयों की सचेत स्वीकृति और अपीलकर्ता से उक्त रुपयों की बरामदगी को साबित कर दिया है, इसलिए उक्त अधिनियम की धारा 20 के तहत वैधानिक अनुमान को दूर करने और यह साबित करने का बोझ अपीलकर्ता पर स्थानांतरित हो गया कि इसे उसके सार्वजनिक कर्तव्य के प्रदर्शन के लिए एक मकसद या इनाम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था, जिसे अपीलकर्ता दूर करने में विफल रहा। ”

    कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आरोपी ने अपने खिलाफ आरोपों से इनकार किया, उसे संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा,

    “इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि यदि आरोपी सबूतों के आधार पर उचित और संभावित स्पष्टीकरण देता है कि पैसा उसके द्वारा अवैध संतुष्टि के अलावा स्वीकार किया गया था तो संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए। यह भी सच है कि अभियुक्त को अभियोजन पक्ष की तरह उचित संदेह से परे अपना बचाव स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है और वह इसे संभाव्यता की प्रधानता पर स्थापित कर सकता है। हालांकि अदालत आरोपी के मकसद के संबंध में पीसी अधिनियम की धारा 20 के तहत उठाए जाने वाले वैधानिक अनुमान से अनभिज्ञ नहीं हो सकती।"

    अपीलकर्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि शिकायतकर्ता की जांच नहीं की जा सकी क्योंकि मुकदमा शुरू होने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई, इसलिए अभियोजन पक्ष द्वारा रिश्वत मांगने का आरोप साबित नहीं हुआ। हालांकि इस तर्क को न्यायालय का भी समर्थन नहीं मिला।

    न्यायालय ने माना कि शिकायतकर्ता की मृत्यु के मामले में भी अभियोजन पक्ष अपने मामले को साबित करने के लिए शिकायत और अन्य मौखिक और दस्तावेजी सबूतों पर भरोसा कर सकता है,

    “ कानून का यह सुस्थापित प्रस्ताव है कि शिकायतकर्ता की मृत्यु या मुकदमे के समय शिकायतकर्ता की अनुपलब्धता को अभियोजन के मामले के लिए घातक कहा जा सकता है, न ही इसे बरी करने का आधार कहा जा सकता है।

    अदालत ने कहा, ' शिकायतकर्ता की मृत्यु या उसकी अनुपलब्धता के मामले में अभियोजन पक्ष के लिए यह हमेशा खुला है कि वह शिकायत की सामग्री और अन्य तथ्यों को अन्य मौखिक या दस्तावेजी सबूतों के आधार पर साबित कर सके।'

    इस प्रकार अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल : पी. सारंगपाणि (मृत) थ्रू एलआर पाका सरोजा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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