ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल संसद में पारित, उन्हीं प्रावधानों को शामिल किया गया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज

LiveLaw News Network

9 Aug 2021 11:33 AM GMT

  • ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल संसद में पारित, उन्हीं प्रावधानों को शामिल किया गया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज

    राज्यसभा ने सोमवार को ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल, 2021 पारित किया, जिसमें विभिन्न ट्रिब्यूनल के सदस्यों की सेवा और कार्यकाल के लिए नियम और शर्तें को निर्धारित किया गया है।

    बिल में ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) ऑर्डिनेंस, 2021 के उन्हीं प्रावधानों को शामिल किया गया है, जिन्हें मद्रास बार एसोसिएशन केय में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

    धारा 3 के प्रावधान के अनुसार, 50 वर्ष की न्यूनतम आयु को विधेयक में शामिल किया गया है। इसी प्रकार, ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल चार साल ही तय किया गय है।

    इसके अलावा, धारा 3 (7) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले निष्क्र‌िय करने प्रयास किया गया है, जिसमें खोज-सह-चयन समिति द्वारा प्रत्येक पद के लिए दो नामों की सिफारिश से संबंधित प्रावधान थे और सरकार को अधिमानतः तीन महीने के भीतर निर्णय लेने की आवश्यकता थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया था, जिसमें सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्ष निर्धारित किया गया था और जिसमें सदस्यों की नियुक्ति की न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित की गई थी। इन्हीं प्रावधानों को ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल में शामिल किया गया है।

    सोमवार को राज्यसभा में चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों ने कहा कि विधेयक के प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत हैं।

    आलोचना का जवाब देते हुए, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार न्यायपालिका का सम्मान करती है, लेकिन सदन की शक्तियों को कम नहीं किया जा सकता है।

    उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिकता के आधार पर प्रावधानों को रद्द नहीं किया है।

    हालांकि विपक्ष ने विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव पेश किया, लेकिन यह 44 'हां' और 79 'ना' मतों के साथ पराजित हो गया। लोकसभा ने 3 अगस्त को बिल पास किया था।

    मद्रास बार एसोसिएशन मामले (2021) में, सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश के उस प्रावधान को 2:1 बहुमत से रद्द कर दिया, जिसके तहत कार्यकाल 4 साल तय किया ग‌या था। कोर्ट का आधार यह था कि यह पहले के निर्देशों के विपरीत था और कार्यकाल कम से कम 5 साल होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लंबी अवधि अधिक दक्षता सुनिश्चित करेगी।

    रोजर मैथ्यू और मद्रास बार एसोसिएशन (2020) के मामलों में कोर्ट ने कहा था कि छोटी अवधि "योग्यता-विरोधी होगी, क्योंकि इससे न्यायाधिकरण में न्यायिक सदस्यों के पदों को स्वीकार करने के लिए मेधावी उम्मीदवारों पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ेगा"। .

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा था कि "सदस्यों का छोटा कार्यकाल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालते हुए कार्यपालिका द्वारा हस्तक्षेप को बढ़ाता है",

    साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने (2:1 बहुमत से) ट्रिब्यूनल के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए 50 वर्ष की न्यूनतम आयु आवश्यकता को पहले के फैसले के विपरीत माना था। कोर्ट ने कहा कि कम से कम 10 साल के अनुभव वाले अधिवक्ताओं को ट्रिब्यूनल के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य बनाया जाना चाहिए।

    2021 के मद्रास बार एसोसिएशन मामले के फैसले में, जस्टिस एल नागेश्वर राव और रवींद्र भट एकमत थे, जबकि जस्टिस हेमंत गुप्ता ने असहमति व्यक्त की थी। जस्टिस गुप्ता ने अपनी असहमति में कहा कि एक कानून को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है कि वह पहले के फैसले के विपरीत है।

    ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल 2021 को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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