CPC आदेश 23 नियम 3 A : अलग मुकदमे में समझौते पर पारित किसी डिक्री को चुनौती देने पर रोक कार्यवाही अजनबी पर भी लागू : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

7 May 2020 4:45 AM GMT

  •  CPC  आदेश 23 नियम 3 A : अलग मुकदमे में समझौते पर पारित किसी डिक्री को चुनौती देने पर रोक कार्यवाही अजनबी पर भी लागू : सुप्रीम कोर्ट

    Order XXIII Rule 3A CPC: Bar To File Separate Suit Challenging Compromise Decree Applies To Stranger Also: SC

     सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि एक अलग मुकदमे में समझौते पर पारित किसी डिक्री को चुनौती देने के लिए आदेश CPC आदेश 23 नियम 3 A के तहत रोक कार्यवाही अजनबी पर भी लागू होती है।

    इस मामले में वादी ने आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया था कि प्रतिवादियों द्वारा धोखाधड़ी और गलत बयानी से उच्च न्यायालय से मुख्य तथ्य को छिपाते हुए समझौता डिक्री प्राप्त की गई थी कि कार्यवाही के पक्षकारों के बीच समझौता होने से पहले बिक्री विलेख को निष्पादित किया गया था।

    इस अपील में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या एक समझौते पर पारित डिक्री को किसी अनजान व्यक्ति द्वारा कार्यवाही के लिए एक अलग मुकदमे में चुनौती दी जा सकती है। अपीलार्थी का तर्क था कि CPC आदेश 23 नियम 3 ा का प्रावधान केवल पक्षकारों के लिए ही लागू होता है और उक्त प्रावधान किसी अजनबी के लिए डिक्री पर लागू नहीं होता है, इसलिए, ये उपाय हमेशा एक अजनबी के लिए खुला होता है कि वो समझौते को लेकर उचित कार्यवाही में अपनी शिकायत को दूर करने के लिए एक अलग मुकदमा दायर कर सके।

    अदालत ने उल्लेख किया कि, नियम 3 A में निहित रोक के मद्देनजर, कोई भी स्वतंत्र मुकदमा इस आधार पर किसा समझौता डिक्री निर्धारित करने के लिए दायर नहीं किया जा सकता है कि समझौता वैध नहीं था।

    जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने CPC आदेश 23 में संशोधन के पीछे की मंशा की जांच की और कहा :

    निर्णयों की अंतिमता सभी सहायक मंचों का एक अंतर्निहित सिद्धांत है। इस प्रकार, कभी भी पक्षकारों के बीच समझौता के आधार पर आगे मुकदमे का निर्माण नहीं होना चाहिए।

    CPC आदेश 23 नियम 3 A ने एक विशिष्ट रोक लगाई है कि कोई भी मुकदमा इस आधार पर शुरू नही किया जा सकता कि वह समझौता जिस पर डिक्री आधारित है, झूठ बोलकर किया गया और ये कानून सम्मत नहीं था। CPC आदेश 23 नियम 3 की योजना मुकदमेबाजी की बहुलता से बचने के लिए है और पक्षकारों को सौहार्दपूर्ण तरीके से आने की अनुमति है जो कानूनन वैध है, लिखित में है और पक्षकारों की ओर से एक स्वैच्छिक कार्य है।

    न्यायालय किसी सहमति से प्रभावित और अंतिम रूप से जुड़े समझौते होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कोर्ट को कभी भी अनिच्छुक पार्टी पर समझौता करने के पक्ष में नहीं होना चाहिए, फिर भी न्यायालय के समक्ष CPC आदेश 23 नियम 3 तहत एक आवेदन पर जांच करने का विकल्प खुला होना चाहिए।

    अपील खारिज करते हुए, न्यायालय ने आगे कहा:

    "केवल इसलिए कि अपीलकर्ता वर्तमान मामले के तथ्यों में समझौता डिक्री के लिए पक्षकार नहीं था, अपीलकर्ता को कोई फायदा नहीं होगा,उच्च न्यायालय द्वारा पारित समझौता डिक्री की वैधता पर सवाल उठाने का बहुत कम कारण बनता है कि वो सिविल कोर्ट के सामने एक ठोस मुकदमे के माध्यम से इसे धोखाधड़ी, गैरकानूनी घोषित करने और उस पर बाध्यकारी नहीं होने के रूप में पेश करे।

    मान लें, कि वह पक्षकारों द्वारा विभाजन सूट में दर्ज किए गए समझौते की वैधता के बारे में आपत्ति कर सकता है,लेकिन यह केवल उच्च न्यायालय ही है, जिसने समझौता स्वीकार कर लिया था और उस आधार पर डिक्री पारित कर दी थी, आदेश 23 CPC के नियम 3 के प्रोविज़ो के तहत उसकी और कोई अन्य न्यायालय जांच नहीं कर सकता है।

    इसलिए, यह मानना ​​होगा कि अपीलकर्ता द्वारा दीवानी न्यायालय के समक्ष स्थापित किया गया सूट अनुवर्ती निर्णय के अनुसार, आदेश 23 CPC के नियम 3 ए के तहत 18 में विशिष्ट रोक के मद्देनज़र सुनवाई योग्य नहीं है। "

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