आदेश को केवल इसलिए 'दुर्भावनापूर्ण' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह अवैध, त्रुटिपूर्ण या विकृत है: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
10 April 2022 6:15 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा प्रत्येक गलत, अवैध या यहां तक कि विकृत आदेश / कार्रवाई, अपने आप में, सद्भाव की कमी वालाा या दुर्भावना से पीड़ित नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से एक वैधानिक अधिकारी में बेहतर भरोसे की कमी के बारे में उद्देश्यों को थोपने और निष्कर्ष निकालने के लिए, महज त्रुटि या गलती से ज्यादा कुछ तत्व मौजूद होना चाहिए।
मुरादाबाद के वाणिज्यिक कर संयुक्त आयुक्त ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले में कुछ प्रतिकूल उक्तियों और टिप्पणियों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि नोटिस को उचित तरीके से तामील किये बिना एकतरफा आदेश/कार्यवाही को प्रेरित करने वाली संयुक्त आयुक्त की कार्रवाई, विभाग की ओर से जानबूझकर किया गया प्रयास थी और निर्धारण प्राधिकारी ने सेवा को सकल रूप से प्रभावित करने के लिए लागू नियमों का उल्लंघन करके अनुचित रणनीति अपनाई।
कोर्ट ने कहा कि भले ही नोटिस देने के ऐसे प्रयासों को हाईकोर्ट द्वारा अवैध या अनियमित माना गया हो, लेकिन हाईकोर्ट की इस उक्ति का समर्थन करना मुश्किल है कि आक्षेपित कार्रवाई जानबूझकर की गई थी या इसमें सद्भाव में कमी थी।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा:
"हमारा विचार है कि भले ही हाईकोर्ट ने पाया कि संबंधित अधिकारियों, विशेष रूप से अपीलकर्ता की आक्षेपित कार्रवाई, कानून के अनुरूप नहीं थी या अनियमित थी या अवैध या विकृत थी, लेकिन इससे ऐसे निष्कर्ष तक पहुंचना उचित नहीं था कि निर्धारण प्राधिकारी या पंजीकरण प्राधिकरण की ओर से कोई जानबूझकर कार्रवाई या चूक हुई थी; या हाईकोर्ट की नियोजित अभिव्यक्ति के अनुसार कोई भी 'रणनीति' अपनाई गई थी। प्रत्येक गलत, अवैध या यहां तक कि विकृत आदेश/कार्य को अपने आप में, सद्भाव की कमी या दुर्भावना से पीड़ित नहीं कहा जा सकता है ।
.... हमारे विचार में, किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से एक वैधानिक अधिकारी में बेहतर भरोसे की कमी के बारे में उद्देश्यों को थोपने और निष्कर्ष निकालने के लिए, महज त्रुटि या गलती से ज्यादा कुछ तत्व मौजूद होना चाहिए। अपीलकर्ता द्वारा उद्देश्यों को थोपने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी ठोस उपलब्ध नहीं है, भले ही मूल्यांकन प्राधिकारी के रूप में कार्य करते समय उसके कार्यों/चूक को नामंजूर किया गया हो।"
इसलिए कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ उक्तियों और टिप्पणियों को खारिज कर दिया।
मामले का विवरण
चंद्र प्रकाश मिश्रा बनाम फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड | 2022 लाइव लॉ (एससी) 359 | सीए 2859-2861/2022 | 30 मार्च 2022
कोरम: जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस
हेडनोट्स
प्रशासनिक कानून - एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा प्रत्येक गलत, अवैध या यहां तक कि विकृत आदेश / कार्रवाई, अपने आप में, सद्भाव की कमी वालाा या दुर्भावना से पीड़ित नहीं कहा जा सकता है- किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से एक वैधानिक अधिकारी में बेहतर भरोसे की कमी के बारे में उद्देश्यों को थोपने और निष्कर्ष निकालने के लिए, महज त्रुटि या गलती से ज्यादा कुछ तत्व मौजूद होना चाहिए। (पैरा 13,16)
सारांश
एक वैधानिक प्राधिकरण के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को चुनौती देने वाली अपील - अनुमति दी गई - भले ही हाईकोर्ट ने पाया कि संबंधित अधिकारियों, विशेष रूप से अपीलकर्ता की आक्षेपित कार्रवाई, कानून के अनुरूप नहीं थी या अनियमित थी या अवैध या विकृत थी, लेकिन इससे ऐसे निष्कर्ष तक पहुंचना उचित नहीं था कि निर्धारण प्राधिकारी या पंजीकरण प्राधिकरण की ओर से कोई जानबूझकर कार्रवाई या चूक हुई थी; या हाईकोर्ट की नियोजित अभिव्यक्ति के अनुसार कोई भी 'रणनीति' अपनाई गई थी।
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