मुआवजे की मांग कर रहे याचिकाकर्ता ने कहा- यूट्यूब पर न्यूडिटी कंटेंट वाले विज्ञापन के चलते ध्यान भंग हुआ और परीक्षा में फेल हो गया; सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माने के साथ याचिका खारिज की

Brij Nandan

9 Dec 2022 8:24 AM GMT

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    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की एक खंडपीठ ने एक याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई, जिसने गूगल इंडिया से 75 लाख रुपये का मुआवजा मांगा था। मुआवजे की मांग कर रहे याचिकाकर्ता ने कहा कि यूट्यूब पर न्यूडिटी कंटेंट वाले विज्ञापन के चलते ध्यान भंग हुआ और वह मध्य प्रदेश पुलिस भर्ती परीक्षा में फेल हो गया।

    संविधान के अनुच्छेद 19(2) का आह्वान करते हुए, जो बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों को रेखांकित करता है, याचिकाकर्ता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर न्यूडिटी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की भी मांग की।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की खंडपीठ ने कहा,

    "यह अनुच्छेद 32 के तहत दायर अब तक की सबसे खराब याचिकाओं में से एक है।"

    आदेश सुनाते हुए जस्टिस कौल ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा,

    "अगर आपको कोई विज्ञापन पसंद नहीं है, तो उसे न देखें।"

    जस्टिस कौल ने याचिकाकर्ता से पूछा,

    "किस चीज का मुआवजा चाहिए? आप इंटरनेट देखते हो इससे, या इंटरनेट देखने की वजह से एग्जाम में पास नहीं हो पाए, इसीलिए?"

    जस्टिस कौल ने कहा,

    "विज्ञापन में सेक्सुअल कंटेंट था, इससे आपकी अटेंशन डायवर्ट हो गई, इसलिए कोर्ट में आकर आप बोल रहे हो मुआवजा दो।"

    जस्टिस ने कहा कि अब आपको अपने आचरण के कारण अदालत को हर्जाना देना होगा। याचिका को खारिज करते हुए और याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का अनुकरणीय जुर्माना लगाते हुए जस्टिस कौल ने यह भी टिप्पणी की,

    "इस प्रकार की याचिकाएं न्यायिक समय की बर्बादी हैं।"

    याचिकाकर्ता ने अपील की,

    "न्यायधीश महोदय, मुझे माफ कर दीजिए। मेरे माता पिता मजदूर हैं।"

    जस्टिस कौल ने कहा,

    "आप को लगता है कि प्रचार के लिए जब चाहें इधर आ सकते हैं। जुर्माना कम कर दूंगा, लेकिन माफ नहीं करुंगा।"

    कोर्ट ने जुर्माना घटाकर 25,000 रुपये करने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता ने बेंच से कहा,

    "मेरे पास रोज़गार नहीं है।"

    जस्टिस कौल ने कहा,

    "रोजगार नहीं हैं तो हम रिकवरी करेंगे, और क्या।"

    सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी तुच्छ जनहित याचिकाओं को लेकर चिंता व्यक्त की थी। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस हिमा कोहली ने कोर्ट का समय बर्बाद करने पर इस तरह की प्रथा की आलोचना की थी। बेंच ने कहा था कि इस तरह के मुकदमों को शुरू में ही खत्म कर देना चाहिए।

    केस टाइटल

    आनंद किशोर चौधरी बनाम गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड [डब्ल्यूपी (सी) संख्या 820/2020]


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