‘ये तय करना कोर्ट का काम नहीं’: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-वसीयत के लिए समान कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर कहा

Brij Nandan

21 Feb 2023 10:21 AM IST

  • ‘ये तय करना कोर्ट का काम नहीं’: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-वसीयत के लिए समान कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर कहा

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारतीय नागरिकों के लिए तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के लिए एक समान कानून बनाने की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं के चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।

    याचिका को सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।

    शुरुआत में, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाओं उठाई गई कुछ प्रार्थनाओं पर आपत्ति जताई।

    उन्होंने कहा,

    "क्या यौर लॉर्डशिप के सामने ऐसी प्रार्थना की जा सकती है? यह सरकार को तय करना है कि वे क्या करना चाहती हैं। इसका आधार क्या है? मैं समझ सकता हूं कि इन मुद्दों को व्यक्तिगत रूप से उठाया जा सकता है। मुझे इससे कोई समस्या नहीं है। लेकिन हम इस तरह की प्रार्थनाओं के साथ सर्वग्राही याचिका नहीं हो सकती।"

    याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा,

    "कई प्रार्थनाएं हैं। विधि आयोग को एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहने से संबंधित प्रार्थना। उस पर कैसे आपत्ति की जा सकती है? यह पूछने में विशिष्ट है कि जेंडर न्यूट्रल कानून बनाए जाएं। याचिकाकर्ताओं में से एक मुस्लिम महिला है और वह कहती है कि मैं चाहती हूं, मेरे लिए कानून जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए।"

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा,

    "ये विधायी कार्य हैं। हम कैसे तय कर सकते हैं?"

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हस्तक्षेप किया और कहा,

    "सैद्धांतिक रूप से, जेंडर न्यूट्रल और समान कानूनों पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। न्यायिक पक्ष में क्या किया जा सकता है, इस पर विचार करना यौर लॉर्डशिप के लिए है।"

    हालांकि, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने इस पर आपत्ति जताई और कहा,

    "अदालत को इस मामले में प्रथम दृष्टया आदेश जारी करते हुए नहीं देखा जाना चाहिए। यह उस तरह के संकेत भेज सकता है जो पूरी तरह से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हैं।"

    पीठ ने कहा कि वह याचिका पर सुनवाई करेगी और फिर देखेगी कि क्या किया जाना है। यह मामला अब चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया गया है।

    पीठ छह जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी- वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर चार जनहित याचिकाएं, लुबना कुरैशी द्वारा दायर एक याचिका और डोरिस मार्टिन द्वारा दायर एक अन्य याचिका।

    केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 869/2020



    Next Story